सोमवार, अप्रैल 25, 2011

संप्रेषण (कम्यूनिकेशन) और भाषा की भूमिका

देवनागरी के वर्णों, वर्तनी और इनके मानकीकरण के बारे में ''राजभाषा हिंदी'' ब्लॉग पर लिख चुका हूं। उसके आगे की कुछ कड़ियों में हिंदी भाषा की कुछ मूलभूत बातों पर चर्चा करूंगा। प्रस्तुत है अगली कड़ी। इसका लिंक भी ''राजभाषा हिंदी'' ब्लॉग पर दिया गया है।
-डॉ. दलसिंगार यादव
भाषा और शब्द

भाषा की व्यापक परिभाषा में जाएं तो यह कहा जा सकता है कि हर प्राणी की अपनी भाषा होती है और वह अपने भाव संप्रेषण के लिए उसका उपयोग करता है। परंतु हम मनुष्य द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले भाव या विचार संप्रेषण के माध्यम की बात करने जा रहे हैं। धरती पर मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपने भाव संप्रेषण के लिए शब्द का उपयोग करता है। यदि शब्द के दार्शनिक पहलू पर विचार करें तो स्पष्ट हो जाता है कि इसका मतलब क्या है?


"श्रोत्रोपलब्धिर्बुद्धिनिर्ग्राह्यः प्रयोगेणाभिज्वलित आकाशदेशः शब्दः।" इसका अर्थ है कि कानों से सुनकर जिसका बोध हो, जो बुद्धि से निरंतर ग्रहण करने योग्य हो, उच्चारण से प्रकाशित हो और जिसके रहने का स्थान आकाश हो उसे शब्द कहते हैं। इसका मतलब है कि शब्द सार्थक वस्तु है। हम इस पर बाद में चर्चा करेंगे। पहले शब्द कैसे बनता है इस पर चर्चा कर लें। शब्द एक निश्चित सीमा तक, प्रयुक्त होने वाली सार्थक ध्वनियों का समूह है। हम बोलते समय, एक समय में एक ध्वनि का ही उच्चारण कर सकते हैं। अतः क्रमशः, ध्वनियों का उच्चारण करके शब्द बोला जाता है। जब हम शब्द का उच्चारण करते हैं तो एक बार में एक ही स्वर का उच्चारण कर सकते हैं। उस स्वर से पहले एक या स्वर रहित कई व्यंजनों का उपयोग हो सकता है। शब्द उच्चारण करते समय एक स्वर के साथ प्रयुक्त व्यंजन या व्यंजनों का समूह "अक्षर" कहलाता है। इसी अक्षर या अक्षरों के संयोग से बना "अक्षर समूह" शब्द कहलाता है (ऋक् प्रातिशाख्य)। एसे शब्दों से "पद" बनते हैं, पदों से "वाक्यांश" बनते हैं और फिर "वाक्य" बनता है। भाषा की अंतिम परिणति वाक्य है। हम अपने संवाद या संप्रेषण में वाक्य का प्रयोग करते हैं। वाक्य में प्रयुक्त होने वाले शब्दों को, उनके प्रकार्य (फ़ंक्शन) के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। वाक्य को मोटे तौर पर दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है- कर्ता और क्रिया। इसे उद्देश्य और विधेय भी कहा जाता है। हर वाक्य द्वारा कोई न कोई उद्देश्य पूरा करने की मंशा होती है। हर वाक्य में न्यूनतम तीन आधार होते हैं- कर्ता, कर्म और क्रिया। इन तानों आधारों को व्यक्त करने के लिए "शब्द" का प्रयोग होता है। यह बात विश्व की समस्त भाषाओं के बारे में समान रूप से लागू है। विचारों के आदान प्रदान के लिए संप्रेषण का मॉडल इस प्रकार है।

अतः इस सत्र में हम भाषा के आधारभूत पहलुओं पर विचार करेंगे। ध्वनि, उच्चारण, शब्दों की व्याख्या, शब्द निर्माण उपकरण तथा अर्थ निष्पत्ति जैसे आवश्यक एवं महत्वपूर्ण अंगों पर चर्चा करेंगे।


