मंगलवार, अगस्त 30, 2011

कथनी और करनी में भेद – अन्ना टोपी और भ्रष्टाचार

अन्ना जी का आंदोलन चल ही रहा था कि अन्ना के समर्थन में "मी अन्ना आहे" की इबारत वाली टोपी पहने एक युवक सिग्नल पर लाल बत्ती की उपेक्षा कर आगे निकलना चाह रहा था। ट्रैफ़िक पुलिस ने उसे रोक लिया और लाइसेंस मांगने लगा। युवक लाइसेंस नहीं देना चाहता था क्योंकि एक बार पुलिस वाले के हाथ में लाइसेंस आ गया तो वह बेबस हो जाएगा और चालान भी कट सकती थी। अतः उसने रिज़र्व बैंक चौक पर आयोजित अन्ना की रैली में शामिल होने जा रहा हूं देर हो रही है की दलील देकर जाने देने के लिए पुलिस वाले से अनुरोध किया। भला पुलिस वाला हाथ आया बकरा कैसे जाने देता? उसने लाइसेंस दिखाने पर पुनः ज़ोर दिया और कहा कि अन्ना टोपी पहन कर नियम तोड़ते हैं और मुझे भी दोषी बनाना चाहते हैं। आपको ज़ुर्माना तो भरना ही होगा। अन्ना टोपी को आड़े आते देख युवक ने टोपी उतारी और उसे मोड़ कर ज़ेब में रखी तथा पर्स में से सौ रुपए का नोट निकाल कर पुलिस वाले से अनुरोध किया कि अब जाने दें। पुलिस वाला फिर अन्ना टोपी का वास्ता देते हुए चालान कटवाने का आग्रह करने लगा।
यदि पुलिस वाला इतना ही ई मानदार और अन्ना भक्त था तो उसे तुरंत चालान काटनी चाहिए थी। यदि वह युवक भ्रष्टाचार की लड़ाई के प्रति गंभीर था और अन्ना के आंदोलन का सच्चे मन से समर्थन करता था तो उसे पहले तो लाल बत्ती का उल्लंघन नहीं करना चाहिए था, यदि गलती कर ही दी थी तो ज़ुर्माना भर देना चाहिए था। परंतु युवक ने पुलिस वाले के हाथ में 200 रुपए रख दिए। इस बार पुलिस वाले ने कुछ नहीं कहा और अपना हाथ अपनी जेब में डाल दिया। युवक चला गया।
इसका विश्लेषण आप करें कि जन लोकपाल कानून क्या करेगा?
यह सच्ची घटना टाइम्स ऑफ़ इंडिया के नगर संवाददाता की 29/08/2011 की नागपुर शहर की डायरी में छपी है। क्या यह अंध प्रदर्शन नहीं है? कहीं इसका उद्देश्य जे.पी. और वी.पी. द्वारा चलाए गए संघ संचालित सोद्देश्य आंदोलन तो नहीं?
जो भी हो ऐसी ही स्थिति हिंदी के समर्थन में, सितंबर के महीने में आयोजित समारोहों की होती है।
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रविवार, अगस्त 28, 2011

भाषा नीति या प्रेरणा (अनुरोध) और पुरस्कारों की तुष्टीकरण नीति

श्री गोपाल व्यास, सांसद राज्य सभा ने 3 अगस्त 2011 को सदन में प्रश्न पूछा कि क्या यह सच है कि राजभाषा नियम 1976 के उल्लंघन के बारे में शिकायत मिली है? यदि ऐसा हुआ है तो उन कार्यालयों का विवरण दिया जाए जहाँ उसकी जाँच की गई है और जहाँ जाँच चल रही है। जहाँ जाँच पूरी हो गई है उन कार्यालयों के खिलाफ़ की गई कार्रवाई का विवरण दिया जाए।
यह प्रश्न गृह मंत्रालय से पूछा गया था क्योंकि राजभाषा विभाग गृह मंत्रालय के अधीन काम करता है और राजभाषा विभाग ही राजभाषा हिंदी के कार्यान्वयन के काम की निगरानी करता है। अतः इस प्रश्न का उत्तर भी राजभाषा विभाग ने ही तैयार किया है।
राजभाषा विभाग की अपनी सीमा है और वह सीमा प्रणाली संबंधी है। उसके पास इतनी शक्ति, इतना संसाधन, इतना मानव संसाधन नहीं है कि भारत के सभी कार्यालयों में पहुँच सके। अतः प्रणाली बनाई गई है। विभिन्न कार्यालयों में हिंदी के कार्यान्वयन के लिए एक कक्ष बनाया गया है, उसमें एक निम्न श्रेणी का कर्मचारी नियुक्त किया गया है जो कार्यालय के किसी अधिकारी के अनुदेशानुसार कार्य करता है। अब उस निरीह निम्न श्रेणी के कर्मचारी की क्या मजाल की कार्यालय के अन्य सशक्त, हिंदी में काम करने के अनिच्छुक अधिकारियों के पास कोई ऐसा प्रस्ताव लेकर जाए जिससे हिंदी का प्रयोग बढ़ सके। इसलिए वह अपनी नौकरी की फ़िक्र में वह सब काम करने के लिए बाध्य होता है जिससे हिंदी का सरोकार नहीं होता है और कार्यालय को भी एक ऐसा जीव मिल जाता है जो हिंदी में काम करने या न करने को उचित ठहराता रहता है।
यही स्थिति राजभाषा विभाग की है। इसलिए वह वही लिखता और बोलता है जो हिंदी में काम करने के अनिच्छुक अधिकारी और मंत्री चाहते हैं। अब आई. डी. स्वामी और चिदंबरम या अंग्रेज़ी समर्थक आई.ए.एस. अधिकारी हिंदी में क्यों काम करना चाहेंगे। उनकी इसी अभिवृत्ति के कारण ही तो यह बात प्रचलित कर दी गई है कि भारत की भाषा नीति प्रेरणा (अनुरोध) और पुरस्कारों की तुष्टीकरण नीति पर आधारित है और इसमें नियम/अधिनियमों का उल्लंघन करने पर किसी दंड का प्रावधान न होने के कारण कोई कार्रवाई करना संभव नहीं है। अतः न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। उस दिन का इंतज़ार करना होगा और हिंदी दिवस मनाते रहना होगा क्योंकि मंत्री ने जो जवाब दिया उससे तो यही साबित होता है। उनका जवाब था कि भारत संघ की राजभाषा नीति प्रेरणा (मोटिवेशन-अनुरोध) और पुरस्कारों (इन्सेंटिव) की तुष्टीकरण नीति पर आधारित है। अतः किसी के विरुद्ध कोई कार्रवाई करना ज़रूरी नहीं है। इस लिंक पर इसे पढ़ा जा सकता है http://rajbhasha.nic.in/396engrs.pdf ।.
आपकी जानकारी के लिए यह बता दूँ कि राजभाषा अधिनियम, 1963 व राजभाषा नियम 1976 में कहीं ऐसा उल्लेख नहीं किया गया है कि इनका उल्लंघन किया जा सकता है।
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क्या रुपए का नया प्रतीक क्षेत्रीयता का परिचायक है?