शुक्रवार, फ़रवरी 25, 2011

रेल बजट और हिंदी

ममता जी की तारीफ़ की जानी चाहिए। उन्होंने जनता के मंत्रालय में जनता की भाषा का ख्याल रखा। हिंदी में जवाब दिया।

गुरुवार, फ़रवरी 24, 2011

लालू मुलायम के आते ही मंत्रालयों में हिंदी क्यों आ जाती है?


क्या आपने इस बात पर ग़ौर किया है कि लालू मुलायम के आते ही मंत्रालयों में हिंदी क्यों आ जाती है? मतलब साफ है कि ब्यूरोक्रेसी की रीढ़ नहीं होती है। वे हवा का रुख देखकर रंग बदल लेते हैं। वास्तव में हिंदी न आने के लिए हमारे नेता ही कारण हैं। अतः अगली बार वोट देने से पहले अपने नेता से पूछें कि हिंदी के बारे में संसद में कोई प्रश्न क्यों नहीं पूछा? जब संसद में अंग्रेज़ी के विकास की बात की जाती है तो राजभाषा हिंदी के विकास की बात क्यों नहीं की जाती? राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने पहली कक्षा से अंग्रेज़ी पढ़ाए जाने की सिफ़ारिश की है और हिंदी का नाम तक नहीं लिया। केवल अंग्रेज़ी और क्षेत्रीय भाषा पढ़ाए जाने की वकालत की है। शायद त्रिभाषा सूत्र की तिलांजलि दे दी है।

बुधवार, फ़रवरी 23, 2011

स्वायत्त राष्ट्रीय राजभाषा कार्यान्वयन आयोग का गठन हो


देश में वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ज्ञान आयोग का गठन किया गया तथा प्रारंभ में इसका इसका कार्यकाल तीन वर्ष रखा गया था। यह आयोग योजना आयोग के माध्यम से प्रधान मंत्री के सीधे प्रभार में रखा गया था। बाद में इसका कार्यकाल मार्च 2009 तक बढ़ा दिया गया था। इस आयोग के अध्यक्ष सैम पित्रोदा थे। इसके सदस्य थे, डॉ. अशोक गांगुली, रिज़र्व बैंक के बोर्ड में निदेशक और कई प्राइवेट कंपनियों के बोर्डों में सदस्य हैं, डॉ. जयति घोष, जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं, डॉ. दीपक नैयर, जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं , डॉ. पी. बलराम, भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलौर के निदेशक हैं, डॉ. नंदन निलेकनी, कंप्यूटर विज्ञानी हैं, डॉ. शुजाता रामदोई, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ंडामेंटल रिसर्च में गणित के प्रोऱेसर हैं, डॉ. अमिताभ मट्टू, जम्मू विश्व विद्यालय के उप कुलपति हैं। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट 2009 में प्रस्तुत कर दी है और उसके कार्यान्वयन का काम शुरू हो गया है।

राष्ट्रीय ज्ञान आयोग का उद्देश्य ज्ञान के क्षेत्र में देश को 21 वीं शताब्दी में सबसे आगे ले जाने के लिए शिक्षा और अनुसंधान हेतु आधारभूत और मज़बूत ढांचा तैयार करना है। आयोग ने अपनी सिफ़रिश में कहा है कि देश में अंग्रेज़ी की पढ़ाई पहली कक्षा से शुरू की जाए और दो भाषाएं, अर्थात, अंग्रेज़ी तथा क्षेत्रीय भाषा पढ़ाई जाए। आयोग ने हिंदी की सिफ़ारिश नहीं की है और न ही त्रिभाषा सूत्र को लगू करने की बात की है। प्नधान मंत्री ने भी इसे स्वीकार कर ली है और राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की सिफ़रिशों को लागू कराने की प्रक्रिया शुरू करा दी है।  

