मंगलवार, जनवरी 04, 2011

"लाल हेरिंग सूची पत्र" यानी "रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस"


मैंने सोचा है कि अब से महीने में एक दो ऐसी अभिव्यक्तियों के बारे में आधारभूत जानकारी दूं जिससे हिंदी में काम करने में आसानी हो। इसकी पहल कंपनी जगत की पारिभाषिक शब्दावली "रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस" करना चाहता हूं।

क्या है यह रेड हेरिंग प्रॉस्कपेक्टस? इसकी हिंदी "लाल हेरिंग सूची पत्र" कहने में कोई हर्ज़ नहीं है। इसे पारिभाषिक शब्दावली के रूप में "लाल हेरिंग सूची पत्र" का उपयोग किया जा सकता है। "लाल" शब्द तो प्रचलित विशेषण शब्द है। "हेरिंग" नाम की एक मछली होती है जो झुंड में रहती है। "सूची पत्र" का मतलब जानकारी पत्रक। "रेड हेरिंग" का उपयोग "डिसऐंबीगुएसन" के अर्थ में किया जाता है। "रेड हेरिंग" अभिव्यक्ति को एक मुहावरे से लिया गया है जिसका मतलब होता है सोच का दिशा परिवर्तन।

व्यापार जगत में इसका उपयोग कंपनी अधिनियम की धारा 60 बी के अनुसार होता है। यदि कोई कंपनी सार्वजनिक निर्गम (शेयर अथवा बॉन्ड) जारी करके सीधे जनता से पूंजी उगाहना चाहती है तो उसे भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के समक्ष अपना "लाल हेरिंग सूची पत्र" प्रस्तुत करना होता है जिसमें ये बातें शामिल होती हैं – निर्गम का प्रयोजन, प्रस्तावित कीमत का सीमा-विस्तार, यदि कोई ऑप्शन करार हो तो उसका खुलासा, हामीदार का कमीशन और बट्टा, संवर्धन के खर्च, निर्गम जारी करने वाली कंपनी की निवल आय, तुलन पत्र, पिछले तीन वर्ष में कमाई की विवरणियों (यदि उपलब्ध हों), सभी अधिकारियों, निदेशकों, हामीदारों और वर्तमान में कंपनी के उन शेयरधारक जिनके पास कंपनी के 10 प्रतिशत या अधिक शेष शेयर हों, हामीदारी करार की प्रतिलिपि, निर्गम के बारे में कानूनी टिप्पणी, निर्गमकर्ता कंपनी के निगमन नियमावली की प्रितलिपि।

गुरुवार, दिसंबर 30, 2010

इसका हिंदी से संबंध नहीं है परंतु सामज से है और हिंदी समाज की वाहिका-लायबिलिटी अर्थात् ज़िम्मेदारी


सुप्रीम कोर्ट की महिला जज ने अपनी ज़िम्मेदारी को अंग्रेज़ी में लायबिलिटी क्या कह दिया कि बवाल मच गया। अंग्रेज़ी के दुष्प्रभाव का एक और उदाहरण। क्या सुप्रीम कोर्ट की महिला जज को समाज की सच्चाई व्यक्त करना ग़लत है। कानून प्रशासन ही ऐसा व्यवसाय है जिसमें समाज के हर प्रकार के व्यक्तियों से साबका पड़ता है जिसकी वजह से कानून के व्यवसाय से जुड़े वकील और जज को समाज की ज़्यादा समझ होती है। जज को मालूम है कि अपनी किसी भी लड़की की शादी में 20-25 लाख से कम नहीं खर्च करना होगा। अतः उस खर्चे का प्रावधान करना होगा। प्रावधान करना है तो लायबिलिटी ही लिखना होगा। यही किया है महिला जज ने और समाज को आईना दिखा दिया है। अपना असली चेहरा देखकर समाज तिलमिला गया है। दहेज़ और मान प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए धन तो खर्च करना ही होगा वरना जज की क्या प्रतिष्ठा रहेगी और अच्छा रिश्ता कैसे मिलेगा। पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों की स्थिति  तो यही दर्शाता है कि लड़की दायित्व ही है, ताउम्र।