शब्द निर्माण

जैसा कि पहले, हमने कहा है कि शब्द एक निश्चित सीमा तक, प्रयुक्त होने वाली सार्थक "ध्वनियों" का समूह है। अतः ध्वनि पर विचार करना आवश्यक होगा। ध्वनियों के बारे में हमें संस्कृत का सहारा लेना पड़ेगा क्योंकि संस्कृत में ध्वनि विज्ञान का सर्वोत्कृष्ट अध्ययन प्रस्तुत किया गया है (ऋक् प्रातिशाख्य)। उसी विज्ञान के आधार पर अक्षर निर्माण होता है। ध्वनि आधारित अक्षर व शब्द के लेखन के लिए जिन प्रतीकों का संस्कृत "देवनागरी" के लिए प्रयोग किया जाता है उन्हीं का प्रयोग हिंदी की देवनागरी के लिए भी किया जाता है। अतः हिंदी में शब्द निर्माण और उनके लेखन की वही प्रणाली अपनाते हुए स्वर, व्यंजन, संधि, संयोग और समास पर चर्चा की जा रही है। शब्द के चार भेद किए जाते हैं- नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात। पदार्थ या द्रव्य को सूचित करने वाले शब्दों को नाम या संज्ञा कहा जाता है। पदार्थ के भाव या गुण सूचित करने वाले शब्दों को आख्यात कहा जाता है। किसी शब्द के प्रारंभ में जोड़कर किसी अन्य शब्द की रचना करने वाले शब्द को उपसर्ग कहा जाता है। निपात जिन्हें अव्यय भी कहा जाता है, का प्रयोग ऊंचे, नीचे नाना प्रकार के अर्थ देने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। चूंकि यह शब्द के अर्थ को ऊपर उठा देता है या नीचे गिरा देता है इसलिए इन्हें निपात कहा जाता है।    

संप्रेषण का आधारभूत अवयव - वाक्य

सबसे पहले हम वाक्य बनाने वाले अवयवों के बारे में चर्चा  करेंगे। वाक्य का पहला घटक है- उद्देश्य। उद्देश्य के रूप में प्रयुक्त शब्दों को "संज्ञा पद" के नाम से जाना जाता है। संज्ञा (नाम) व्यापक वर्ग है जितके अंतर्गत वे सभी आते हैं जो क्रिया से भिन्न हों। द्रव्य और गुणों के वाचक शब्दों को संज्ञा कहते हैं। गुण वाची शब्द भी संज्ञा में आते हैं परंतु स्वतंत्र न होकर किसी न किसी द्रव्य के आश्रित होते हैं। आख्यात (क्रिया) के अंतर्गत उद्देश्य की पूर्ति की स्थिति दर्शाने वाला अवयव शामिल हैं, अर्थात्, ऐसे शब्द जो चेष्टा और व्यापार आदि के बोधक हों, जैसे, होता है, करता है, पकाता है, सोता है, इत्यादि।   
हर भाषा में शब्द निर्माण के नियम होते हैं। उन्हीं के आधार पर आवश्यकतानुसार नए शब्दों की रचना की जाती है और उन पर अर्थारोपण करके उन्हें प्रचलन में डाल दिया जाता है।  
शब्द निर्माण के वे उपकरण

शब्द निर्माण के वे उपकरण हैं- धातु (verbal root), प्रत्यय (suffix), उपसर्ग (prefix) और समास प्रक्रिया। इन उपकरणों का उपयोग करके हम सामान्य 'पारिभषिक' शब्दों की रचना कर रहे हैं। 
'शब्द' और 'पारिभषिक' में अंतर
'शब्द' और 'पारिभषिक' शब्द में अंतर होता है। शब्द सामान्य और व्यापक अर्थ देने वाला होता है जबकि पारिभाषिक संकुचित और विनिर्दिष्ट अर्थ देने वाला होता है जो विषय के संदर्भ में प्रयुक्त होता है। 


धातु (verbal root), प्रत्यय (suffix), उपसर्ग (prefix) द्वारा शब्दों की रचना
शब्द में धातु एक ही होती है और उसमें उपसर्ग तथा प्रत्यय कई हो सकते हैं, जैसे, सांप्रदायिक। इसमें 'सम्-' और 'प्र-' दो उपसर्ग 'दा' धातु, '-घञ्' और '-इक' प्रत्ययों का उपयोग किया गया है। पहले 'प्र-' उपसर्ग, 'दा' धातु और '-घञ्' प्रत्यय से 'प्रदाय' शब्द बनाया गया जिसे 'उपहार' या 'भेंट' देने के अर्थ देने वाला माना गया, अर्थात् इस पर इन अर्थों को चिपकाया गया। इसके बाद 'सम्-' उपसर्ग लगाकर 'संप्रदाय' शब्द बनाया गया और इसे किसी विशेष समूह को व्यक्त करने का अर्थ देने वाला बताया गया। बाद में इसमें, विशेषण शब्द बनाने के लिए 'इक' प्रत्यय लगाकर सांप्रदायिक शब्द बनाया गया जिसे आजकल अंग्रेज़ी भाषा में प्रयुक्त 'Communal' शब्द का पर्यायी बनाया गया। '-इक' प्रत्यय लगाने पर शब्द के आदि स्वर की वृद्धि हो जाती है। संप्रदाय+इक = सांप्रदायिक, बना।