हिंदी को देश की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया है और 26 जनवरी 1965 से अंग्रेज़ी के स्थान पर हिंदी को राजकाज की मुख्य भाषा बनाया जाना था। परंतु 1963 में जब देश में हिंदी के विरोध में आंदोलन उठा तो नेहरू जी ने आश्वासन दिया कि हिंदी 1965 से लागू नहीं की जाएगी। लेकिन हिंदी विरोधियों ने आश्वासन को कानून का रूप देने पर अड़ गए और संसद ने राजभाषा अधिनियम, 1963 बनाकर हिंदी के कार्यान्वयन का रास्ता रोक दिया परंतु सदन को विश्वास दिलाया कि हिंदी का कार्यान्वयन समयबद्ध तरीके से धीरे-धीरे किया जाएगा। इसके लिए दोनों सदनों में 18 जनवरी 1968 को संकल्प पारित किया गया था कि –

"जबकि संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी रहेगी और उसके अनुच्छेद 351 के अनुसार हिंदी भाषा की प्रसार वृद्धि करना और उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, संघ का कर्तव्य है,  

"यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के प्रसार एवं विकास की गति बढ़ाने हेतु तथा संघ के विभिन्न राजकीय प्रयोजनों के लिए उत्तरोत्तर इसके प्रयोग हेतु भारत सरकार द्वारा एक अधिक गहन एवं व्यापक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा और किए जाने वाले उपायों एवं की जाने वाली प्रगति की विस्तृत वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट संसद की दोनों सभाओं के पटल पर रखी जएगी और सब राज्य सरकारों को भेजी जाएगी।

"2.  जबकि संविधान की आठवीं अनुसूची में हिंदी के अतिरिक्त भारत की 14 मुख्य भाषाओं का उल्लेख किया गया है और देश की शैक्षणिक और सांस्कृतिक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि इन भाषाओं के पूर्ण विकास हेतु सामूहिक उपाय किए जाने चाहिए।

" यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के साथ-साथ इन सब भाषाओं के समन्वित विकास हेतु भारत द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से एक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जएगा ताकि वे शीघ्र समृद्ध हों और आधुनिक ज्ञान के संचार का प्रभावी माध्यम बनें।
" 3. जबकि एकता की भावना के संवर्धन तथा देश के विभिन्न भागों में जनता में संचार की सुविधा हेतु यह आवश्यक है कि भारत सरकार द्वारा राज्यों के परामर्श से तैयार किए गए 'त्रिभाषा सूत्र' को भी राज्यों में पूर्णतः कार्यान्वित करने के लिए प्रभावी किया जाना चाहिए।

" यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में, हिंदी तथा अंग्रेज़ी के अतिरिक्त एक आधुनिक भारतीय भाषा के, दक्षिण भारत की भाषाओं में से किसी एक को तरजीह देते हुए, और अहिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रादेशिक भाषों और अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी के अध्ययन के लिए उस सूत्र के अनुसार प्रबंध किया जाना चाहिए।

" 4. और जबकि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि संघ की लोक सेवाओं के विषय में देश के विभिन्न भागों में लोगों के न्यायोचित दवों और हितों की पूरी रक्षा की जाए।

" यह सभा संकल्प करती है –

" (क) कि उन विशेष सेवाओं या पदों को छोड़कर जिनके लिए ऐसी किसी सेवा अथवा पद के कर्तव्यों के संतोषजनक निष्पादन हेतु केवल अंग्रेज़ी अथवा केवल हिंदी अथवा दोनों, जैसी कि स्थिति हो, का उच्च स्तर का ज्ञान आवश्यक समझा जाए, संघ सेवाओं अथवा पदों की भर्ती करने हेतु उम्मीदवारों के चयन के समय हिंदी अथवा अंग्रेज़ी में से किसी का ज्ञान अनिवार्यतः अपेक्षित होगा और,

" (ख) कि परीक्षाओं की भावी योजना, प्रक्रिया संबंधी एवं समय के विषय में संघ लोक सेवा आयोग के विचार जानने के पश्चात अखिल भारतीय एवं उच्चतर केंद्रीय सेवाओं संबंधी परीक्षाओं के लिए संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित सभी भाषाओं तथा अंग्रेज़ी को वैकल्पिक माध्यम के रूप में रखने की अनुमति होगी।"              

