गुरुवार, जून 09, 2011

भ्रष्टाचार की परिभाषा

जो चीज़ अत्यधिक व्यापक हो जाती है उसकी परिभाषा देना उतना ही मुश्किल होता है। परंतु तर्कशास्त्र के आधार पर इसे सिद्ध किया जा सकता है। जैसे ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है परंतु किसी को दिखाई नहीं देता है। लेकिन है। इसी तर्क पर भ्रष्टाचार को भी सिद्ध किया जा सकता है कि वह है। कहाँ है? कैसा दिखता है? उसका स्वरूप क्या है? आइए इसी आधार पर कुछ कोशिश की जाए कि भ्रष्टाचार किसे कहते हैं? जब एक बार रोग के लक्षणों के आधार पर इसका निदान हो जाए तो इलाज भी किया जा सकेगा।
भ्रष्टाचार के लक्षणों की पहचान करने के लिए अपने कुछ हम सोच वाले साथियों के साथ चर्चा की और यह तय किया गया कि हर व्यक्ति भ्रष्टाचार के एक लक्षण की पहचान करेगा और फिर समूह चर्चा के दौरान उसे बताएगा। इस निर्णय के बाद हम सब इस असाध्य काम में लग गए।
अपने-अपने असाइनमेंट को पूरा करने के बाद हम सब जब इकट्ठा हुए तो एक-एक करके अपने शोध परक विचार प्रस्तुत करने के लिए अपने बीच से ही एक संयोजक मनोनीत किए। फिर उसके समक्ष प्रस्तुतीकरण का सत्र शुरू हुआ। पहले शोधकर्ता ने संयोजक को संबोधित करते हुए आभार व्यक्त किया कि मुझे इस गुरुतर कार्य में योगदान करने का अवसर दिया गया और उसके बाद उन्होंने दार्शनिक की मुद्रा में कहा कि जहाँ तक हमारी दृष्टि गई हमें भ्रष्टाचार नज़र आया। संयोजक ने तुरंत टोका कि हमें तो भ्रष्टाचार को पहले परिभाषित करना है। हमें तो यही नहीं मालूम कि भ्रष्टाचार है क्या? अतः पहले भ्रष्टाचार के लक्षण तो बताएँ। उन लक्षणों में से निचोड़कर परिभाषा देना तो संयोजक का काम है। इसलिए आप भ्रष्टाचार के लक्षण गिनाएँ।
इसके बाद प्रथम पुरुष ने अपनी दूर और व्यापक दृष्टि को थोड़ा संकुचित किया तथा छोटे दायरे में भ्रष्टाचार के लक्षण खोजने की कोशिश की एवं बहुत कोशिश करके नेताओं के अंदाज़ में कहा कि भ्रष्टाचार समाज में लगा दीमक है जो समाज की जड़ को खोखला कर रहा है। संयोजक ने फिर टोका कि भ्रष्टाचार क्या है? इस बार कुछ और संकुचित हुए और किसी बुद्धिजीवी के रूप में थोड़ा संयत हुए और बोले कि भ्रष्टाचार को परिभाषित करने के लिए हमें कार्ल मार्क्स, लेनिन, नेहरू, लोहिया आदि के साहित्य का अध्ययन करना चाहिए और भ्रष्टाचार की परिभाषा वैश्वीकरण, सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार के संदर्भ में संशोधित करके नियत करना चाहिए। अब संयोजक को लगने लगा कि ये सज्जन हमें भटकाने का प्रयास कर रहे हैं। अतः उनसे कहा कि यह आपके लिए अंतिम अवसर है। यदि इस बार भ्रष्टाचार के लक्षण नहीं बताएँगे तो हम समय नष्ट नहीं करेंगे और अगले शोधकर्ता को आमंत्रित करेंगे। अब उस सज्जन ने अपने अंतिम प्रयास में आम आदमा की तरह भ्रष्टाचार के लक्षण को परिभाषित करने का प्रयास किया और बताया कि "ईमानदारी, सदाचार, नैतिक सिद्धांतों का ह्रास होना भ्रष्टाचार है।" लोगों ने तालियाँ बजाईं और बधाई दी कि वाह क्या मौलिक परिभाषा दी है भ्रष्टाचार की।
