शुक्रवार, सितंबर 12, 2014

हिंदी दिवस 2014

नई सरकार, नई सोच परंतु ब्यूरोक्रेसी की वही पुरानी सोच और चाल। लेकिन हिंदी को सफर करना है और करती रहेगी क्योकि चलना ही ज़िंदगी है। दो दिन बाद हिंदी दिवस है और कहीं कोई समाचार, झंडे पताके दिखावे के लिए भी नहीं दिखाई दे रहे हैं। लगता है कार्यालयों में कार्यरत हिंदी कर्मी भी आश्वस्त हो गए हैं कि हिंदी को जब अपने आप ही आना है तो क्यों घबड़ाना। कम से कम मोदी जी तो हिंदी में बोलते ही हैं।

क्या रुपए का नया प्रतीक क्षेत्रीयता का परिचायक है?