बुधवार, जुलाई 27, 2011

बहुभाषिकता – आज की ज़रूरत

जब आप कहते हैं कि चार कोस पर पानी बदले और आठ कोस पर बानी तो इसका मतलब है कि आठ कोस की दूरी पर रहने वाले व्यक्ति के साथ बात करते हुए लोग उसकी पूरी बात नहीं समझ पाएंगे। तो लोग आपस में कैसे संवाद कर पाएंगे? परंतु आठ कोस के निकट वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोग दोनों बोलिओं में संवाद करने की क्षमता रखते हैं। इसी प्रकार दो भिन्न भाषाओं के क्षेत्रों में निवास करने वाली जनता भी सीमा क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों के सहारे पर प्रदेश के लोगों के साथ संवाद कर सकते हैं। यदि इस सिद्धांत को और विस्तृत किया जाए तो दो देशों की जनता भी सीमा क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों के सहारे उस देश के लोगों के साथ संवाद कर सकते हैं। इस प्रकार द्विभाषिकता की स्थिति का निर्माण हुआ। अतः सीमा क्षेत्र में, चाहे प्रदेश का हो या देश का, निवास करने वाले लोग स्वभावतः द्विभाषी होते हैं, जैसे, नेपाल की सीमा के साथ रहने वाले अपनी मातृभाषा के साथ नेपाली भाषा, चीन और रूस की सीमा के साथ रहने वाले लोग चीनी और रूसी दोनों भाषाओं में संवाद करने की क्षमता रखते हैं।
यह स्थिति तो सामान्य परिस्थितियों में और स्वाभाविक रूप से बरकरार रहती आई है। यह द्विभाषिकता की स्थिति आज देश प्रदेश के सीमा क्षेत्र तक ही महदूद नहीं रह गई है। अब सीमा क्षेत्र से परे रहने वाले लोग भी अपने आप देश प्रदेश की भाषा सीखने लगे हैं और इसे अतिरिक्त योग्यता माने जाने लगी है। आज हिंदुस्तान का हर सुशिक्षित व्यक्ति द्विभाषी है, अपनी मातृभाषा के अलावा हिंदी और अंग्रेज़ी सीखता है। कई लोग बहुभाषी हो रहे हैं। इसी प्रकार विश्व के अन्य देशों में रहने वाले भी अपने देश की राजभाषा के अलावा फ़्रेंच, स्पैनिश, जर्मन, लैटिन और चीनी, कोरियाई आदि भाषाएं सीख रहे हैं। चीन और जापान के लोग अंग्रेज़ी और अन्य यूरोपीय भाषाएं एवं हिंदी सीख रहे हैं। ब्रिटेन के लोग अपने बच्चों की शिक्षा के लिए बहुभाषी शिक्षकों की तलाश में विज्ञापन दे रहे हैं। अतः आज द्विभाषिकता या बहुभाषिकता एक ज़रूरत बन गई है। आज यदि कोई व्यक्ति कोई विदेशी भाषा नहीं जानता है तो उसे शिक्षित नहीं माना जाता है। आज द्विभाषिकता या बहुभाषिकता शौक नहीं ज़रूरत बन गई है।
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2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी कहावत के माध्यम से विषय पर प्रकाश डाला राजभाषा के सभी आदेश बाई लिंगुअल होते है| आभार सर जी ...

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  2. आवश्यकता अगर है तो है। लेकिन हम छोटे बच्चों पर कैसे अधिक भाषाएँ जबरन लाद सकते हैं?

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