शनिवार, फ़रवरी 20, 2010

हिंदी दिवस समारोह मनाने की शुरुआत

हिंदी दिवस समारोह मनाने की शुरुआत 14 सितंबर 1954 से हुई । 10 और 11 नवंबर 1953 को काका साहब न. वि. गाडगिल की अध्‍यक्षता में नागपुर में 'अखिल भारतीय राष्‍ट्रभाषा प्रचार सम्‍मेलन' का पांचवां अधिवेशन हुआ था। उस अधिवेशन में, जब तक हिंदी को अंग्रेज़ी के स्‍थान पर पूर्ण रूप से 'राजभाषा' का स्‍थान नहीं प्राप्‍त हो जाता तब तक '14 सितंबर' को 'हिंदी दिवस' के रूप में स्‍मरण करते रहने का विचार सामने आया और औपचारिक रूप से प्रस्‍ताव पारित हुआ कि ''यह सम्‍मेलन निश्‍चय करता है कि स्‍वतंत्र भारत के संवि‍धान ने जिस दिन हिंदी को 'राजभाषा' तथा 'देवनागरी' को राष्‍ट्रलिपि स्‍वीकार किया है उस दिन अर्थात्, 14 सितंबर को संपूर्ण भारत में 'हिंदी दिवस' मानाया जाएगा।''
2.
इस प्रस्‍ताव के प्रस्‍तावक श्री जेठामल जोशी तथा अनुमोदक श्रीमती मैना गाडगिल थे। प्रस्‍ताव के समर्थक थे श्रीमती राधा देवी गोयनका तथा श्री भा. ग. जोगलेकर। इसी प्रस्‍ताव के आधार पर राष्‍ट्र भाषा प्रचार सभा, वर्धा के तत्‍कालीन प्रधान मंत्री श्री मोहन लाल भट्ट ने 30 नवंबर 1953 को सभी प्रांतीय समितियों, ज़‍िला समतियों, नगर समितियों, हिंदी के कार्य से जुड़े, देश के तमाम कार्यालयों और विशि‍ष्‍ट व्‍यक्तियों को पत्र भेजा। उस पत्र द्वारा आगामी 14 सितंबर 1954 को ''हिंदी दिवस' मनाने का विनम्र आग्रह किया गया। इस प्रकार 14 सितंबर 1954 को 'हिंदी दिवस' मनाने का सिलसिला प्रारंभ हुआ।
3.
हिंदी सेवियों और हिंदी के वेतनभोगियों से विनम्र अनुरोध है कि हिंदी के रास्‍ते में सहायक बनें रोड़ा न बनें और अधिकारी का भाव न रखकर मशिनरी की भावना से हिंदी का प्रचार प्रसार करें।

बुधवार, फ़रवरी 17, 2010

राजभाषा हिंदी - सांविधिक स्थिति

देश की स्‍वतंत्रता के न‍िर्णय के साथ ही भारत के नेताओं ने हिंदी को देश की राष्‍ट्रभाषा के रूप में स्‍वीकार कर लिया था परंतु संवि‍धान में इसे राष्‍ट्रभाषा न कहकर राजभाषा नाम दे दिया गया और आज यह दुष्‍प्रचार किया जा रहा है कि हिंदी भारत की राष्‍ट्रभाषा नहीं है बल्कि यह अन्‍य भारतीय भाषाओं की ही भांति एक भाषा है और यह केंद्र सरकार के राजकाज की भाषा है।

2. भारत सरकार ने भी इसके साथ अच्‍छा व्‍यवहार नहीं किया और 1967 में भारत के संविधान में संशोधन करके हिंदी को 1965 के बाद अंग्रेज़ी का पर्याय बनने से रोक दिया और ऐसी परिस्थिति का निर्माण कर दिया है कि हिंदी वास्‍तविक रूप में राष्‍ट्रभाषा बन ही नहीं सकती है।

3. सांवि‍धानिक प्रावधानों के अनुसार जब तक देश के सभी राज्‍यों के दोनों सदनों में इस आशय का संकल्‍प न पारित कर दिया जाए कि हिंदी भारत संघ की राजभाषा होगी और उसके बाद भारतीय संसद के दोनों सदनों में भी ऐसा ही संकल्‍प नहीं पारित कर दिया जाता तब तक देश के काम काज से अंग्रेज़ी का संपूर्ण रूप से समापन नहीं हो पाएगा। चूंकि संविधान का अनुच्‍छेद 345 अभी नागालैंड को अंग्रेज़ी के उपयोग की शक्ति देता है इसलिए नागालैंड हिंदी को नहीं स्‍वीकार कर पाएगा। अतः यह असंभव जैसी स्थिति बन गई है। हम संसदीय समिति और समयबद्ध कार्यक्रमों के माध्‍यम से अनंत काल तक प्रयास करने और हिंदी के प्रगामी प्रयोग का दिखावा करते रहेंगे और हरसाल करोड़ों रुपए खर्च करते रहेंगे लेकिन हिंदी को राष्‍ट्रभाषा नहीं बना पाएंगे।

4. राजभाषा विकास परिषद ने इसके लिए संवैधानिक लड़ाई प्रारंभ की है। नागपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें हिंदी सेवकों तथा संगठनों का सहयोग आवश्‍यक और वांछनीय है।

डॉ. दलसिंगार यादव
निदेशक
राजभाषा विकास परिषद
नागपुर
17.02.2010

क्या रुपए का नया प्रतीक क्षेत्रीयता का परिचायक है?