सन् 1968 से अब तक तो सरकार की सारी गतिविधियों और करतूतों से तो लगता है कि न सरकार को हिंदी की चिंता है और न ही गंभीरता। यदि सरकार सचमुच गंभीर होती और संसद में ली गई शपथ तथा पारित संकल्प के प्रति ईमानदार होती तो राजभाषा के बारे में भी सोचती और अपनी सारी नीतियों में हिंदी को लागू करने को प्राथमिकता देती। हिंदी का कार्यान्वयन शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर और सभी राज्यों में एकरूप ढंग से राजभाषा हिंदी की शिक्षा को प्रश्रय देती। इस बारे में तो त्रिभाषा सूत्र ही सबसे कारगर उपाय है। इसके अलावा हिंदी के  विकास के लिए गृह मंत्रालय में राजभाषा विभाग को दायित्व देने के बजाय स्वयंपूर्ण और स्थाई स्वायत्त राजभाषा कार्यान्वयन आयोग बनाया जाए जिसका अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति हो जिसे हिंदी भाषा से लगाव हो।


मैं समझता हूं कि हिंदी के बजाय अंग्रेज़ी को प्रश्रय देकर और हिंदी की अवहेलना करके हमारे राष्ट्रीय नेता उस जनता की सेवा नहीं कर रहे हैं जिसने इन्हें चुनकर भेजा है और अपना नुमाइंदा समझती है।

रविवार, फ़रवरी 20, 2011

सहभागिता निवेश पत्र (Participatory Note)


यह भारतीय शेयर बाज़ार में निवेश करने के लिए एक प्रकार का लिखत (इन्स्ट्रुमेंट) है जिसका सहारा विदेशी निवेशक लेते हैं जोकि भारत में निवेश करने के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के पास पंजीकृत नहीं होते हैं। इसे व्युत्पन्न लिखत कहा जाता है कि क्योंकि यह किसी न किसी लिखत पर आधारित होता है, जैसे, ईक्विटी शेयर। परंतु वे केवल किसी पंजीकृत निवेशक के माध्यम से निवेश कर सकते हैं। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ने 1992 में, विदेशी निवेश संस्थाओं को भारतीय शेयर बाज़ार में निवेश करने के लिए पंजीकरण कराने की अनुमति दी थी। किसी निवेशक द्वारा 'सहभागिता निवेश पत्र'  में निवेश करने के लिए किसी पंजीकरण की पाबंदी नहीं है क्योंकि यह निवेश, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के पास पंजीकृत विदोशी संस्थागत निवेशक के माध्यम से ही किया जा सकता है। किसी अन्य निवेशक को निवेश करने की अनुमति नहीं है। 

            भारत में स्थित पंजीकृत दलाली फ़र्में भारतीय प्रतिभूतियाँ (सिक्यूरिटी) खरीद लेती हैं और बाद में उन प्रतिभूतियों के आधार पर विदेशी निवेशकों को 'सहभागिता निवेश पत्र'  जारी कर देती हैं और उन प्रतिभूतियों पर मिलने वाले लाभांश को विदेशियों को अंतरित कर देती हैं। इस सेवा के लिए वे निवेशकों से दलाली की रकम प्राप्त करती हैं। इन व्युत्पन्न लिखतों को भारत में नहीं खरीदा या बेचा जा सकता है बल्कि वे इनका उपयोग अपने देश में शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध शेयरों में निवेश करने के लिए कर सकते हैं। इसी लिए इसे ऑफ़शोर व्युत्पन्न लिखत भी कहा जाता है।

            इस  ऑफ़शोर व्युत्पन्न लिखत / व्युत्पन्न लिखत/ 'सहभागिता निवेश पत्र'  में निवेश करने वाले का नाम गुप्त रहता है। परंतु जिस निवेशक संस्था के माध्यम से निवेश किया जाता है उसके पास उसका अभिलेख (रिकार्ड) रहता है। चूँकि निवेशक का नाम गुप्त रहता है इसलिए उसके पास यह धन कहाँ से आया यह बताने से बचा जा सकता है। यह केवल एक कारण है। दूसरा, बड़ा कारण यह है कि अभिलेख रखने आदि के खर्च से बचने के भी इसका सहारा लिया जाता है।

