रविवार, मार्च 18, 2012

मनस् बनाम मानसिकता

आस्ट्रिलिया के प्रसिद्ध प्राचीन इतिहासवेत्ता प्रो. ए.एल. बाशम ने अपनी पुस्तक दि वंडर दैट वाज़ इंडिया में भारत की महान धरोहरों के बारें में लिखा है और भारत को महान संस्कृतियों में शुमार किया है। हम महान थे, हैं और रहेंगे क्योंकि हमने दुनिया को विज्ञान दिया, दर्शन दिए, आधुनिक युग का अजूबा कंप्यूटर अस्तित्व में नहीं आता यदि बाइनरी प्रणाली नहीं होती। बाइनरी का मतलब है 0 और 1। दुनिया को गिनतियाँ हमने दी, शून्य भी हमीं ने दिया जिसके आधार पर ग्लोबल वर्ल्ड की बात की जा रही है। यह ग्लोबल वर्ल्ड आज वैश्विक गाँव का पर्याय हो गया है। वैश्विक गाँव क्या है? क्या यह वसुधैव कुटुंबकम से भिन्न है जिसे हमारे दर्शन ने दिया है? हम बार-बार यह कहते नहीं थकते हैं कि नार्याः यत्र पूज्यंते रम्यते तत्र देवता। हमारे टी.वी. चैनल अक्सर यह प्रचार करते रहते हैं कि अतिथि देवो भव (यद्यपि अज्ञानता वश भवः कहा जा रहा है।)। ऐसे कितने ही उदाहरण दिए जा सकते हैं। ये सब कैसे हुआ? ये सब इसलिए हुआ कि हमारा भारतीय मनस् बहुत तीक्ष्ण रहा है और इसका लोहा पूरा विश्व मानता है। परंतु हमारी मानसिकता दूषित हो रही है या हो गई है। अब हम नारी को एक साधन समझने लगे हैं। अतिथि को बोझ समझने लगे हैं। वसुधैव कुटुंबकं को छोड़कर अपने परिवार, अपने घर, अपने आस पास तक सीमित हो रहे हैं। देश के प्रति निष्ठा का ह्रास हो गया है और अपना काम बनाने के लिए किसी की भी बलि दे सकते हैं। ऐसे में दूसरे का दुःख, दूसरे की मजबूरी नहीं नज़र आ रही है। आज हर कोई तनाव ग्रस्त दिखता है। मैंने अभी पिछले माह नागपुर से बंगलौर की यात्रा सड़क मार्ग से की। मैंने यह नोटिस किया कि सड़क पर तेज़ गति से जा रहे वाहनों को आपात कालीन ब्रेक लगाने पड़ते हैं जिससे सड़क पर टायरों के घिसटने निशान देखे जा सकते हैं। यह तो तभी संभव है जब आपाधापी में गाड़ी को तेज़ी से भगाकर जल्दी पहुँचने का तनाव हो। अतः ज़रूरी हो गया है मनस् को मानसिकता के वशीभूत न होने दिया जाए।

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