मंगलवार, जून 22, 2010

प्रधान मंत्री को लिखे गए पत्र पर प्रतिक्रिया

अमरीश जी! प्रधान मंत्री को लिखे गए पत्र पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए धन्यवाद। अपनी 36 वर्ष की सेवा के दौरान कई बार अपने वरिष्ठों से हिंदी के काम में उलझा, जोश दिखाया और अपनी ड्यूटी के अलावा अन्य काम भी करके दिया। परंतु किसी भी संस्था में व्यक्ति नहीं काम अहम होता है। इसलिए किसी की खुशी या नाराज़गी की परवाह किए बग़ैर निष्ठापूर्वक काम करता रहा। लेकिन कई बार इस बात से आहत भी हुआ कि जिस व्यक्ति को हिंदी का प्रयोग सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है हिंदी के प्रति उसकी ही निष्ठा में खोट है। प्रच्छन्न विद्वेष की भावना मन में है जो नकारात्मक निर्णयों के रूप में सामने आती है परंतु खुलकर नहीं बोल सकते क्योंकि व्यवस्था से बंधे हैं। ऐसे में राजभाषा अधिकारी की स्थिति तो 32 दुश्मनों के बीच जीभ जैसी है। जब तक सेवा में था तो ऐसा नहीं कर सकता था। अब राजभाषा विकास परिषद के मंच का उपयोग करके, प्रशिक्षण के माध्यम से यूनीकोड आधारित कंप्यूटर द्वारा हिंदी को अंग्रेज़ी के समकक्ष लाने और ब्लॉग के माध्यम से जनमत तैयार करने तथा राजभाषा अधिनियम (संशोधन) अधिनियम, 1967 द्वारा लाई गई अनिश्चितता को न्यायालय के माध्यम से समाप्त कराने के काम में लगा हूं। बहुत सी जानकारी इकत्रित कर ली है। बैंकों, पीएसयू में कार्यरत राजभाषा कर्मियों का सहयोग चाहिए।

रविवार, जून 20, 2010

प्रधान मंत्री को लिखे गए पत्र पर प्रतिक्रिया

अमरीश जी! प्रधान मंत्री को लिखे गए पत्र पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए धन्यवाद। अपनी 36 वर्ष की सेवा के दौरान कई बार अपने वरिष्ठों से हिंदी के काम में उलझा, जोश दिखाया और अपनी ड्यूटी के अलावा अन्य काम भी करके दिया। परंतु किसी भी संस्था में व्यक्ति नहीं काम अहम होता है। इसलिए किसी की खुशी या नाराज़गी की परवाह किए बग़ैर निष्ठापूर्वक काम करता रहा। लेकिन कई बार इस बात से आहत भी हुआ कि जिस व्यक्ति को हिंदी का प्रयोग सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है हिंदी के प्रति उसकी ही निष्ठा में खोट है। प्रच्छन्न विद्वेष की भावना मन में है जो नकारात्मक निर्णयों के रूप में सामने आती है परंतु खुलकर नहीं बोल सकते क्योंकि व्यवस्था से बंधे हैं। ऐसे में राजभाषा अधिकारी की स्थिति तो 32 दुश्मनों के बीच जीभ जैसी है। जब तक सेवा में था तो ऐसा नहीं कर सकता था। अब राजभाषा विकास परिषद के मंच का उपयोग करके, प्रशिक्षण के माध्यम से यूनीकोड आधारित कंप्यूटर द्वारा हिंदी को अंग्रेज़ी के समकक्ष लाने और ब्लॉग के माध्यम से जनमत तैयार करने तथा राजभाषा अधिनियम (संशोधन) अधिनियम, 1967 द्वारा लाई गई अनिश्चितता को न्यायालय के माध्यम से समाप्त कराने के काम में लगा हूं। बहुत सी जानकारी इकत्रित कर ली है। बैंकों, पीएसयू में कार्यरत राजभाषा कर्मियों का सहयोग चाहिए।

क्या रुपए का नया प्रतीक क्षेत्रीयता का परिचायक है?