इसके बाद संयोजक ने द्वितीय पुरुष से कहा आप भ्रष्टाचार की अपनी परिभाषा दें। इस सज्जन के दिमाग़ में, विषयांतर होने पर संयोजक के टोकने की बात ताज़ा थी अतः बोले कि मैं सीधे ही परिभाषा पर आता हूँ। एक दूसरे शोधकर्ता ने टिप्पणी की कि यह कहने की क्या आवश्यकता है? सीधे ही परिभाषा पर आइए न। सज्जन ने कहा कि ठीक है ठीक है परिभाषा पर ही आता हूँ। अतः उन्होंने कहा कि "शुद्धता या ईमानदारी की हानि, दुष्टता की ओर झुकाव और अशुद्धता एवं रिश्वतखोरी ही भ्रष्टाचार है।" लोगों ने तालियाँ बजाईं और बधाई दी कि परिभाषा में नए आयाम जोड़े हैं।
इसके बाद संयोजक ने तृतीय पुरुष से कहा आप भ्रष्टाचार की अपनी परिभाषा दें। इस सज्जन ने कोई भूमिका नहीं बाँधी और सीधे ही कहा कि "शुद्ध, सरल या सही से च्युत होना, अच्छे से बदलकर बुरा बनना ही भ्रष्टाचार है।" लोगों ने तालियाँ बजाईं और बधाई दी कि आम आदमी की समझ में आने वाली परिभाषा दी है भ्रष्टाचार की। संयोजक को समझ में नहीं आया कि लोग किस बात की तारीफ़ कर रहे हैं? इन परिभाषाओं से तो मुझे ही नहीं समझ में आया कि भ्रष्टाचार क्या है तो आम आदमी को क्या समझ में आएगा कि भ्रष्टाचार क्या है?
इसके बाद संयोजक ने चतुर्थ पुरुष से कहा आप भ्रष्टाचार की अपनी परिभाषा दें। इस सज्जन ने भ्रष्टाचार की परिभाषा इस प्रकार की - "अनुचित साधन (रिश्वत के रूप में) द्वारा प्रलोभन देकर, लोक सेवक को कर्तव्य का उल्लंघन करने (घोर अपराध करने) के लिए प्रेरित करना भ्रष्टाचार है।" इस बार संयोजक कुछ संतुष्ट नज़र आए। लोगों ने तालियाँ बजाईं और बधाई दी।
इसके बाद संयोजक ने पंचम पुरुष से कहा आप भ्रष्टाचार की अपनी परिभाषा दें। पंचम पुरुष से कहा कि "किसी साधन या कृत्य द्वारा, किसी किन्हीं लोगों की ईमानदारी या निष्ठा को कम करना, ग्रामीण भोलेपन की प्रवृत्ति को समाप्त करने का प्रयास करना ही भ्रष्टाचार है।" इस बार भी संयोजक को लगा कि भ्रष्टाचार की परिभाषा कुछ समझ में आने वाली नहीं है और असंतुष्ट नज़र आए। फिर भी इस बार उन्होंने भी ताली बजाई और बधाई दी क्योंकि यह अंतिम शोधकर्ता था। इसके बाद उन्होंने कहा कि इन सब लक्षणों का समावेश करते हुए आसान, सर्व समावेशी और तर्क संगत परिभाषा बाद में घोषित करूंगा और बैठक बर्ख़ास्त कर दी।
चारों ओर भ्रष्टाचार का शोर है। सदाचार और नैतिकता का ज़ोर है। फिर भी बरकत नहीं है क्योंकि नीयत की खराबी है। अब इन लक्षणों से भ्रष्टाचार की परिभाषा आप कर सकते हों तो इसे सिविल सोसायटी के पास भेज दिया जाए ताकि लोकपाल विधेयक में संशोधन किया जा सके।
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सोमवार, जून 06, 2011

