कार्यालयों में बिगड़ती हिंदी की स्थिति और राजनेताओं के अंग्रेज़ी मोह के कारण कार्यालयों में कार्यरत राजभाषा कार्मिकों के प्रति लोगों का रवैया बदलने लगा है। अब लोग अपनी नाकामी या उदासी को छिपाने के लिए राजभाषा वालों को ही दोष देने लग गए हैं। क्या यह सुनियोजित षडयंत्र की एक और नई शुरुआत है?
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