बुधवार, सितंबर 14, 2011

आज तो हिंदी होगी

आज हिंदी के साथ-साथ भारत की अनेक भाषाएँ भाषायी साम्राज्यवाद (रोज़गार व बहुभाषिक आवश्यकता के कारण अंग्रेज़ी की अनिवार्यता) का शिकार हो रही हैं। दुनियाभर में अंग्रेज़ी के वर्चस्व और संरक्षण न पाने के कारण सैकड़ों भाषाएँ समाप्ति की कगार पर हैं और भारत की स्थिति सर्वाधिक चिंताजनक है। 196 भाषाएँ समाप्ति के कगार पर हैं।(संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 फ़रवरी 2009 को, मातृभाषा दिवस के अवसर पर अपनी रिपोर्ट जारी की थी।)
सितंबर माह दिवस से लेकर पखवाड़ा तक हिंदी के हित में समर्पित है। आज हिंदी दिवस है जिसे समारोह के रूप मनाने की शुरुआत 14 सितंबर 1954 से हुई थी। 10 और 11 नवंबर 1953 को काका साहब एन. वी. गाडगिल की अध्यक्षता में नागपुर में 'अखिल भारतीय राष्ट्रभाषा प्रचार सम्मे़लन' का पांचवां अधिवेशन हुआ था। उस अधिवेशन में विचार सामने आया था कि कि जब तक हिंदी को अंग्रेज़ी के स्थान पर पूर्ण रूप से 'राजभाषा' का स्थान नहीं प्राप्त हो जाता तब तक '14 सितंबर' को 'हिंदी दिवस' के रूप में स्मरण करते रहेंगे और औपचारिक रूप से प्रस्ताव पारित हुआ। प्रस्ताव की भाषा थी कि ''यह सम्मेलन निश्चय करता है कि स्वतंत्र भारत के संवि‍धान ने जिस दिन हिंदी को 'राजभाषा' तथा 'देवनागरी' को राष्ट्रलिपि स्वीकार किया है उस दिन अर्थात्, 14 सितंबर को संपूर्ण भारत में 'हिंदी दिवस' मानाया जाएगा।'' इस प्रस्ताव के प्रस्तावक श्री जेठामल जोशी तथा अनुमोदक श्रीमती मैना गाडगिल थे। प्रस्ताव के समर्थक थे श्रीमती राधा देवी गोयनका तथा श्री बी. जी. जोगलेकर। इसी प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्रभाषा प्रचार सभा, वर्धा के तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री मोहन लाल भट्ट ने 30 नवंबर 1953 को कांग्रेस की सभी प्रांतीय समितियों, ज़िला समितियों, नगर समितियों, हिंदी के कार्य से जुड़े देश के तमाम कार्यालयों और विशि‍ष्ट व्यक्तियों को पत्र भेजा। उस पत्र द्वारा आगामी 14 सितंबर 1954 को 'हिंदी दिवस' मनाने का विनम्र आग्रह किया गया। इस प्रकार 14 सितंबर 1954 को 'हिंदी दिवस' मनाने का सिलसिला प्रारंभ हुआ। इसमें न कोई हिंदी वाला था और न ही कोई हिंदी भाषी था और न ही कोई सरकारी अफ़सर। लेकिन आज हिंदी दिवस समारोह सरकारी रूप ले चुका है फिर भी कार्यालयों में हिंदी का प्रचलन अमर्श योग्य है।