भवन निर्माण की तकनीक में `इंटेलिजेंट बिल्डिंग्स' (अर्थप्रद भवन) और `इंटेलिजेंट होम्स'

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर ऊर्जा बचत और ग्रीन हाउस की संकल्पना पर लेख। डॉ. दलसिंगार यादव द्वारा लिखित, राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा पुरस्कृत लेख है।)

भवन निर्माण की तकनीक में `इंटेलिजेंट बिल्डिंग्स' (अर्थप्रद भवन) और `इंटेलिजेंट होम्स' ऐसी संकल्पनाएं (कांसेप्ट) हैं जिनमें सिविल इंजिनियरिडग, इलेक्ट्रॉनिकी, विद्युत विज्ञान, ऊर्जा संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण, सुरक्षा के प्रवेश नियंत्रण (एक्सेस कंट्रोल), दृश्यश्रव्य व मनोरंजन प्रणाली, वायु आवागमन, पानी की सफाई, उपयोग में लाए गए पानी की सफाई व उनका पुनः उपयोग, कूड़ा कचरा निपटान आदि का स्वचालित ढंग से अंजाम देने जैसे अनेक पहलू शामिल हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर (आधारभूत कार्य ढांचा) में बुनियादी ज़रूरतों की वे सभी व्यवस्था शामिल हैं जो सुगम, स्वस्थ एवं शांतिपूर्वक जीवन यापन के लिए ज़रूरी हैं। अतः भवन निर्माण के लिए स्थल विकास से शुरू करके भवन निर्माण के बाद उसमें नियमित कार्यव्यापार प्रारंभ हो जाने और उसके सतत उपयोग तक की बातों का ध्यान रखना पड़ता है। अतः इस संदर्भ में इस लेख की संकल्पना तीन शब्दों, `इंटेलिजेंट', `अर्बन बिल्डिंग्स' तथा `इन्फ्रास्ट्रक्चर' में समाहित है। ये तीनों शब्द मूलतः आधुनिक प्रौद्योगिकी से संबंधित हैं।
इंटेलिजेंट बिल्डिंग यानी कि उसमें आधुनिकतम स्वचालित सूचना प्रौद्योगिकी का इष्टतम उपयोग हो। उसमें लगे गैजेट और अन्य युक्तियां, आधुनिक विज्ञान के चमत्कार की भांति हों। प्रौद्योगिकी के बारे में `इंटेलिजेंट' शब्द के प्रयोग का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। यह शब्द तब प्रयोग में आया जबकि बुद्धिमान मानव ने अपना मेकैनिकल काम जो पुनरावृत्ति (रेपिटेटिव) स्वरूप का होता है उसे स्वचालित रूप से, तीव्र गति से तथा परिशुद्धता पूर्वक करते रहने की प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए युक्तियों (डिवाइसेज़) का निर्माण किया। इस संबंध में `इंटेलिजेंट' वह होता है जिसमें किसी जानकारी या आंकड़े की प्रोसेसिंग (संसाधित) करने की क्षमता होती है। प्रोसेसिंग वही करेगा जिसमें प्रोसेसर लगा होगा। प्रोसेसर वह कृत्रिम युक्ति है जो कंप्यूटर विज्ञान के आधार पर एकीकृत परिपथ बोर्ड (इंटीग्रेटेड सर्किट बोर्ड) पर छापे गए अनुदेशों को पढ़ने तथा उसे अनुभाषित (कंपाइल) करके कार्रवाई करने की क्षमता हो। किसी भी स्मार्ट युक्ति का मतलब होता है - वह उपकरण जिसमें भंडारित जानकारी या अनुदेश के आधार पर प्रोसेसिंग करके परिणाम निकालना तथा उसके अनुसार काम को अंजाम देना। अतः इस विषय के संदर्भ में, शहरों में बनने वाले भवनों में `इंटेलिजेंट' युक्तियों का उपयोग तथा बुनियादी ढांचों की आवश्यकता पर आगे विभिन्न उपशीर्षों में चर्चा की जा रही है।
