इधर पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है और प्रर्यावरण मंत्रालय भी सक्रिय हो गया है। अब जिन निर्माण कार्यों से पर्यावरण संरक्षण के नियमों का उल्लंघन होगा उन्हें अनुमति नहीं मिलेगी। परंतु अनुमति लेने की ज़रूरत ही क्या है? पर्यावरण संरक्षण के नियमों की अनदेखी करके निर्माण कार्य ज़ोरों ते शुरू करें और मंत्रालय या सरकारी एजेंसियों की नज़र पड़ने तक निर्माण कार्य जारी रखें और फिर नज़र पड़ भी जाए तो कुछ दिन तो और निकल ही जाएंगे क्योंकि राजनीतिक पार्टियों के समर्थक और विरोधी लोग भी तो सक्रिय होंगे। बाद में, निर्माण कार्य में लगे धन और लोगों के जायज़ नाजायज़ हितों के मद्दे नज़र सरकार भी नरम पड़ेगी ही और अनियमित कार्य को नाम मात्र का ज़ुर्माना लेकर नियमित का प्रमाणपत्र जारी कर देगी। इसका ज्वलंत उदाहरण है अनिल अंबानी द्वारा हज़ारों करोड़ के किए गए घोटाले को 50 करोड़ का ज़ुर्माना लेकर नियमन।
2. अभी अखबारों में छपी खबरों से स्पष्ट होता है कि प्रर्यावरण मंत्रालय ने ज़ुर्माना लगाकर लवासा और आदर्श सोसायटी जैसे घोटालों को नियमित करने के संकेत दे दिए हैं। फिर तो रास्ता ही खुल जाएगा। कानून का उल्लंघन कीजिए और ज़ुर्माना भर कर छूट जाइए। मौत घर देख भी ले तो कोई परवाह नहीं।
3. इसी प्रकार राजभाषा के नियमों का उल्लंघन करने पर तो ज़ुर्माने का भी डर नहीं है। धड़ल्ले से उल्लंघन कीजिए और शान से अंग्रेज़ी के भगवद् भजन में लगे रहिए।
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