कार्पोरेट जगत के मानिंद घराने, एक अंबानी समूह के मालिक अनिल अंबानी व्यवहार कुशल और बहुत ही समझदार व्यापारी माने जाते हैं। सफल भारतीय व्यापारी होने के साथ-साथ वे अच्छे वक्ता हैं, हिंदी फ़िल्मों की मशहूर अभिनेत्री उनकी पत्नी हैं। घर में माँ, पत्नी व नौकरों के साथ हिंदी में ही बात करते हैं परंतु केवल एक या दो प्रतिशत अंग्रेज़ी जानने वाले निवेशकों के साथ केवल अंग्रेज़ी में ही बात करते हैं क्योंकि शायद अंग्रेज़ी बोलकर उन्हें अंधेरे में रख सकते हैं। ये लोग देश के बारे में सीधे नहीं सोचते हैं बल्कि निवेशकों की बदौलत देश सेवा भी कर लेते हैं। उनकी नज़र में देश सेवा का मतलब अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाना ही है तभी तो विदेशी बाज़ार से पैसा उगाहकर शेयर बाज़ार में लगाकर देश के निवेशकों की आंख में धूल झोंकने की कोशिश की, अंगेरज़ी में। गुड गवर्नेंस से कोई मतलब नहीं जबकि गांधी जी ने कहा था कि देश के व्यापारी कंपनी के मालिक नहीं बल्कि समाज के ट्रस्टी हैं। वो तो भला हो सेबी का कि चोरी पकड़ ली और 50 करोड़ का हल्का ज़ुर्माना वसूलकर मामला रफ़ादफ़ा कर दिया। अब चोरी और न पकड़ी जाए इसलिए अपने द्वार बुलाई गए प्रेस सम्मेलन में ही मीडिया वालों से हिंदी में सवाल जवाब करने से ही मना कर दिया। वैसे तो हिंदी देश की राजभाषा है, अखिल विश्व स्तर पर भारत की भाषा है। परंतु कार्पोरेट जगत के दंभी, निवेशकों के पैसों से विमान खरीदने और ऐश करने वाले मालिकों को हिंदी से परहेज़ क्यों हैं जबकि अपने अधिक से अधिक विज्ञापन हिंदी में ही देते हैं क्योंकि अधिक से अधिक जनता हिंदी ही समझती है? इसे क्या कहेंगे, देश प्रेम या देश द्रोह?
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