शहरीकरण की प्रवृत्ति और जनित समस्याएं
शहरीकरण का दायरा पूरे विश्व में बढ़ रहा है। वास्तव में यह वृद्धि बीसवीं सदी में अभूतपूर्व घटना है। सन् 1990 तक विश्व की केवल 29.8 1 प्रतिशत जन संख्या शहरी क्षेत्रों में निवास करती थी जो सन् 2000 में 47.2 प्रतिशत हो गई तथा सन् 2030 में 60.2 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। अतः बीसवीं सदी में अभूतपूर्व तरीके से शहरीकरण हुआ है और यह आश्चर्यजनक बात है कि पूरा विश्व इस दौर से गुज़र रहा है। इस समय हम इतिहास के उस मोड़ पर खड़े हैं जहां शहरों में रहने वालों की संख्या उतनी हो जाने वाली है जो कि कभी ग्रामीण आबादी की हुआ करती थी। यह परिवर्तन एशिया में और तीव्र गति से हो रहा है और भारत एशिया का प्रमुख बड़ा देश है जहाँ ग्रामीण जनसंख्या का शहरों की ओर तीव्र गति से पलायन जारी है। तेज़ी से हो रहे शहरीकरण की स्थिति अप्रत्याशित है और इससे मानवीय भूगोल इतना बदल गया है जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते थे। अतः 21 वीं शताब्दी शहरी शताब्दी होगी। मानव इतिहास में पहली बार ऐसा होगा कि गांव से अधिक लोग शहर में रहेंगे। यह पूरी तरह सिद्ध हो चुका है कि शहरीकरण की गति आम तौर पर आर्थिक वृद्धि की गति से जुड़ी होती है। आर्थिक संपन्नता का प्रमुख औद्योगीकरण है और उद्योगों का जुड़ाव शहरीकरण से है क्योंकि शहरीकरण को जिन बातों से प्रोत्साहन मिलता है, वे हैं - विनिर्माण क्षेत्र (मैन्युफ़ैक्चरिंग), सूचना प्रौद्योगिकी का विस्तार, प्रौद्योगिकी विकास - खास तौर से भवनों और परिवहन जैसी बुनियादी ढांचे की व्यवस्था। जैसे-जैसे विनिर्माण प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर विस्तार होने लगता है तो निर्माण व्यय में किफ़ायत होने लगती है और परियोजना के आकार में वृद्धि। जब लोगों का शहरों की ओर पलायन को रोकना संभव न हो ते ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि अधिक से अधिक लोगों के बसने की आवश्यकता की पूर्ति हो सके। जब लोगों की आबादी बढ़ेगी तो उन्हें वांछित सेवाओं, भवनों की आवश्यकता होगी। इसका परिणाम यह होगा कि अधिक लोग एक साथ रहना शुरू कर देंगे। इसी प्रकार शहरों का उद्गम हुआ है और शहरीकरण बढ़ाता रहा है। शहरों में भूमि की कमी होने के कारण ऊंची इमारतें बनाने, कम स्थान में अधिक आबादी बसाने की मज़बूरी पैदा हो गई है तथा बुनियादी ढांचे पर भी दबावे बढ़ने लगा है। ऐसे में यह आवश्यक है कि `इंटेलिजेंट बिल्डिंगों' का निर्माण हो तथा उनकी प्रबंध प्रणाली ऐसी हो जिससे सुविधाओं का बेहतर प्रबंध हो, उनकी आयोजना की जा सके पर्यावरण प्रदूषण से बचाव की समस्याएं का निराकरण हो।
इंटेलिजेंट बिल्डिंग (अर्थप्रद भवन)
