मैंने अपने इसी ब्लॉग में "मूक होंहि वाचाल" शीर्षक से निम्नलिखित पोस्ट लिखी थी -
"यदि आप अंग्रेज़ी लिख सकते हैं तो आप अंग्रेज़ी बोल भी सकते हैं। यह बात, संघ लोक सेवा आयोग ने 2008 की भारतीय प्रशासनिक सेवा की लिखित परीक्षा में पास होने वाले श्री चितरंजन कुमार से कही है। श्री कुमार ने संघ लोक सेवा आयोग पर आरोप लगाया है कि आयोग अंग्रेज़ी माध्यम वाले उम्मीदवारों को तरजीह देता है क्योंकि श्री कुमार साक्षात्कार में अग्रेज़ी में न बोल पाने के कारण असफल घोषित कर दिए गए।
इस बारे में, संघ लोक सेवा आयोग का ध्यान राजभाषा आयोग, 1956 द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के हिंदी संस्करण के पृष्ठ 153 पर पहले पैराग्राफ़ की अंतिम तीन पंक्तियों में व्यक्त विचार की ओर आकृष्ट करना चाहता हूं। आयोग ने कहा है, "प्रतियोगी परीक्षाएं ऐसी होनी चाहिए कि उनसे उम्मीदवारों की बौद्धिक योग्यता और अनुशासन की सामान्य परीक्षा ली जा सके। भाषा संबंधी योग्यता की परीक्षा पर अनुचित महत्व नहीं दिया जाना चाहिए।"
अतः संघ लोक सेवा आयोग अपने ऊपर लगे आरोप से बचने के लिए तकनीकी बहाने का आश्रय न ले। यह तो अंग्रेज़ी दंश का एक और ज्वलंत उदाहरण है।"
चितरंजन कुमार ने यूपीएससी की दलील को चनौती दी थी। अतः इस याचिका के प्रितिवादी की हैसियत से, यूपीएससी ने बॉम्बे हाई कोर्ट में दाखिल हलफ़नामे में कहा है कि इसके लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाई गई थी। इसकी सिफ़ारिशों के अनुसार उम्मीदवार ने भले ही मुख्य परीक्षा अंग्रेज़ी में दी हो लेकिन वह साक्षात्कार क्षेत्रीय भाषा में दे सकता है।
संघ लोक सेवा आयोग ने चितरंजन कुमार की याचिका पर हलफ़नामा दाखिल किया है।
संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में अब उम्मीदवार अपना इंटरव्यू भी क्षेत्रीय भाषा में दे सकेंगे। इससे पहले साक्षात्कार सिर्फ़ हिंदी या अंग्रेज़ी भाषा में दिया जा सकता है।
अंग्रेज़ी का घटता वर्चस्व और भारतीय भाषाओं के विकास का रास्ता प्रशस्त हो रहा है।
चितरंजन कुमार की याचिका पर दाखिल हलफनामे का स्वागत किया जाना चाहिए और चितरंजन कुमार को धन्यवाद भी कि संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में अब उम्मीदवार अपना इंटरव्यू भी क्षेत्रीय भाषा में दे सकेंगे.
जवाब देंहटाएंएक अच्छा फैसला .
दिन प्रतिदिन अभी स्थिति और भी सुधरेगी, भारतीय भाषाओं के विकास में एक सार्थक कदम और राजभाषा हिन्दी का भी विकास कतिपय संभव है यदि भारतीय भाषाओं का विकास हो। एक उत्तम निर्णय ....
जवाब देंहटाएंलेकिन अनिवार्य तो आज भी है अंग्रेजी।
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