मंगलवार, मार्च 30, 2010

राष्ट्र और राष्ट्रभाषा

हमारे देश का अपना राष्ट्रध्वज है, हमारा अपना राष्ट्रगान है, राष्ट्रपशु है, राष्ट्रपक्षी है और भी बहुतसी राष्ट्रीय वस्तुएं हैं परंतु हमारी राष्ट्रभाषा नहीं है। ऐसा क्यों ? ये राष्ट्रीय वस्तुएं या तो संख्या में एक हैं या फिर किसी जाति विशेष का द्योतक। उसी प्रकार हमारी राष्ट्रीय भाषा भी भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं की सूचक हो सकती है यदि हम इसे राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा दे दें। परंतु हम ऐसा होने नहीं देंगे क्योंकि हम प्रछन्न विद्वेष की संकुचित विचारधारा में फंस गए हैं।

2. मेरा विचार है कि यदि हिंदी देश का प्रतिनिधित्व करती है तो इसे राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा दिया जाना आवश्यक है क्योंकि देश के बाहर इसका प्रतिनिधित्व तो हिंदी ही करती है। हम यू. एन. ओ. में हिंदी का प्रयोग कराना तो चाहते हैं परंतु देश में इसकी हालत को सुधारने के बारे में चिंतित नहीं हैं। यदि हमने राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान, राष्ट्रपशु, राष्ट्रपक्षी स्वीकार किया है तो राष्ट्रभाषा नाम स्वीकार करने में कोई हर्ज़ नहीं है। यदि राष्ट्र शब्द से परहेज़ करना ही है तो किसी वस्तु को राष्ट्र का नाम न दिया जाए। राष्ट्र के अंदर रहने वाली सभी वस्तुएं जब स्वयमेव राष्ट्रीय हैं तो राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान, राष्ट्रपशु, राष्ट्रपक्षी घोषित करने की क्या ज़रूरत है? परंतु हमने सम्मान देने के विचार से जब राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान, राष्ट्रपशु, राष्ट्रपक्षी घोषित कर ही दी है तो हिंदी को राष्ट्रभाषा कहने में संकोच नहीं करना चाहिए। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले हिंदी को राष्ट्रभाषा ही कहा जाता था। इसके प्रचार प्रसार के लिए 'राष्ट्रभाषा प्रचार सभा' की स्थापना की गई थी। संविधान समिति की बैठकों में भी राष्ट्रभाषा शब्द का ही प्रयोग किया जाता था। बाद में, संकुचित विचारधारा के लोगों की चाल में आकर संविधान में 'राजभाषा' का नाम दे दिया गया। इसे राष्ट्रीय सम्मान या गौरव का रूप न देकर मात्र राजकाज की भाषा का दर्ज़ा दे दिया गया जिसका अस्तित्व ब्यूरोक्रेसी की मानसिकता, उसकी सुविधा, असुविधा और दया पर निर्भर है। ब्यूरोक्रेसी यह तय कर रही है कि हिंदी का प्रयोग कितनी मात्रा में और किस काम के लिए किया जाए, वह भी ज़रूरी नहीं है? अतः हिंदी के लिए राष्ट्रभाषा शब्द ही उचित है।

3. यदि राष्ट्र शब्द की परिभाषा देखी जाए तो उसके अनुसार भी हिंदी के लिए राजभाषा नहीं बल्कि राष्ट्रभाषा शब्द ही उचित है। हमने अपना संविधान अंग्रेज़ी में लिखा है और इसे स्वयं को सौंपा है। उसी संविधान में हिंदी के लिए Official Language अभिव्यक्ति का उपयोग किया गया है जब कि संविधान समिति की चर्चाओं में National Language अभिव्यक्ति का उपयोग किया गया है(देखें पार्लियामेंटरी डिबेट्स भाग 11)। इसमें लैंग्वेज शब्द पर किसी को ऐतराज़ नहीं था। ऐसे में नैशनल शब्द पर ही आपत्ति थी। हम नैशनल शब्द की व्युत्पत्ति और इसके डिक्शनरी अर्थ पर विचार करें तो किसी नतीज़े पर पहुंच सकते हैं। इसके लिए हम ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी का सहारा ले सकते हैं क्योंकि अंग्रज़ी के लिए ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी प्रामाणिक मानी जाती है। ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी में दी गई व्याख्या के अनुसार नेशन शब्द का अर्थ है, 'व्यक्तियों का समुदाय/समूह, मुख्य रूप से जो किसी मुश्तरका (कॉमन) पूर्वजों से निकला हो, जिसका इतिहास एक हो, जिनका भाषा एक हो, जो किसी देश या क्षेत्र में वास करके हों।'

4. इस परिभाषा के अनुसार तो भारत एक राष्ट्र हुआ और इसकी जनता की एक भाषा होनी चाहिए जो सभी के बीच संपर्क सूत्र का काम करे। ऐसे में हिंदी की भूमिका निश्चत ही राष्ट्रभाषा की है क्योंकि हमने ही इसे 1947 में ही राष्ट्रभाषा मान लिया था कि यही समस्त भारत की, देश और विदेश में भी मुश्तरका संस्कृति की वाहिका होगी। अतः हिंदी राष्ट्रभाषा है और इसे राजभाषा न कहकर राष्ट्रभाषा ही कहा जाना चाहिए।

5. क्या हमारी संसद जिसके सदस्य जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं और संसद में ली गई शपथ का निर्वाह करते हैं तथा 1968 में दोनों सदनों के समक्ष पारित संकल्प का सम्मान करते हैं, अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास करते हुए पुनः संसद में संकल्प पारित करके इसे राष्ट्रभाषा का नाम देगी तथा अनंतकाल तक अंग्रेज़ी को चलने से रोकने की कार्रवाई शीघ्र करेगी?

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