शनिवार, फ़रवरी 05, 2011

मूक होंहि वाचाल

यदि आप अंग्रेज़ी लिख सकते हैं तो आप अंग्रेज़ी बोल भी सकते हैं। यह बात, संघ लोक सेवा आयोग ने 2008 की भारतीय प्रशासनिक सेवा की लिखित परीक्षा में पास होने वाले श्री चितरंजन कुमार से कही है। श्री कुमार ने संघ लोक सेवा आयोग पर आरोप लगाया है कि आयोग अंग्रेज़ी माध्यम वाले उम्मीदवारों को तरजीह देता है क्योंकि श्री कुमार साक्षात्कार में अग्रेज़ी में न बोल पाने के कारण असफल घोषित कर दिए गए।

इस बारे में, संघ लोक सेवा आयोग का ध्यान राजभाषा आयोग, 1956 द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के हिंदी संस्करण के पृष्ठ 153 पर पहले पैराग्राफ़ की अंतिम तीन पंक्तियों में व्यक्त विचार की ओर आकृष्ट करना चाहता हूं। आयोग ने कहा है, "प्रतियोगी परीक्षाएं ऐसी होनी चाहिए कि उनसे उम्मीदवारों की बौद्धिक योग्यता और अनुशासन की सामान्य परीक्षा ली जा सके। भाषा संबंधी योग्यता की परीक्षा पर अनुचित महत्व नहीं दिया जाना चाहिए।"

अतः संघ लोक सेवा आयोग अपने ऊपर लगे आरोप से बचने के लिए तकनीकी बहाने का आश्रय न ले। यह तो अंग्रेज़ी दंश का एक और ज्वलंत उदाहरण है। 


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