यूनीकोड आधारित हिंदी में एकीकृत गहन विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम


राजभाषा विकास परिषद (परिषद), नागपुर, ने विंडोज़, एम. एस. ऑफ़िस के साथ कंप्यूटर सॉफ़्टवेयरों की सहायता से हिंदी में पेपरलेस कार्यालय का प्रगत (ऐडवांस) प्रशिक्षण कार्यक्रम का 26वाँ कार्यक्रम 14-18 फ़रवरी 2011 तक आयोजित किया जिसमें भारतीय रिज़र्व बैंक, भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण प्रेस, शालबनी, मध्य रेल नागपुर, बैंक ऑफ़ इंडिया, सिंडिकेट बैंकों के आठ अधिकारियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। कार्यक्रम के उपरांत सहभागियों ने अपनी प्रतिक्रियाओं में बताया कि अभी तक हमने इस प्रकार का कार्यक्रम न ही सुना था और न ही उसमें भाग लिया था। यह कार्यक्रम अपने किस्म का अनोखा और अलग प्रकार का है। इसमें आने के बाद हमारा आत्मविश्वास बहुत बढ़ा है। अब हम अपना काम कंप्यूटर पर बिना किसी की मदद, यूनीकोड में तो कर ही सकते हैं साथ ही हम इतने सक्षम हो गए हैं कि अपने सहयोगियों की भी मदद कर सकते हैं।
परिषद नवंबर 2007 से बैंकों/ पीएसयू/ सरकारी कार्यालयों में कार्यरत अधिकारियों/ राजभाषा अधिकारियों के लिए विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करती आ रही है जिसमें अब तक 39 विभिन्न संस्थाओं के अधिकारी भाग ले चुके हैं। अब तक कुल 29 कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं और उनमें से 26 एकीकृत गहन विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। अगला गहन कार्यक्रम अप्रैल माह में आयोजित है जिसका घोषणा पत्र संस्थाओं के मानव संसाधन विकास विभागों को भेज दिया गया है।
इस कार्यक्रम में हिंदी भाषा, देवनागरी की मानक वर्तनी, एम.एस. ऑफ़िस वर्ड, इक्सेल, पावर प्वाइंट, ऐक्सेस, वर्ड आर्ट, विभिन्न प्रकार की इमेज प्रॉसेसिंग(पीडीएफ, जेपीजी, जीआईएफ़, टीआईएफ़) के अलावा सीडी राइटिंग, स्कैनिंग, फ़ाइलों की ज़िपिंग अनज़िपिंग, पावर प्वाइंट द्वारा स्वयं प्रेज़ेंटेशन तैयार करना और उसका प्रस्तुतीकरण कराया गया।
उन्होंने यह सुझाव भी दिए कि नव नियुक्त राजभाषा अधिकारियों के लिए ऐसे एकीकृत गहन विकास कार्यक्रम की आवश्यकता है जिसमें राजभाषा अधिकारियों को, राजभाषा अधिकारियों के कार्य (ड्यूटी) व राजभाषा के कार्यान्वयन से जुड़े समस्त पहलुओं को शामिल करते हुए पूर्ण रूप से कंप्यूटरीकृत माहौल में काम करने का गहन प्रशिक्षण दिया जाए। इसके लिए एकीकृत गहन विकास कार्यक्रम (इंडक्शन) कार्यक्रम आयोजित करने की आवश्यकता है ताकि वे संस्था में अपना काम अच्छी तरह निभा सकें। परिषद द्वारा विकसित किए गए कीबोर्ड का प्रयोग किया गया। सहभागियों ने इसे ज़्यादा सरल और हिंदी की प्रकृति के अनुकूल बताया।
कार्यक्रम में सहभागी अधिकारियों का सामूहिक चित्र


क्या रुपए का नया प्रतीक क्षेत्रीयता का परिचायक है?