इंटेलिजेंट बिल्डिंग और बिल्डिंग मैनेजमेंट सिस्टम (भवन प्रबंध प्रणाली) संकल्पना का स्रोत 1970 के दशक में औद्योगिक क्षेत्र में नियंत्रण संबंधी तकनीकों का उपयोग है। इस प्रणाली के माध्यम से सभी सेवाओं और उपस्करों (इक्विपमेंट) का एकीकरण है जो संबंधित भवन के पर्यावरण का प्रबंध करने के लिए सेवाएं देते है एवं उनका प्रबंध करते हैं। नियंत्रण संबंधी तकनीकों का आधार प्रोग्रामिकल लॉजिक कंट्रोलर (पीएलसी) होता है। वाणिज्यिक और आवासीय उपकरणों का विकास `डिस्ट्रीब्यूटेड इंटेलिजेंस माइक्रो प्रोसेसरों' के आधार पर हुआ। 1970 के दशक में जो प्रौद्योगिकी औद्योगिक क्षेत्र में प्रयुक्त होती थी वह 1980 के दशक में वाणिज्यिक और आवासीय भवनों में भी प्रयुक्त होने लगी। उनके आधार पर ठंडे क्षेत्रों के भवनों को गरम रखने, गरम क्षेत्रों के भवनों को ठंडा रखने, प्रकाश के उपकरणों को आवश्यकतानुसार स्वचालित ढंग से चालू करना उन्हें बंद करना, ऊर्जा की बचत करना आदि नियंत्रण तकनीकों का विकास किया गया। (यहां पर उनमें से कुछ आधारभूत तथा प्रमुख तरीकों व प्रणालियों की चर्चा की जाएगी।) इन तकनीकों का उपयोग करके सेवाओं तथा ऊर्जा की लागत में भारी बचत की जा सकती है।
इसके लिए अनेक तरीके हैं जिनसे भवनों की सेवाओं को भवन के अंदर नियंत्रित किया जा सकता है। ऐसे उपकरणों को मोटे तौर पर दो वर्गों में रखा जा सकता है - एक समय आधारित (टाइमबेस्ड) - जब ज़रूरत हो तभी एयरकंडिशनिंग एवं प्रकाश के उपकरणों को चालू रखा जाए और दूसरा, इष्टतम उपयोग मापदंड आधारित (ऑप्टिमल यूसेज़ मेज़र्स बेस्ड) - वांछित मात्रा के अनुसार एयरकंडिशनिंग, प्रकाश आदि की उपलब्धता सुनिश्चित करना। ऐसी सुविधाओं से युक्त भवनों को `इंटेलिजेंट बिल्डिंग' की श्रेणी में रखा जाता है।
एयरकंडिशनिंग के तरीके
तापमान नियंत्रण (टेम्परेचर कंट्रोल); प्रतिपूरित प्रणालियां (कंपेंसेटेड सिस्टम्स); थर्मोस्टेट द्वारा गर्मी निकालने का वॉल्व (थर्मोस्टैट रेडिएटर वॉल्व); आनुपातिक नियंत्रण (प्रोपोर्शनल कंट्रोल) - स्वचालित ढंग से उपस्करों का चालू और बंद होना ताकि उससे मिलने वाला परिणाम नियंत्रित हो सके। इसके लिए अन्य तरीके भी हैं जिनमें, थर्मोस्टैट, व्यक्तियों की उपस्थिति के अनुसार पीआइआर (पैसिव इन्फ्रारेडसेंसर) प्रणालियां/यदि भवन में/कार्य स्थल पर कोई व्यक्ति न हो तो बत्तियाँ अपने आप बंद हो जाएं, एयरकंडिशनिंग प्लांट का उत्पादन कम हो जाए आदि।
प्रकाश नियंत्रण तरीके
ऊपर जो दो वृहत् श्रेणियां बताई गई हैं उनके आधार पर इंटेलिजेंट भवन में प्रकाश नियंत्रण की अनेक प्रणालियां उपलब्ध हैं। उनका उपयोग किया जाता है।
क्षेत्र के अनुसार बिल्डिंग के अलग-अलग क्षेत्रों के लिए ऐसी व्यवस्था होती है ताकि क्षेत्र के लेआउट के अनुसार बत्तियां जलाई और बुझाई जा सकें। अतः जब थोड़े से क्षेत्र में प्रकाश की ज़रूरत हो तो उतने ही क्षेत्र की बत्तियां जलाई जाएं। यह काम तीन तरीके से किया जा सकता है :-