शरद जोशी, प्रख्यात व्यंग्य लेखक, ने लिखा था कि आज हिंदी दिवस है। आज तो हिंदी होगी। बाकी दिन? इसे एक उदाहरण से स्पष्ट करना चाहूँगा। जब मैं रिज़र्व बैंक में नियुक्त होकर चंडीगढ़ में कार्यरत हुआ तो पब्लिक सेक्टर में मेरा पहला अनुभव था। जब भी किसी से हिंदी में काम करने की बात करता तो वह यही कहता कि हिंदी में काम करना कठिन है। परंतु वह कठिनाई क्या है? कोई नहीं बताता था। अतः मैंने मनोवृत्ति तथा हिंदी की बैंकिंग शब्दावली की संरचना के अध्ययन की योजना बनाई। उसका उद्देश्य यह जानना था कि बैंकिंग के लिए जो शब्दावली बनाई गई है वह कठिन है या जहाँ हिंदी में काम करने की शुरुआत ही नहीं हुई है तो कठिनाई कैसी? अतः 1983-84 में आँकड़े इकट्ठा किए और 1985 में अपनी थीसिस प्रस्तुत की। मनोवृत्ति के बारे में आँकड़ इस प्रकार मिले थे -

हिंदी के समर्थन में (16.93 %) हिंदी के विरोध में(16.13 %) कार्यान्वयन से उदासीन (66.94)।

अनुसंधान के दौरान लोगों से कारण जानने के लिए जो प्रश्न पूछे गए थे उन प्रश्नों के उत्तर जो मिले उनमें दो बातें मुझे खास लगीं -
1. जब सख़्ती होगी तो कर लेंगे,(स्वतंत्र भारत में ग़ुलाम मानसिकता)?
2. इतनी मुश्किल से अंग्रेज़ी सीखी है इसका प्रयोग छोड़ कर हिंदी में काम करने लगेंगे तो अंग्रेज़ी भूल जाएंगे। (कार्यालय के अलावा और कहाँ उपयोग करते हैं?)

मैं हाई कोर्ट में प्रैक्टिस भी करता हूँ। आप जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों की सरकारी भाषा अंग्रेज़ी है। परंतु हाई कोर्ट परिसर में जाकर देखें तो कोर्ट रूम के बाहर अंग्रेज़ी का नामो निशान नहीं है। सभी वकील, सभी जज, सभी अधिकारी/कर्मचारी मराठी और हिंदी में ही आपसी विचार विमर्श करते हैं। इसका क्या मतलब?
वहाँ कोई नहीं कहता कि मुझे हिंदी नहीं आती है अंग्रेज़ी में ही बात करें। यहाँ तक कि प्रमाण स्वरूप दाखिल किए गए दस्तावेज़ यदि मराठी या हिंदी में हों तो उनका अंग्रेज़ी अनुवाद देना अनिवार्य है लेकिन बहस के दौरान उसे वर्नाक्युलर भाषा में ही पढ़कर जज को सुनाया जाता है। जज उसे ही सुनता है। इसका क्या मतलब?
आज कुछ लोग बड़े ही फ़ख़्र से कह देते हैं कि हमें अंग्रेज़ी तो आती है हिंदी नहीं आती। हिंदी आना किसे कहते हैं? नागपुर में केंद्र सरकार के 153 कार्यालय हैं। इसमें 90 % से अधिक अधिकारी हिंदी/मराठी भाषी होंगे। ऐसा मेरा अनुमान है। इनमें से लगभग एक दर्जन कार्यालयों में मैं जा चुका हूं। जिस अधिकारी और कर्मचारी से मिला उसने हिंदी में ही बात की। न तो अंग्रेज़ी का उपयोग किया और न ही अपनी मातृभाषा का। इसका क्या मतलब? फिर वे कौन लोग हैं जिन्हें हिंदी नहीं आती? हिंदी दिवस पर गृह मंत्री उपदेशक संदेश देंगे कि हिंदी में काम करना चाहिए। कार्यालय के प्रभारी भाषण देंगे कि हिंदी राजभाषा है, इसका उपयोग होना चाहिए। किससे कहते हैं कि हिंदी का उपयोग होना चाहिए? क्या अपने आपको इसके दायरे से बाहर रखने का संकेत दे रहे हैं? फिर तो कार्यालयों में हिंदी कभी नहीं आएगी।
उत्तम उपदेशक, उत्तम अनुदेशक, उत्तम सलाहकार वही होता है जो वह स्वयं अपनी ज़िंदगी में उस बात को अपनाता है जिसका कि उपदेश देता है। यदि वह कहता कुछ है और करता कुछ है तो लोग उसे दोगला (यानि दोहरी ज़ुबान वाला) कहते हैं और उसके उपदेश और अनुदेश को यह कह कर नकार देते हैं कि खुद मियाँ फ़ज़ीहत, दीगरे नसीहत। मैं आपसे कहूँ कि हिंदी में काम करें और खुद अंग्रेज़ी में काम करूँ तो क्या आप मुझे दोगला नहीं कहेंगे? आप जिस संस्था में काम करते हैं क्या आप अपनी संस्था के मूल उद्देश्य का हनन कर सकते हैं? नहीं। क्या आप नियम, कानून का उल्लंघन कर सकते हैं? नहीं। तो फिर क्या राजभाषा अधिनियम, राजभाषा नियमों का उल्लंघन करना हमारे प्रोफ़ेशनल कैरियर के लिए सही है? नहीं। यदि कोई अधिकारी स्वयं अंग्रेज़ी में काम करे और अपने सहयोगियों से कहे कि हिंदी में काम कीजिए तो लोग उस सलाह को महत्व देंगे? नहीं। माननीय गृह मंत्री कभी हिंदी नहीं बोलते, लिखते क्या होंगे? वे भी हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी में काम करने का उपदेश देते हैं। उसका क्या प्रभाव होगा? आप स्वयं आकलन करें। बाबा रामदेव क्यों लोकप्रिय हुए? क्योंकि वे स्वयं योग करके उदाहरण देते थे वरना उनसे पहले भी योग गुरु हुए। वे क्यों नहीं लोक प्रिय हुए? अतः हिंदी दिवस पर ही सही शुरुआत तो करें। प्रयोग करके उदाहरण दें, उपदेश देकर नहीं।
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मंगलवार, सितंबर 13, 2011