बुधवार, दिसंबर 29, 2010

'विश्व हिंदी दिवस' मनाने की प्रथा की शुरुआत


हर वर्ष कार्यालयों में हिंदी दिवस मनाया जाता है। यह सिलसिला 11 नवंबर 1953 में नागपुर में किए गए निर्णय के अनुसरण में 14 सितंबर 1954 से शुरू हुआ है और अनंत काल तक चलता रहेगा क्योंकि संविधान ने हिंदी को अंग्रेज़ी का स्थान लेने पर रोक लगा दी है और किसी भी एक राज्य को वीटो पावर दे दी है जब तक वह नहीं चाहेगा हिंदी अंग्रेज़ी का स्थान नहीं ले पाएगी। लेकिन हिंदी सेवी तो अपने कार्य में निरंतर लगे हुए हैं। इसी प्रकार नागपुर में ही 14 जनवरी 1975 को संकल्प पारित हुआ कि हर वर्ष 10 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाए। तब से हर साल विदेशों में, अपने दूतावासों में तथा अन्यत्र भी 'विश्व हिंदी दिवस'  मनाया जाता है। 37 देशों में हिंदी का प्रचलन हो चुका है और 110 विश्व विद्यालयों में हिंदी भाषा की शिक्षा दी जा रही है। परंतु हमारे देश के अनेक कार्यालयों में 'विश्व हिंदी दिवस' मनाने की प्रथा की शुरुआत अभी नहीं हुई है। इस पोस्ट द्वारा मैं सभी ब्लॉगर बंधुओं से अनुरोध करना चाहता हूं कि इस संदेश को यथा संभव प्रसारित किया जाए और आगामी 10 जनवरी को देश में तथा कार्यालयों में 'विश्व हिंदी दिवस' मनाने की प्रथा की शुरुआत हो।

हिंदुस्तानी की हिपॉक्रेसी


मेरे एक मित्र का मेल आया कि "आज लगभग सारी जनता अंग्रेज़ी का Happy New Year मनाने में अपनी शान समझ रही रही है और बड़े उत्साह से मना रही है परंतु वही जनता सन् की जगह संवत् में अपना भारतीय नव वर्ष नहीं मनाती है।" मैंने उन्हें जवाब में लिखा कि विचार बहुत अच्छे हैं और सराहनीय भी। परंतु यह हिंदुस्तानी की मुहिम चलाने वालों की हिपॉक्रेसी है। केवल इतना ही कर देने से हम अपनी संस्कृति छोड़ देंगे या इसका अनुसरण करते रहने से हम अभारतीय नहीं हो जाएंगे। क्या अब गार्गियन कैलेंडर को छोड़ा जा सकता है? भारतीयता तो हमारे जीवन में रची-बसी है। अंग्रेज़ बहुत कुछ छोड़ गए हैं, क्या हमने उन सब का त्याग कर दिया है? क्या हमने उन समस्त बातों और उत्पादों को त्याग दिया है जिसे अंग्रेजों ने विरासत में हमें दी थी? मैं क्या उदाहरण दूं आप स्वयं इस पर ग़ौर करें और सोचें कि मात्र नव वर्ष न मनाने से हमारे परिवार में खुशी की लहर दौड़ जाएगी? मेरा विचार तो है कि जहाँ तक हो सके उन बुराइयों को छोड़ने की कोशिश करें जोकि हमें अंग्रेज़ों ने दी है। सार-सार को गहि रखैं, थोथा देंय उड़ाय। हमारा समाज अंग्रेज़ों की सबसे बड़ी खामी अंग्रेज़ी भाषा ही नहीं छोड़ रहा है जिसकी वजह से समाज में खांई बन गई है। पढ़ा लिखा इंसान गांव वालों को कमतर आंकता है और पढ़ लिखकर गांव से निकलता है तो फिर वापस गांव जाता ही नहीं। आप और मैं गांव के हैं। हमारा मन तो आज भी गांव में बसता है। अपनी बचत का तीन चौथाई गांव में खर्च कर रहे हैं। अतः न संस्कृति भूलेगी न छूटेगी। अब तो ऐसा दौर आ गया है कि गांव के लोग भी अपने बच्चे को गांव में नहीं रहने देना चाहते हैं और अपनी भाषा के बजाय अंगेरज़ी के मोहजाल में उलझा हुआ है।