1. समय नियंत्रण - इस विधि के प्रयोग से एक समय सारणी तय कर ली जाती है और बत्तियां उसी अनुसूची के अनुसार घड़ी के साथ जोड़कर स्वचालित रूप से जलती व बुझती हैं। जिस समय में उस क्षेत्र में कोई न हो या उस क्षेत्र में व्यक्तियों के आने के समय ही बत्तियां जलें।
2. पैसिव इन्फ्रारडे ऑकुपैंसी सेंसिंग - यह वह व्यवस्था है जब कोई क्षेत्र लगातार उपयोग में नहीं आता है। ऐसे में उपयोगों के बीच अंतराल के दौरान बत्तियां अपने-आप बुझ जाती हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि जब उस क्षेत्र में कोई न हो और सेंसर स्वचालित प्रणाली को इस बात की सूचना दे दे तो वह प्रणाली उसके अनुसार बत्तियां बुझा देगी और जब उस क्षेत्र में कोई व्यक्ति आ तो जला दी जाएंगी। मान लीजिए लिफ़्ट हो, मनोरंजन कक्ष हो तो उन स्थानों पर इन्फ्रारेड सेंसर लगा कर प्रकाश की व्यवस्था का नियंत्रण किया जाए।
3. प्रकाश की वांछित मात्रा का अनुप्रवर्तन (लाइट लेवल मॉनिटरिंग)
यह वह व्यवस्था है जो प्रकाश की कोशिकाओं (फोटो सेल) द्वारा नियंत्रित होती है। यहां भी सेंसिंग प्रणाली से स्वचालित रूप से नियंत्रण अथवा अनुप्रवर्तन किया जाता है। यदि ज़रूरत न हो तो बत्तियों की चमक को कृत्रिम रूप से कम करके ऊर्जा की बचत की जा सकती है।
भवन प्रबंध प्रणालियाँ और इंटेलिजेंट बिल्डिंग
अभी तक हमने इंटेलिजेंट बिल्डिंग के नियंत्रण संबंधी सिद्धांतों की चर्चा की है। अब हम इंटेलिजेंट बिल्डिंगों के प्रबंध की प्रणालियों पर चर्चा करेंगे। यह चर्चा ऊर्जा की बचत, पर्यावरण और ग्रीन हाउस, गैस के लाभों, इन प्रणालियों के बारे में बाज़ार में क्या रुझान है, व्यावहारिक लाभों के परिप्रेक्ष्य में चर्चा करेंगे।
ऊर्जा की बचत : हमारे देश में सभी स्रोतों से, पारंपरिक तथा अपारंपरिक दोनों, 621.5 बिलियन किलो वॉट विद्युत उत्पादन की क्षमता है (भारत का आर्थिक सर्वेक्षण 2005 - 06) यह उत्पादन क्षमता हमारी आवश्यकता से बहुत कम है। हमारे गांव आज भी अंधेरे में डूबे रहते हैं तथा शहरों में भी 24 घंटे निर्बाध आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इसके बावज़ूद हम अभी भी ऊर्जा के संबंध तथा ऊर्जा की बचत के प्रति सचेत नहीं हो रहे हैं। भवनों में यह पहलू उपेक्षा का शिकर रहा है या कहें कि जागरूकता के अभाव के कारण ऐसा है। अतः भवनों के प्रबंध में इस पहलू का इलाज इलेक्ट्रॉनिक नियंत्रण युक्तियों द्वारा संभव है। परंतु अब लोगों में जागृति आ रही है तथा संपदाओं के रखरखाव से संबंधित उपकरण विकसित करने में लगी प्रौद्योगिकी इकाइयां नए-नए अविष्कारों द्वारा लोगों को जागरूक बना रही हैं। व्यावसायिक या वाणिज्यिक भवनों के अलावा अब आवासीय भवनों में भी इनका प्रवेश हो चुका है।
