सोमवार, दिसंबर 13, 2010

अभिव्यक्ति की आज़ादी और बयान वापस लेने की कला


अभिव्यक्ति की आज़ादी हमारा सांविधानिक अधिकार है और हम इसका भरपूर उपयोग कर रहे हैं। यह ऐसा अधिकार है कि हम जब चाहें, जो चाहें बोल सकते हैं। किसी के भी खिलाफ़ बोल सकते हैं। ज़्यादा से ज़्यादा इतना ही तो करना होगा कि जब दूसरों को आपत्ति हो तो मीडिया में कह देंगे कि मेरी बात को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत किया गया है या मैं भी तो इसमें शामिल हूं और मैं अपना बयान वापस लेता हूं। यह तो वैसे ही है कि सरे आम जूता मार अकेले में अफ़सोस ज़ाहिर करना। संविधान चाहे जो भी प्रावधान करता हो, कानून की व्याख्या द्वारा, मेरा विचार है कि किसी भी जन प्रतिनिधि को बयान वापस लेने की आज़ादी नहीं होनी चाहिए। यदि उसका बयान जन विरोधी हो तो उसे जनता की अदालत में ही सफाई पेश करनी चाहिए। गृह मंत्री, चिदंबरम् का बयान किसी भी प्रकार से क्षम्य नहीं है। यह तो अरुंधती रॉय के बयान से भी ज़्यादा ख़तरनाक है। इससे तो यही ध्वनित होता है कि भारत का कोई भी व्यक्ति अपने घर के बाहर जाए ही नहीं। चिदंबरम् को दिल्ली छोड़कर चिदंबरम (तमिल नाडु) वापस चला जाना चाहिए।  

3 टिप्‍पणियां:

  1. डॉ साहब
    यह गुस्सा किस पर निकल रहा है?
    अंग्रेज हमें sorry शब्द दे गए हैं। हम अपने आस पास भी देखें तो बहुत से ऐसे लोग मिल जाएंगे जो अपना काम निकालने के लिए कुछ भी करेंगे तथा बाद में कह देंगे कि यदि आप को बुरा लगा तो sorry।
    मेरे विचार में यह सिर्फ जनप्रतिनिधि ही नहीं प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होना चाहिए। sorry शब्द की राशनिंग होनी चाहिए कि एक वर्ष में इतने बार से ज्यादा sorry नहीं बोल सकते।
    सादर
    अवधेश कुमार कुरील

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  2. बिल्कुल सही है। कुछ ऐसा ही होना चाहिए।

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