कानूनी अनुवाद कुछ महत्वपूर्ण बातें
आमतौर पर अंग्रेज़ी में लिखे कानूनी प्रभाव वाले दस्तावेज़ से हिंदी अनुवाद को कानूनी अनुवाद कहा जाता है। यदि विश्लेषण किया जाए तो हमें सभी प्रकार के फ़ॉर्मों की भाषा कानूनी ही नज़र आएगी क्योंकि वे किसी न किसी नियम, अधिनियम अथवा करार के तहत बनाए गए होते हैं। कानून की भाषा को जानबूझकर कठिन रखा गया है क्योंकि उसका संबंध केवल वकीलों या जजों से होता है ताकि आवश्यकतानुसार कमज़ोर के पक्ष में निर्वचन (इंटरप्रिटेशन) की गुंजाइश रहे। अतः कानून की भाषा सरल नहीं बनाई जा सकती है। परंतु प्रयास यह किया जाना चाहिए कि वाक्य विन्यास व्याकरण के मानक नियमों के अनुसार रखा जाए और मानक शब्दों का प्रयोग किया जाए। एक संकल्पना के लिए पूरे दस्तावेज़ में एक ही शब्द का प्रयोग किया जाए, भिन्न भिन्न पर्यायों का नहीं। इस पोस्ट के द्वारा हम कानून की कुछ आधारभूत संकल्पनाओं और शब्दावली का परिचय देने जा रहे हैं।
कानून (ला) किसे कहते हैं?
विधान मंडल (संसद अथवा विधान सभा) द्वारा पारित किए गए नियम कानून कहलाते हैं।
अध्यादेश (आर्डनेंस) किसे कहते हैं?
यदि विधान मंडल का सत्र न चल रहा हो तो कार्यपालिका द्वारा जारी किया गया अस्थायी नियम अध्यादेश कहलाता है हालाँकि वह पूरी तरह से कानून होता है और न्यायपालिका उसके आधार पर न्याय का प्रशासन करती है। यह केवल छह माह तक ही वैध रहता है। यदि उसके बाद भी उसे जारी रखना हो तो विधान मंडल द्वारा अधिनियम पारित कराना होता है। कोई भी विधान पारित किए जाने से पहले `विधेयक' (बिल) कहलाता है। जब उसे विधान मंडल द्वारा पारित कर दिया जाता है और उसे भारत के राष्ट्रपति या प्रदेश के राज्यपाल द्वारा, जो भी लागू हो, अनुमोदित करने के बाद वह कानून (अधिनियम) का रूप लेता है। अध्यादेश जारी करने की शक्ति राष्ट्रपति/राज्यपाल को होती है।
इसके अलावा `आचार विधि' (कस्टुमरी ला) भी कानून होती है जो किसी भी कानून के ऊपर लागू होती है। कभी कभी आचार विधि कानून पर भी अभिभावी हो जाती है, जैसे, हिंदू ला और मुस्लिम ला।
संविधान दो प्रकार के होते हैं - सुपरिवर्त्य (Flexible) और अपरिवर्त्य (Rigid) । इन दोनों प्रकार के संविधानों के उदाहरण, क्रमशः अमरीका और ब्रिटेन हैं। भारत का संविधान सुपरिवर्त्य संविधान की ओर झुका हुआ है। ब्रिटेन का संविधान लिखित संविधान नहीं है। वहाँ पर न्यायालयों के निर्णय कानून का रूप ले लेते हैं। हमारे यहाँ के उच्च और उच्चतम न्यायालयों के निर्णय निचली अदालतों द्वारा निर्णय करने के लिए मार्गदर्शन के रूप में अपनाए जाते हैं। अतः उन्हें न्याय प्रशासन में न्यायालयों द्वारा मान्यता दी जाती है। संविधान के अनुच्छेद 141 के अनुसार यदि किसी विषय में कोई अधिनियम न हो और उच्चतम न्यायलय उस विषय में कोई गाइडलाइंस नियत करता है तो वे गाइड लाइंस तब तक कानून का प्रभाव रखेगा जब तक कि न्याय पालिका उसे कानून का रूप न दे दे, जैसे, महिलाओं के प्रति यौन उत्पीड़न के बारे में कोई कानून नहीं है। परंतु विशाखा बनाम राजस्थान सरकार मामले में उच्चतम न्यायालय ने गाइडलाइंस नियत की है जो काननू के रूप में प्रभावी है। यदि विधायिका चाहे तो उन निर्णयों को प्रभावी किए जाने से उन्हें निरस्त कर सकती है, जैसे, शाहबानो के मामले में राजीव गांधी की सरकार ने किया था।
विधान बनाने का आधिकार
संविधान में तीन सूचियाँ दी गई हैं - (1) केंद्रीय सूची (इन विषयों पर केवल केंद्र सरकार ही कानून बना सकती है)।
(2) राज्य सूची (इन विषयों पर केवल राज्य सरकार ही कानून बना सकती है)।
(3) समवर्ती सूची (इन विषयों पर केवल केंद्र व राज्य दोनों सरकारें ही कानून बना सकती हैं)। परंतु जहाँ टकराव होगा वहाँ केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही लागू होगा।
Jurisdiction : इसे अधिकारिता कहते हैं। यह क्षेत्राधिकार + अधिकार क्षेत्र के बराबर होता है। यह अधिकारिता मूल और अपीली दोनों परिस्थितियों में अलग अलग होती है।
Civil Court : सिविल न्यायालय।
Criminal Court : दंड न्यायालय।