रविवार, दिसंबर 19, 2010

विजेता बनाम विजित



भारतीय तट रक्षक संगठन ने 11 दिसंबर 2010 को अपने बेड़े में ICG VIJIT नामक जहाज़ को शामिल किया और इसका लोकार्पण रक्षा राज्य मंत्री श्री पल्लम राजू ने किया। उसके बाद लगभग एक सप्ताह बाद विवाद खड़ा हुआ कि "विजित" नाम तो ग़लत है क्योंकि विजित का मतलब होता है "हारा हुआ"। विजित शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है- वि (उपसर्ग) + जि (धातु-जीतना) + क्त (प्रत्यय-पूर्ण भूतकालिक)। इसमें "वि" उपसर्ग विपरीत अर्थ देने वाला है। यह बात तो कोई भी हिंदी अधिकारी जानता है। क्या इस जहाज़ के नामकरण के समय किसी हिंदी अधिकारी से सलाह नहीं ली गई थी या हिंदी वाले ने ही ग़लत नाम सुझाया था? इस बेड़े का निर्माण गोवा शिपयार्ड लिमिटेड ने किया है। वहाँ भी राजभाषा विभाग है और राजभाषा अधिकारी भी। भारतीय तट रक्षक संगठन में भी राजभाषा कक्ष होगा ही। अतः नामकरण से पूर्व कोई संजीदगी बरती गई है ऐसा नहीं लगता है।     

सन् 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान की हार हुई थी और जब  पाकिस्तानी कमांडिंग इन चीफ़ जनरल नियाज़ी ने हमारे जनरल अरोड़ा के सामने घुटने टेके थे और भारतीय अखबार ने लिखा था कि दोनों जनरल एनडीए के पास आउट हैं और एक ही बैच के, परंतु एक विजित और दूसरा विजेता। मतलब नियाजी हारे हुए और अरोड़ा जीते हुए के रूप में। यह बात किसी और को याद रहे  न रहे परंतु सेना के संगठनों तथा सेना में कार्यरत हिंदी वालों को तो याद रहनी ही चाहिए।

अमरीका में प्रथम नाम के रूप में VIJIT शब्द बहुत प्रचलित है। आज की तारीख में 443 अमरीकियों का नाम विजित है। उनके अनुसार विजित का अर्थ है zest, better, excelled. अब अगर अमरीकी प्रभाव मानें और नामकरण में उनकी सलाह मानें तो यह नाम सही ही लगता है। परंतु यह बात हज़म नहीं होती। क्या हम 'राजा राम' को 'बादशाह राम' कहकर पुकार सकते हैं या 'सीता' को 'राम की बेग़म सीता'। अंग्रेज़ी के कुप्रभाव का एक और उदाहरण। यह कुप्रभाव हम कब तक ढोते रहेंगे?


