गुरुवार, जून 09, 2011

भ्रष्टाचार की परिभाषा

जो चीज़ अत्यधिक व्यापक हो जाती है उसकी परिभाषा देना उतना ही मुश्किल होता है। परंतु तर्कशास्त्र के आधार पर इसे सिद्ध किया जा सकता है। जैसे ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है परंतु किसी को दिखाई नहीं देता है। लेकिन है। इसी तर्क पर भ्रष्टाचार को भी सिद्ध किया जा सकता है कि वह है। कहाँ है? कैसा दिखता है? उसका स्वरूप क्या है? आइए इसी आधार पर कुछ कोशिश की जाए कि भ्रष्टाचार किसे कहते हैं? जब एक बार रोग के लक्षणों के आधार पर इसका निदान हो जाए तो इलाज भी किया जा सकेगा।
भ्रष्टाचार के लक्षणों की पहचान करने के लिए अपने कुछ हम सोच वाले साथियों के साथ चर्चा की और यह तय किया गया कि हर व्यक्ति भ्रष्टाचार के एक लक्षण की पहचान करेगा और फिर समूह चर्चा के दौरान उसे बताएगा। इस निर्णय के बाद हम सब इस असाध्य काम में लग गए।
अपने-अपने असाइनमेंट को पूरा करने के बाद हम सब जब इकट्ठा हुए तो एक-एक करके अपने शोध परक विचार प्रस्तुत करने के लिए अपने बीच से ही एक संयोजक मनोनीत किए। फिर उसके समक्ष प्रस्तुतीकरण का सत्र शुरू हुआ। पहले शोधकर्ता ने संयोजक को संबोधित करते हुए आभार व्यक्त किया कि मुझे इस गुरुतर कार्य में योगदान करने का अवसर दिया गया और उसके बाद उन्होंने दार्शनिक की मुद्रा में कहा कि जहाँ तक हमारी दृष्टि गई हमें भ्रष्टाचार नज़र आया। संयोजक ने तुरंत टोका कि हमें तो भ्रष्टाचार को पहले परिभाषित करना है। हमें तो यही नहीं मालूम कि भ्रष्टाचार है क्या? अतः पहले भ्रष्टाचार के लक्षण तो बताएँ। उन लक्षणों में से निचोड़कर परिभाषा देना तो संयोजक का काम है। इसलिए आप भ्रष्टाचार के लक्षण गिनाएँ।
इसके बाद प्रथम पुरुष ने अपनी दूर और व्यापक दृष्टि को थोड़ा संकुचित किया तथा छोटे दायरे में भ्रष्टाचार के लक्षण खोजने की कोशिश की एवं बहुत कोशिश करके नेताओं के अंदाज़ में कहा कि भ्रष्टाचार समाज में लगा दीमक है जो समाज की जड़ को खोखला कर रहा है। संयोजक ने फिर टोका कि भ्रष्टाचार क्या है? इस बार कुछ और संकुचित हुए और किसी बुद्धिजीवी के रूप में थोड़ा संयत हुए और बोले कि भ्रष्टाचार को परिभाषित करने के लिए हमें कार्ल मार्क्स, लेनिन, नेहरू, लोहिया आदि के साहित्य का अध्ययन करना चाहिए और भ्रष्टाचार की परिभाषा वैश्वीकरण, सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार के संदर्भ में संशोधित करके नियत करना चाहिए। अब संयोजक को लगने लगा कि ये सज्जन हमें भटकाने का प्रयास कर रहे हैं। अतः उनसे कहा कि यह आपके लिए अंतिम अवसर है। यदि इस बार भ्रष्टाचार के लक्षण नहीं बताएँगे तो हम समय नष्ट नहीं करेंगे और अगले शोधकर्ता को आमंत्रित करेंगे। अब उस सज्जन ने अपने अंतिम प्रयास में आम आदमा की तरह भ्रष्टाचार के लक्षण को परिभाषित करने का प्रयास किया और बताया कि "ईमानदारी, सदाचार, नैतिक सिद्धांतों का ह्रास होना भ्रष्टाचार है।" लोगों ने तालियाँ बजाईं और बधाई दी कि वाह क्या मौलिक परिभाषा दी है भ्रष्टाचार की।
इसके बाद संयोजक ने द्वितीय पुरुष से कहा आप भ्रष्टाचार की अपनी परिभाषा दें। इस सज्जन के दिमाग़ में, विषयांतर होने पर संयोजक के टोकने की बात ताज़ा थी अतः बोले कि मैं सीधे ही परिभाषा पर आता हूँ। एक दूसरे शोधकर्ता ने टिप्पणी की कि यह कहने की क्या आवश्यकता है? सीधे ही परिभाषा पर आइए न। सज्जन ने कहा कि ठीक है ठीक है परिभाषा पर ही आता हूँ। अतः उन्होंने कहा कि "शुद्धता या ईमानदारी की हानि, दुष्टता की ओर झुकाव और अशुद्धता एवं रिश्वतखोरी ही भ्रष्टाचार है।" लोगों ने तालियाँ बजाईं और बधाई दी कि परिभाषा में नए आयाम जोड़े हैं।