दुनिया से कह दो कि गांधी अंग्रेज़ी नहीं जानता

पंद्रह अगस्त 1947 को गांधी जी ने बी.बी.सी. लंदन को संदेश दिया था कि दुनिया से कह दो कि गांधी अंग्रेज़ी नहीं जानता। चंदन कुमार मिश्र के ब्लॉग "भारत के भावी प्रधान मंत्री की जबानी" पर यह संदेश देखने को मिला।
संभवतः इस संदेश का प्रचार नहीं हुआ और न ही इसकी व्याख्या की गई। क्या यह जानबूझकर नहीं किया गया? संभवतः हाँ। अतः "हिंदी दिवस, 2011" के अवसर पर इस पर विचार किया जाना और अमल किया जाना चाहिए। वैसे मैं इस "चाहिए" शब्द का प्रयोग करने के बजाय "मैं कर रहा हूँ", "मैं करता हूँ" जैसी अभिव्यक्तियों में विश्वास रखता हूँ और अमल करने की ईमानदार कोशिस करता हूँ। "कोशिश करता हूँ" इसलिए कि कोशिस ही तो कामयाबी की पहली सीढ़ी है।
गांधी जी बैरिस्टर थे। उन दिनों बैरिस्टरी की पढ़ाई इंग्लैंड में होती थी। पढ़ाई का माध्यम स्वाभाविक है कि अंग्रेज़ी रहा होगा। उन्होंने दक्षिण अफ़्रीका में वकालत की थी। वहाँ भी अंग्रेज़ी माध्यम से ही बहस की होगी। फिर गांधी ने ऐसा क्यों संदेश दिया कि दुनिया से कह दो कि "गांधी अंग्रेज़ी नहीं जानता" जबकि आजकल लोग बड़े फ़ख़्र से कह देते हैं कि मुझे हिंदी नहीं आती। अंग्रेज़ी तो आती है। हिंदी तो बड़ी कठिन है। क्या हम गांधी जी के संदेश को समझ पाए?
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क्या रुपए का नया प्रतीक क्षेत्रीयता का परिचायक है?