'समास प्रक्रिया' द्वारा शब्दों की रचना


शब्द बनाने का दूसरा उपकरण है 'समास प्रक्रिया'। समास प्रक्रिया में दो भिन्न शब्दों को जोड़कर या एक के बाद दूसरा रखकर एक नई अभिव्यक्ति या शब्द बना दिया जाता है और उस पर नया अर्थ या संकल्पना चिपका दी जाती है। इस प्रक्रिया से बनी अभिव्यक्ति या शब्द यातो दोनों या प्रयुक्त सभी शब्दों के अर्थों को व्यक्त करता है अथवा उन शब्दों के परे किसी और ही अर्थ या संकल्पना को व्यक्त करता है।

शब्द निर्माण, नामकरण की प्रक्रिया है। जब कोई नई अवधारणा या संकल्पना मूर्त रूप ले लेती है तो उसकी पहचान का प्रश्न उत्पन्न होता है। अतः उस मूर्त रूप को कोई न कोई नाम दिया जाता है जिससे उसे संबोधित किया जाता है। आमतौर पर उदाहरण लें तो जन्म के 21 दिन उपरांत शिशु का नामकरण किया जाता है और फिर उसे उसी नाम से संबोधित किया जाता है। नामकरण का आधार उस संकल्पना या अवधारणा की गुण-धर्म होता है, अर्थात्, उस मूर्त वस्तु क्या काम करती है? उसका क्या प्रभाव होता है? आदि। शिशु के नामकरण में हम उन गुणों को आरोपित करके कोई सार्थक शब्द या शब्द युग्मों का उपयोग करते हैं। कभी अति अप्रचलित शब्दों का उपयोग किया जाता है तो कभी प्रचलित। कभी एक ही भाषा के एक शब्द का उपयोग किया जाता है तो कभी एक ही भाषा के दो शब्दों का उपयोग किया जाता है तो कभी दो अलग अलग भाषाओं के शब्दों का। जब दो शब्दों का उपयोग करके एक नाम (संज्ञा) दिया जाता है तो उस नामकरण की प्रक्रिया को समास प्रक्रिया कहा जाता है। कामता प्रसाद गुरु के अनुसार दो या अधिक शब्दों का परस्पर संबंध बताने वाले शब्दों से बनने वाले स्वतंत्र शब्द को "सामासिक" शब्द और उस प्रक्रिया को "समास" कहते हैं।  


आधुनिक हिंदी और कार्यालयी हिंदी में समास प्रक्रिया केवल हिंदी शब्दों तक ही सीमित नहीं है। दो विभिन्न भाषाओं के शब्दों को मिलाकर भी सामासिक शब्द की रचना की जा सकती है, जैसे, "सेल्स मानव"। यह शब्द प्रवीण पांडेय के ब्लॉग पर अभी हाल ही में नोकिया फ़ोन में हिंदी की सुविधा का उल्लेख करते हुए गढ़ा गया नवीनतम शब्द है। इसकी प्रतिक्रिया में 88 लोगों ने प्रतिक्रिया व्यक्त की। बाकी सभी ने तो फ़ोन की अच्छाई, कीबोर्ड की सुविधा असुविधा, कीमत आदि पर राय व्यक्त की परंतु सतीश सक्सेना (सेल्स मानव), निशांत मिश्र (सेल्समानव), पद्म सिंह (सेल्स मानव) और गिरधारी खंकरियाल (सेल्समानव/बिक्रीमानव) ने प्रवीण पांडेय द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्द "सेल्समानव" को सराहा। खंकरियाल ने दूसरा विकल्प "बिक्रीमानव" सुझाया। सामासीकृत शब्दों के लेखन का व्याकरणिक नियम है कि जब दोनों पद सजातीय हों (एक ही भाषा या मूल के) तो उन्हें मिलाकर लिखा जाए अन्यथा अलग-अलग बिना योजक चिह्न (-) लगाए। यहाँ पर "सेल्स" और "मानव" दो विजातीय शब्द या पद हैं इसलिए इन्हें "सेल्स मानव" लिखा जाए। यदि खंकरियाल के दूसरे विकल्प को लिया जाए तो इसे "बिक्रीमानव" लिखा जा सकता है।