सिविल न्यायालय में न्याय अधिकारियों के क्रम इस प्रकार होते हैं : 1. सबसे नीचे -उप न्यायाधीश (Subjudge/munsif) , उससे अगला 2. जज (judge), उससे ऊपर 3. सिविल जज (Civil judge), उससे आगे 4. ज़िला न्यायाधीश (District Judge)।
दंड न्यायालय में न्याय अधिकारियों के क्रम इस प्रकार होते हैं : 1. सबसे नीचे - दंड मैजिस्ट्रेट (Criminal Magistrate) , उससे अगला 2. ज़िला मैजिस्ट्रेट (District Magistrate), उससे ऊपर 3. सेशंस जज (Sessions judge)।
उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालयों में
पीठ (Bench) : एकल पीठ (Single Bench) - इसमें एक जज होता है, खंड पीठ (Division Bench) - इसमें दो जज होते हैं, पूर्ण पीठ (Full bench) - इसमें तीन या अधिक जज होते हैं। मामले की गंभीरता और महत्व के अनुसार जजों की संख्या बढ़ाई/घटाई जा सकती है। पूर्ण पीठ में जजों की संख्या विषम होती है ताकि निर्णय में बहुमत बन सके। संविधान संबंधी मामलों के निर्णय के लिए उच्चतम न्यायालय में संविधान पीठ बनाई जाती है।
वाद दो प्रकार से दाखिल किए जाते हैं - वादी (Plantiff), प्रतिवादी (Defendant)- मूल रूप से मुकदमा दायर किया जाता है तो; अपीलार्थी (Appellant), प्रत्यर्थी (Respondent)।
अधिनियम बनाते समय कुछ मानक शब्दावली का प्रयोग किया जाता है। उनको उदाहरणस्वरूप यहाँ प्रस्तुत किया जाता है :
संक्षिप्त नाम (Short Tite)
Preamble : किसी भी अधिनियम के पास होने से पूर्व उसका उद्देश्य और कारण बताना होता है। सभी अधिनियम के प्रारंभ में इसे लिखना होता है। इसे `उद्देशिका' कहते हैं। इसे इस प्रकार लिखा जाता है : "Where as it is expedient to provide general penal code for India; it is enacted as follows : -"
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जाता है : `क्योंकि भारत के लिए साधारण दंड संहिता उपबंध कराना समीचीन है इसलिए निम्ललिखित अधिनियम बनाया जाता है :-'
Where as : इसका अनुवाद `क्योंकि' होगा यदि शुरू में आए तो। जब बीच में आए तो इसका अनुवाद `जबकि' किया जाए।
Expedient : समीचीन
Provide : उपबंध कराना
General : साधारण
Common : सामान्य
Penal Code : दंड संहिता
Enacted as follows : निम्नलिखित अधिनियम बनाया जाता है।
Not with standing : के होते हुए भी (विरोध नहीं करना)
With standing : विरोध करना
यहाँ तीन अभिव्यक्तियाँ लिखी जा रही हैं। इन तीनों का अर्थ एक ही है : (1) The act may be called Indian Contract Act 1936, (2) The act shall be called Indian Penal Code 1860, (3) The act may be cited as the Code of Civil Procedure 1908। इन तीनों अधोरेखित अभिव्यक्तियों का मतलब एक ही है, `कहा जा सकता है' अथवा `कहलाएगा'।
परंतु विधि मंत्रालय ने इन तीनों को निम्नप्रकार माना है :
(1) कहा जाएगा (may be called)।
(2) कहलाएगा (shall be called)।
(3) कहा जा सकता है (may be cited)।
यह अभिव्यक्ति अधिनियम के `संक्षिप्त नाम' के लिए उपयोग में लाई जाती है। अतः इनके अनुवाद इस प्रकार किए गए हैं :
(1) यह अधिनियम भारतीय संविदा अधिनियम 1936 कहा जाएगा।
(2) यह अधिनियम भारतीय दंड संहिता 1860 कहलाएगा।
(3) यह अधिनियम सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 कहा जा सकता है।
पूरा नाम (Long Title)
इसमें दो बातें शामिल होती हैं। जब अधिनियम बनता है तो उसके प्रवर्तन की तारीख (Commencement) तथा किन किन क्षेत्रों में (Extent) लागू होगा इसका विवरण सरकारी राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है। अतः वह निम्नप्रकार लिखा होता है। प्रवर्तन (Commencement) के उदाहरण इस प्रकार हैं
1. `It shall come into force on the first day of January 1909.' (यह एक जनवरी 1909 से प्रवृत होगा)।
2. It shall come into force on the first day of October 1932 except section 69 which shall come into force on the first day of October 1933. (यह अधिनियम एक अक्तूबर 1932 से प्रवृत हो सिवाय धारा 69 जो कि एक अक्तूबर 1933 से प्रवृत होगी।)
3. It shall come into force on such date as the central government may, by notification in the official gazette, appoint. (यह उस तारीख से प्रवृत होगा जिसे केंद्रीय सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे।)