इसके बाद संयोजक ने तृतीय पुरुष से कहा आप भ्रष्टाचार की अपनी परिभाषा दें। इस सज्जन ने कोई भूमिका नहीं बाँधी और सीधे ही कहा कि "शुद्ध, सरल या सही से च्युत होना, अच्छे से बदलकर बुरा बनना ही भ्रष्टाचार है।" लोगों ने तालियाँ बजाईं और बधाई दी कि आम आदमी की समझ में आने वाली परिभाषा दी है भ्रष्टाचार की। संयोजक को समझ में नहीं आया कि लोग किस बात की तारीफ़ कर रहे हैं? इन परिभाषाओं से तो मुझे ही नहीं समझ में आया कि भ्रष्टाचार क्या है तो आम आदमी को क्या समझ में आएगा कि भ्रष्टाचार क्या है?
इसके बाद संयोजक ने चतुर्थ पुरुष से कहा आप भ्रष्टाचार की अपनी परिभाषा दें। इस सज्जन ने भ्रष्टाचार की परिभाषा इस प्रकार की - "अनुचित साधन (रिश्वत के रूप में) द्वारा प्रलोभन देकर, लोक सेवक को कर्तव्य का उल्लंघन करने (घोर अपराध करने) के लिए प्रेरित करना भ्रष्टाचार है।" इस बार संयोजक कुछ संतुष्ट नज़र आए। लोगों ने तालियाँ बजाईं और बधाई दी।
इसके बाद संयोजक ने पंचम पुरुष से कहा आप भ्रष्टाचार की अपनी परिभाषा दें। पंचम पुरुष से कहा कि "किसी साधन या कृत्य द्वारा, किसी किन्हीं लोगों की ईमानदारी या निष्ठा को कम करना, ग्रामीण भोलेपन की प्रवृत्ति को समाप्त करने का प्रयास करना ही भ्रष्टाचार है।" इस बार भी संयोजक को लगा कि भ्रष्टाचार की परिभाषा कुछ समझ में आने वाली नहीं है और असंतुष्ट नज़र आए। फिर भी इस बार उन्होंने भी ताली बजाई और बधाई दी क्योंकि यह अंतिम शोधकर्ता था। इसके बाद उन्होंने कहा कि इन सब लक्षणों का समावेश करते हुए आसान, सर्व समावेशी और तर्क संगत परिभाषा बाद में घोषित करूंगा और बैठक बर्ख़ास्त कर दी।
चारों ओर भ्रष्टाचार का शोर है। सदाचार और नैतिकता का ज़ोर है। फिर भी बरकत नहीं है क्योंकि नीयत की खराबी है। अब इन लक्षणों से भ्रष्टाचार की परिभाषा आप कर सकते हों तो इसे सिविल सोसायटी के पास भेज दिया जाए ताकि लोकपाल विधेयक में संशोधन किया जा सके।
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4 टिप्‍पणियां:

  1. भ्रष्टाचार की परिभाषा क्या होगी यह अभी तक पता नहीं चला |सारगर्भित पोस्ट और जरुरी भी ,आभार

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  2. आपके आलेख से निम्न परिभाषायें सामने आई है
    1 -सर्वव्यापी 2- ईमानदारी सदाचार नैतिक मूल्यों का हृास 3- दुष्टता की ओर झुकाव 4- अच्छे से बदल कर बुरा बनना,5- अनुचित साधन से प्रलोभन देना 6- अनुचित साधन का प्रयोग कर घोर अपराध करना । अब सर्वमान्य क्या होगी मेरी समझ से परे है।

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  3. आदरणीय दलसिंगार यादव जी बहुत ही उम्दा प्रस्तुती!

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  4. भ्रष्टाचार पर अच्छा व्यंग्य ...समकालीन विषय पर रोचक चर्चा ...
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    शायद हम जानबूझ कर भ्रष्टाचार को उलझा रहें हैं...
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    मेरी समझ के अनुसार किसी भी नागरिक को उसके मूल अधिकारों से वंचित रखना ही भ्रष्टाचार है।

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