सोमवार, दिसंबर 13, 2010

अभिव्यक्ति की आज़ादी और बयान वापस लेने की कला


अभिव्यक्ति की आज़ादी हमारा सांविधानिक अधिकार है और हम इसका भरपूर उपयोग कर रहे हैं। यह ऐसा अधिकार है कि हम जब चाहें, जो चाहें बोल सकते हैं। किसी के भी खिलाफ़ बोल सकते हैं। ज़्यादा से ज़्यादा इतना ही तो करना होगा कि जब दूसरों को आपत्ति हो तो मीडिया में कह देंगे कि मेरी बात को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत किया गया है या मैं भी तो इसमें शामिल हूं और मैं अपना बयान वापस लेता हूं। यह तो वैसे ही है कि सरे आम जूता मार अकेले में अफ़सोस ज़ाहिर करना। संविधान चाहे जो भी प्रावधान करता हो, कानून की व्याख्या द्वारा, मेरा विचार है कि किसी भी जन प्रतिनिधि को बयान वापस लेने की आज़ादी नहीं होनी चाहिए। यदि उसका बयान जन विरोधी हो तो उसे जनता की अदालत में ही सफाई पेश करनी चाहिए। गृह मंत्री, चिदंबरम् का बयान किसी भी प्रकार से क्षम्य नहीं है। यह तो अरुंधती रॉय के बयान से भी ज़्यादा ख़तरनाक है। इससे तो यही ध्वनित होता है कि भारत का कोई भी व्यक्ति अपने घर के बाहर जाए ही नहीं। चिदंबरम् को दिल्ली छोड़कर चिदंबरम (तमिल नाडु) वापस चला जाना चाहिए।  

गुरुवार, दिसंबर 09, 2010

भारत सरकार का वार्षिक कार्यक्रम और अनुपालन में संजीदगी की ज़रूरत



भारत सरकार ने वर्ष 2010 11 के वार्षिक कार्यक्रम में अनेक बातें लिखी हैं परंतु ये दो बातें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और इन पर बहुत गंभीरता से कार्रवाई करना ज़रूरी है।  
पहली बात, "राजभाषा कार्य से संबंधित अधिकारियों को विभाग के समस्त कार्यकलापों से परिचित कराया जाना आवश्यक है, जिससे कि वे अपने दायित्व अच्छी तरह निभा पाएं।"
पहली बात के बारे में, भारत सरकार ने, देर ही सही लेकिन समयबद्ध कार्यक्रम के ज़रिए इसे पूरा करने की ज़िम्मेदारी संस्थाओं पर डाली है और यह अच्छी बात है क्योंकि प्रशिक्षण के नाम पर राजभाषा अधिकारियों को अंतिम पायदान पर रखा जाता हैं जिसका नंबर ही नहीं आता।  मैंने पहले भी विचार व्यक्त किया था कि राजभाषा अधिकारी अपने आप में एक संस्था की भाँति है जो अनुवाद करता है, शिक्षण करता है, जन संपर्क का कार्य करता है, सृजनात्मक लेखन कार्य करता है, पत्रिका का संपादन करता है, हिंदी समारोह का मंच संचालन भी करता है, हिंदी को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शनी आयोजित करता है साथ ही कार्यालय का अन्य काम भी करता है। आज उससे कंप्यूटर के ज्ञान के साथ हिंदी में काम करने के लिए लोगों को कंप्यूटर का प्रशिक्षण देने की भी अपेक्षा की जाती है। ऐसे में यदि एक अधिकारी से विविध भूमिकाओं की अपेक्षा की जाती है तो उसे गहन प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। परंतु इस अधिकारी की भर्ती करके इसे विभाग में नियुक्त कर दिया जाता है और कहा जाता है कि संस्था/विभाग में हिंदी में सारा काम करने की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है लेकिन उसे संस्था/विभाग के कार्यों की सुनियोजित जानकारी या प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है जबकि संगठन से अपेक्षा की जाती है कि उसे संस्था/विभाग के समस्त कार्य की समग्र जानकारी तथा आधुनिकतम प्रौद्योगिकी का गहरा और व्यापक प्रशिक्षण देकर इस प्रकार योग्य बनाए कि वह उक्त सारे कार्यों को अंजाम दे सके।
अतः भारत सरकार (राजभाषा विभाग) ने, सन् 1975 (विभाग की स्थापना) से अब तक पहली बार राजभाषा अधिकारियों के बारे में सकारात्मक पहल की है और समयबद्ध कार्यक्रम के ज़रिए इसे सुनिश्चत करने की बात कही है। अब भारत सरकार के कार्यालय, सरकारी क्षेत्र के उपक्रम, बैंक, केंद्र सरकार के नियंत्रण के निगम और आयोगों में कार्यरत राजभाषा विभागों की ज़िम्मेदारी है कि अपने राजभाषा अधिकारियों के गहन और विकासात्मक कार्यक्रम बनाएं और उन्हें प्रशिक्षित करके सक्षम बनाएं ताकि वे अपनी भूमिका सकारात्मक ढंग से निभाए।  
दूसरी बात, "भारतीय प्रशासनिक सेवा और अन्य अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के लिए लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में प्रशिक्षण के दौरान हिंदी भाषा का प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से दिया जाता है, ताकि सरकारी कामकाज में वह इसका प्रयोग कर सकें तथापि, अधिकांश अधिकारी सेवा में आने के पश्चात् सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग नहीं करते इससे उनके अधीन कार्य कर रहे अधिकारियों/ कर्मचारियों में सही संदेश नहीं जाता परिणामस्वरूप, सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग अपेक्षित मात्रा में नहीं हो पाता मंत्रालयों/विभागों/कार्यालयों/उपक्रमों आदि के वरिष्ठ अधिकारियों का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह अपने सरकारी कामकाज में अधिक से अधिक हिंदी का प्रयोग करें इससे उनके अधीन कार्य कर रहे अधिकारियों/ कर्मचारियों को प्रेरणा मिलेगी तथा राजभाषा नीति के अनुपालन को गति मिलेगी।" 
इस बारे में, मेरा विचार है कि मंत्रालयों/विभागों/कार्यालयों/उपक्रमों आदि के वरिष्ठ अधिकारियों के इस संवैधानिक दायित्व के बारे में उच्च स्तरीय, मानसिकता परिवर्तन कार्यक्रम आयोजित करके उन्हें प्रेरित किया जाए और तुरंत हिंदी में काम शुरू करके अपने मातहत काम करने वालों को संदेश दें कि हिंदी में काम किया जाए तथा हिंदी में काम करना अनिवार्य है।