प्रकाश के संबंध में इस विधि द्वारा ऊर्जा की बचत, मूल सर्किट भार के 75 प्रतिशत तक की जा सकती है। इससे किसी भी वाणिज्यिक अथवा आवासीय क्षेत्रों की कुल खपत की 5 प्रतिशत तक की बचत की जा सकती है। इसी प्रकार एयरकंडिशनिंग या पानी गरम करने के लिए मूल सर्किट भार के 10 प्रतिशत तक की बचत हो सकती है जो कि कुल खपत के 7 प्रतिशत के बराबर होता है।
हमारे देश में इस प्रकार का अध्ययन नहीं किया जाता है। परंतु आस्ट्रिया में इस प्रकार के अध्ययन से ज्ञात होता है कि सरकारी या सार्वजनिक भवनों में इस प्रकार की प्रबंध व्यवस्था करके 30 प्रतिशत तक बचत की जा सकती है (गैरी मिल्स - 2004)।
पर्यावरण और ग्रीन हाउस गैस के लाभ
ग्रीन हाउस का अर्थ हरित भवन या मकान नहीं है। ग्रीन हाउस का अर्थ शुद्ध पर्यावरण सहायक भवन है। उससे उत्सर्जित होने वाली गैसों में कमी तथा ऊर्जा की कम खपत होनी चाहिए। अतः इंटेलिजेंट भवन, भवन प्रबंध प्रणालियों का सीधा संबंध ऊर्जा में बचत करना है चाहे वे वाणिज्यिक, औद्योगिक, संस्थागत और आवासीय क्षेत्र से संबंधित हों। अतः संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इंटेलिजेंट भवन तथा उपयुक्त रूप से लागू की गई भवन प्रबंध प्रणाली पर्यावरण के दृष्टिकोण से अच्छी होती है।
सांविधिक और सरकार का समर्थन व आधारिक कार्य ढांचा
इंटेलिजेंट भवन निर्माण तथा भवन प्रबंध प्रणालियों से संबंधित प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए देश की सरकार का समर्थन ज़रूरी है। स्वास्थ्य के मानक, भवनों के अंदर शुद्ध हवा की उपलब्धता का स्टैंडर्ड (मानक) बनाए रखने संचार तंत्र के लिए विधिक समर्थन तथा नियंत्रण व निरीक्षण प्रणाली सुदृढ़ होनी चाहिए। इनका महत्व सबसे ज़्यादा है क्योंकि सरकार के समर्थन के बिना बुनियादी ढांचे (इन्फ्रास्ट्रक्चर) का निर्माण तथा उसका अनुरक्षण संभव नहीं है।
आज विश्वभर में ऊर्जा, पर्यावरण व प्रदूषण तथा जन स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है। सरकार भी सुरक्षा के दृष्टिकोण से भवनों में तरह-तरह की युक्तियां लगाने लगी हैं। बाज़ार में विश्व स्तर के मानकों वाली ताप नियंत्रण, पानी गरम करने तथा वातानुकूलन की प्रणालियां उपलब्ध हैं जिनके उपयोग से जीवन की गुणवत्ता तो बढ़ेगी ही साथ ही ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा में बचत होगी।
मौजूदा भवनों की स्थिति
फिल हाल तो, मेरी अधिकतम जानकारी के मुताबिक, देश में ऐसी कोई बिल्डिंग नहीं है जिसमें स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण, ऊर्जा तथा स्वच्छता के आइएसओ मानकों का अनुपालन किया जा रहा है। संसद भवन पर हमला, बंगलौर में विस्फोट, 26/11 के आतंकी हमले के मद्देनज़र कुछ जागरूकता बढ़ी है। परंतु अभी भी नाकाफ़ी है। भवनों में लगाई जाने वाली युक्तियों का प्रशिक्षण भवनों में युक्तियां लगा देने मात्र से ही भवन इंटेलिजेंट नहीं बन जाएंगे। इंटेलिजेंट भवनों में