भारत सरकार ने वर्ष 2010 – 11 के वार्षिक कार्यक्रम में अनेक बातें लिखी हैं परंतु ये दो बातें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और इन पर बहुत गंभीरता से कार्रवाई करना ज़रूरी है।
पहली बात, "राजभाषा कार्य से संबंधित अधिकारियों को विभाग के समस्त कार्यकलापों से परिचित कराया जाना आवश्यक है, जिससे कि वे अपने दायित्व अच्छी तरह निभा पाएं।"
पहली बात के बारे में, भारत सरकार ने, देर ही सही लेकिन समयबद्ध कार्यक्रम के ज़रिए इसे पूरा करने की ज़िम्मेदारी संस्थाओं पर डाली है और यह अच्छी बात है क्योंकि प्रशिक्षण के नाम पर राजभाषा अधिकारियों को अंतिम पायदान पर रखा जाता हैं जिसका नंबर ही नहीं आता। मैंने पहले भी विचार व्यक्त किया था कि राजभाषा अधिकारी अपने आप में एक संस्था की भाँति है जो अनुवाद करता है, शिक्षण करता है, जन संपर्क का कार्य करता है, सृजनात्मक लेखन कार्य करता है, पत्रिका का संपादन करता है, हिंदी समारोह का मंच संचालन भी करता है, हिंदी को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शनी आयोजित करता है साथ ही कार्यालय का अन्य काम भी करता है। आज उससे कंप्यूटर के ज्ञान के साथ हिंदी में काम करने के लिए लोगों को कंप्यूटर का प्रशिक्षण देने की भी अपेक्षा की जाती है। ऐसे में यदि एक अधिकारी से विविध भूमिकाओं की अपेक्षा की जाती है तो उसे गहन प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। परंतु इस अधिकारी की भर्ती करके इसे विभाग में नियुक्त कर दिया जाता है और कहा जाता है कि संस्था/विभाग में हिंदी में सारा काम करने की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है लेकिन उसे संस्था/विभाग के कार्यों की सुनियोजित जानकारी या प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है जबकि संगठन से अपेक्षा की जाती है कि उसे संस्था/विभाग के समस्त कार्य की समग्र जानकारी तथा आधुनिकतम प्रौद्योगिकी का गहरा और व्यापक प्रशिक्षण देकर इस प्रकार योग्य बनाए कि वह उक्त सारे कार्यों को अंजाम दे सके।
अतः भारत सरकार (राजभाषा विभाग) ने, सन् 1975 (विभाग की स्थापना) से अब तक पहली बार राजभाषा अधिकारियों के बारे में सकारात्मक पहल की है और समयबद्ध कार्यक्रम के ज़रिए इसे सुनिश्चत करने की बात कही है। अब भारत सरकार के कार्यालय, सरकारी क्षेत्र के उपक्रम, बैंक, केंद्र सरकार के नियंत्रण के निगम और आयोगों में कार्यरत राजभाषा विभागों की ज़िम्मेदारी है कि अपने राजभाषा अधिकारियों के गहन और विकासात्मक कार्यक्रम बनाएं और उन्हें प्रशिक्षित करके सक्षम बनाएं ताकि वे अपनी भूमिका सकारात्मक ढंग से निभाए।
दूसरी बात, "भारतीय प्रशासनिक सेवा और अन्य अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के लिए लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में प्रशिक्षण के दौरान हिंदी भाषा का प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से दिया जाता है, ताकि सरकारी कामकाज में वह इसका प्रयोग कर सकें । तथापि, अधिकांश अधिकारी सेवा में आने के पश्चात् सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग नहीं करते । इससे उनके अधीन कार्य कर रहे अधिकारियों/ कर्मचारियों में सही संदेश नहीं जाता । परिणामस्वरूप, सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग अपेक्षित मात्रा में नहीं हो पाता । मंत्रालयों/विभागों/कार्यालयों/उपक्रमों आदि के वरिष्ठ अधिकारियों का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह अपने सरकारी कामकाज में अधिक से अधिक हिंदी का प्रयोग करें । इससे उनके अधीन कार्य कर रहे अधिकारियों/ कर्मचारियों को प्रेरणा मिलेगी तथा राजभाषा नीति के अनुपालन को गति मिलेगी।"
इस बारे में, मेरा विचार है कि मंत्रालयों/विभागों/कार्यालयों/उपक्रमों आदि के वरिष्ठ अधिकारियों के इस संवैधानिक दायित्व के बारे में उच्च स्तरीय, मानसिकता परिवर्तन कार्यक्रम आयोजित करके उन्हें प्रेरित किया जाए और तुरंत हिंदी में काम शुरू करके अपने मातहत काम करने वालों को संदेश दें कि हिंदी में काम किया जाए तथा हिंदी में काम करना अनिवार्य है।
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