 निर्माण के आधार पर शब्दों की किस्में

निर्माण के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं – यौगिक, रूढ़ि और योगरूढ़ि। इन तीनों को क्रमशः जाति, गुण और क्रिया भी कहते हैं। यौगिक उनको कहते हैं जो धातु और प्रत्यय, धातु, प्रत्यय और अवयव (समास द्वारा बना अवयव) के योग से बनते हों, जैसे, कर्त्ता, हर्त्ता, दाता, अध्येता, अध्यापक, लंबकर्ण, शास्त्रज्ञान, कालज्ञान इत्यादि। रूढ़ि उनको कहते हैं जो धातु और प्रत्यय के संयोग से न बनते हों परंतु नाम (संज्ञा) बोधक हों। योगरूढ़ि उनको कहते हैं जो दो अवयवों से तो बने हों परंतु दोनों अवयवों के अर्थ से भिन्न अर्थ देते हों, जैसे, दामोदर, सहोदर, पंकज इत्यादि।

भाषा का मज़बूत आधार - व्याकरण की शिक्षा 

कार्यालयी कार्य प्रमुखतः, अंग्रेज़ी भाषा में करने और उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी होने के कारण हम दोनों भाषओं को समान रूप से सीखने और उनका प्रयोग करने का प्रयास करते हैं। समान परिस्थिति व माहौल न होने के कारण हमारी भाषा शिक्षा, व्याकरण आधारित न होकर, प्रयोजनशील तरीके से हो रही है इसलिए हमें भाषा का मज़बूत आधार नहीं मिल पा रहा है। भाषा के व्याकरण आधारित ज्ञान के अभाव हमें वाक्य संरचना में आत्म विश्वास की कमी नज़र आती है। यदि प्रारंभिक स्तर पर भाषा की व्याकरण सम्मत शिक्षा हो तो उससे भाषा की नींव पक्की होगी और हम वाक्य संरचना में पारंगत हो सकेंगे। इसी सिलसिले में हम शब्द संरचना के व्याकरणिक पहलू पर चर्चा करने जा रहे हैं।

हम जिस अंग्रेज़ी भाषा की पढ़ाई करते हैं उसकी वाक्य रचना प्रणाली हिंदी से भिन्न है और शब्द संपदा विभिन्न स्रोतों से लिए गए शब्दों का मिश्रित भंडार है। इसकी शब्दावली में प्रमुखतः लैटिन, ग्रीक, फ़्रेंच और इतालवी भाषा के शब्द तो हैं ही इसे किसी भी भाषा से शब्द उधार लेने में परहेज़ नहीं है। इसीलिए इसके शब्दों की वर्तनी में नियमों की एकरूपता नहीं है। अंग्रेज़ी भाषा के विद्वान बर्नार्ड शॉ ने कहा था कि अंग्रेज़ी शब्दों की वर्तनी अंतरराष्ट्रीय विपदा है (इंग्लिश स्पेलिंग इज़ ऐन इंटरनैशनल कैलैमिटी)। परंतु लैटिन और ग्रीक शब्दों में संस्कृत जैसी शब्द निर्माण की प्रक्रिया को अपनाया गया है। अधिकतर शब्द लैटिन मूल के हैं और उनके निर्माण में धातु, प्रत्यय और उपसर्गों का उपयोग करके शब्दों की निष्पत्ति की गई है। हम यहां पर ऐसे शब्दों के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं। यदि इन नियमों का अध्ययन करके इनका अनुसरण किया जाए तो शब्दों के अर्थ समझने में आसानी होगी और हमारी समझने की शक्ति में सुधार होगा। 

........ अगली पोस्ट में

7 टिप्‍पणियां:

  1. एक बेहद रोचक आलेख। प्रयोजन मूलक हिन्दी के लिए इस तरह के आलेख का अपना अलग महत्त्व है।

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  2. बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर ज्ञान वर्धक जानकारी

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  3. भाषा विज्ञान की दृष्टि से अच्छा लेख है।

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  4. आपकी कक्षा में आना अनिवार्य हो गया है तभी हिंदी सीख पाएंगे .

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  5. खंकरियाल जी!
    आपके भाव से मुझे उत्साह मिला। आप भी शब्द निर्माण में कुछ कम नहीं। आपकी इस शक्ति का उल्लेख किया है मैंने इस पोस्ट में। धन्यवाद।

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  6. @Blogger सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

    हिंदी भाषा संबंधी अति महत्वपूर्ण और उपयोगी जानकारी देता हुआ आपका लेख .....अति प्रशंसनीय है |

    April 25, 2011 6:32 PM
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  7. itnaa ghatiya tha ki kyaaa batauu..........................

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