4. It shall come into force on such date as the central government may, by notification in the official gazette, appoint, and different dates may be appointed for different provisions of this act and different states but not later than 31 December 1953. (यह उस तारीख से प्रवृत होगा जिसे केंद्रीय सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे और विभिन्न राज्यों के लिए और अधिनियम के विभिन्न उपबंधों के लिए भिन्न तारीख नियत करे परंतु 31 दिसंबर 1953 के बाद नहीं।)
विस्तार (Extent)
विस्तार (Extent) के उदाहरण इस प्रकार हैं
1. It extends to the whole of India and it also applies to the citizen of India and out side India. (इसका विस्तार संपूर्ण भारत में लागू है। भारतीय नागरिकों पर भारत के बाहर भी लागू होता है।)
2. It extends to the whole of India except the state of Jammu & Kashmir, provided that the state government may exclude any districts from its operation. (इसका विस्तार सिवाय जम्मू और कश्मीर संपूर्ण भारत में लागू है परंतु राज्य सरकार किन्हीं ज़िलों को इसके प्रवर्तन से अपवर्जित कर सकती है।)
3. It extends to the whole of India except the state of Jammu & Kashmir and applies also to the Hindus domiciled in territories to which this act extends who are out side the territories. (सिवाय जम्मू और कश्मीर इसका विस्तार संपूर्ण भारत में लागू है और जिन राज्य क्षेत्रों में इस अधिनियम का विस्तार है उनमें अधिवसित उन हिंदुओं पर भी लागू है जो उन राज्य क्षेत्रों से बाहर हों।)
परिभाषा (Definition)
अधिनियम को परिभाषित करना ज़रूरी होता है ताकि उसको विनिर्दिष्ट रूप से लागू किया जा सके। अतः हर अधिनियम में तीसरा प्रमुख हिस्सा परिभाषा होता है।
किसी भी वस्तु को परिभाषित करने के लिए genus तथा differentium दोनों का होना आवश्यक है, जैसे, man is a rational animal । यहाँ आदमी को पशु genus का बताया गया है परंतु उससे अलग करने के लिए rational शब्द लगाया गया है। परिभाषित करते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि जिस शब्द की परिभाषा की जाती है उसकी आवृत्ति परिभाषा में नहीं होनी चाहिए। इस दृष्टि से Law की परिभाषा दोषपूर्ण है, `member means member of the council'।
परिभाषा (Definition) के उदाहरण इस प्रकार हैं
1. In this act unless the context otherwise requires, member means member of the council and includes its chairman. (इस अधिनियम में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, सदस्य का अर्थ है परिषद का सदस्य और उसमें परिषद का अध्यक्ष भी शामिल है।)
2. In this, unless there is any thing repugnant in the subject or context, member means member of the council and includes its chairman. (इस अधिनियम में जब तक कि कोई बात विषय या संदर्भ से परे न हो, सदस्य का अर्थ है परिषद का सदस्य और उसमें परिषद का अध्यक्ष भी शामिल है।)
विधि में लिंग वाची शब्द he/she की समस्या
In pronouns and its derivatives are used of any person, whether male or female. (जहाँ पुल्लिंग वाचक शब्दों का प्रयोग किया गया है वहाँ वे हर व्यक्ति के लिए लागू होंगे चाहे वे नर हों या नारी।)
विधि में बचन की समस्या
Unless the contrary appears from the context, words importing the singular number includes the plural number and words importing the plural number includes the singular number. (जब तक कि विपरीत संदर्भ प्रतीत न हो एक बचन द्योतक शब्द बहु बचन के बोधक भी होंगे और बहु बचन द्योतक शब्द एक बचन के।)
विधि में man और woman की समस्या
The word `man' denotes a male human being of any age; the word `woman' denotes a female human being of any age. (`पुरुष' शब्द किसी भी उम्र के मानव नर का द्योतक है। `स्त्री' शब्द किसी भी उम्र की मानव नारी का द्योतक है)।
अतः किसी भी कानूनी दस्तावेज़ का अनुवाद करते समय ध्यान में रखा जाए।
-लेखक
डॉ. दलसिंगार यादव