रविवार, दिसंबर 05, 2010

साइबर अपराध - अपरिहार्य परंतु रोकथाम संभव

राजभाषा विकास परिषद ने अभी नवंबर में साइबर अपराध और निवारक उपाय विषय पर तीन दिन का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया था (यद्यपि उसमें संस्थाओं की सहभगिता नगण्य थी) और उस समय कंप्यूटर विशेषज्ञों ने कहा था कि साइबर अपराध तो रोकना संभव नहीं है क्योंकि अपराधियों के उपजाऊ दिमाग़ केवल अपराध के बारे में ही प्रयासरत रहते हैं जब कि हमें अपने दैनिक काम को निपटाने के साथ साथ साइट व अपने कंप्यूटरों की सुरक्षा का भी ध्यान रखना होता है। पुलिस ही अपराधों की छानबीन करती है और अपराधियों को सज़ा भी दिलाती है परंतु उसी की साइट हैक हो जाए, वह भी जो कि बहुत ही संरक्षित साइट हो (सी.बी.आई. की साइट पाकिस्तानी हैकरों द्वारा हैक कर ली गई) तो आप क्या कहेंगे? अतः यह मानकर न बैठें कि हमने फ़ायर वॉल लगा दिया है या इंट्रू़ज़न डिटेक्शन सिस्टम (आई डी एस) लगा दिया है तो हमारी साइट सुरक्षित हो गई है। हमें निरंतर, मतलब हर क्षण, चौकस रहना होगा तथा सिक्यूरिटी ऑडिट पर ध्यान देना होगा। सरकारी कार्यालयों और एन आई सी द्वारा चलाई जा रही साइटों की सिक्यूरिटी ऑडिट पर ध्यान न देना सबसे बड़ी कमी है। चौकस रहना ही सुरक्षा की गारंटी है। 


क्या रुपए का नया प्रतीक क्षेत्रीयता का परिचायक है?