रहने वाले व्यक्तियों को शिक्षा देना; युक्तियों का उपयोग सरल और ज़रूरी तथा संगत अनुदेशों का प्रसार बहुत महत्वपूर्ण है। सिद्धांतों को व्यवहार में लाना ज़रूरी है। इंटेलिजेंट बिल्डिंग उनका अनुरक्षण महंगा पड़ता है। परंतु बिजली के बिल में भारी बचत होती है। लागत ज़्यादा होने के कारण लोग इन्हें लगाना नहीं चाहेंगे। अतः इंटेलिजेंट भवन के लाभ की जानकारी देकर लोगों को जागरूक बनाया जा सकता है।
कंप्यूटर प्रणाली तथा उसमें भी नवीनतम डिजिटल प्रौद्योगिकी के व्यापक रूप से उपयोग किए जाने के परिणाम स्वरूप संचार प्रणाली में अभूतपूर्व प्रगति हुई है और मानव जीवन में अब समय और दूरी का अंतराल समाप्त सा होता नज़र आने लगा है। अब लोग अपने घर को स्वयं पूर्ण तथा सर्व सुविधा संपन्न बनाने में लगे हैं जिससे उन्हें कारोबार या बैंक से धन लेने के लिए परिसर से बाहर न जाना पड़े। अतः अब इंटेलिजेंट भवन की संकल्पना आवासीय भवनों में भी प्रविष्ट हो रही है। इंटरनेट तथा केबल ने सारा संसार व मनोरंजन के साधनों को समेट का एक आंगन में रख दिया है। अतः इंटेलिजेंट होम की संकल्पना भी इंटेलिजेंट बिल्डिंग्स में समाहित हो गई है। हम यहाँ इंटेलिजेंट होम पर भी संक्षिप्त चर्चा करने जा रहे हैं।
स्मार्ट होम बिल्डिंग
स्मार्ट होम का मतलब वही है जो इंटेलिजेंट होम का है। स्मार्ट का मतलब है प्रोसेसर युक्त युक्ति। कुछ वर्ष पूर्व यह संकल्पना कपोल कल्पना तथा अंतरिक्ष की बात लगती थी। परंतु आज वास्तविकता है। कल्पना कीजिए आप अपने घर के पास पहुंचे और आपकी कार जैसे ही परिसर के पास पहुंचती है आपके भवन का गेट अपने आप खुल जाता है, सेक्यूरिटी एलार्म अपने आप बता देता है कि ख़तरा है या नहीं, गैरेज का शटर ऊपर उठ जाता है, कार पार्क करके कार से बाहर आते ही शटर अपने आप बंद हो जाता है, बत्ती बंद हो जाती है आपके फ्लैट का मेन डोर खुल जाता है। ए.सी. चालू होकर वांछित डिग्री पर तापमान पहुंच जाता है, म्यूज़िक सिस्टम चालू हो जाता है, बाथरूम में गीज़र चालू हो जाता है। ये सारी बातें पूर्व निर्धारित कंप्यूटर प्रोग्राम द्वारा पूरी होती हैं। ये सारी व्यवस्था आप अपनी ज़रूरत के अनुसार निश्चित करा सकते हैं। इसी प्रकार घर में सुबह उठने से आपके बाहर जाने तक आपकी ज़रूरतों तथा घर में रहने वालों की आवश्यकता के अनुसार लगाए गए गैजेट चलेंगे, बंद होंगे, धीमे अथवा तेज़ होंगे। इंटेलिजेंट होम की बातें परीलोक की बातें लगती हैं। परंतु आज यह सब संभव है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इंटेलिजेंट होम से मानव जीवन की गुणवत्ता, समय की पाबंदी तनाव रहित कार्य निष्पादन, दैनिक गतियों का विनियमन हो जाएगा तथा सर्वोपरि ऊर्जा की भारी बचत व सुरक्षा सुनिश्चित हो जाएगी।
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क्या रुपए का नया प्रतीक क्षेत्रीयता का परिचायक है?