हिंदी भाषा को कार्यालयों में लागू कराने में सरकारों को कोई रुचि नहीं है इसलिए सरकारी स्तर पर उतना कार्य नहीं हो रहा है जितना गैर सरकारी स्तर पर हो रहा है। इस संबंध में हमें गंभीरता से विचार करना होगा। यह सत्य है कि अंग्रेज़ी एक शताब्दी से भी पहले से हमारे शिक्षा व्यवस्था का अंग रही है, इसके बावज़ूद अंग्रेज़ी हमारे अधिकतर बच्चों की पहुँच से बाहर है, जिसके कारण सुविधाओं और अवसरों की सुलभता में बहुत अधिक असमानता है। आज भी करीब एक प्रतिशत लोग ही अंग्रेज़ी को पहली भाषा तो क्या दूसरी भाषा के रूप में इस्तेमाल करते हैं। फिर भी कार्यालयों में अंग्रेज़ी का ही वर्चस्व है। इन सच्चाइयों को रातोंरात नहीं बदला जा सकता।
"परंतु राष्ट्रीय ज्ञान आयोग का मानना है कि अब समय आ गया है कि हम देश के लोगों, आम लोगों को स्कूलों में भाषा के रूप में अंग्रेज़ी पढ़ाएँ। इसलिए एक केंद्र प्रायोजित योजना चलाई जानी चाहिए, जो अंग्रेज़ी भाषा सिखाने के लिए ज़रूरी शिक्षकों और सामग्री के विकास के लिए वित्तीय सहायता दे सके। राज्य सरकारों को इस योजना पर अमल के काम में बराबर की साझीदारी करनी होगी। अतः राष्ट्रीय ज्ञान आयोग का सुझाव है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय विकास परिषद की अगली बैठक में सभी मुख्यमंत्रियों के साथ इस मामले पर चर्चा करें और अंग्रेज़ी को पहली कक्षा से क्षेत्रीय भाषा के अलावा एक दूसरी भाषा के रूप में सिखाने के लिए राष्ट्रीय योजना तैयार करें। इससे यह तय हो सकेगा कि स्कूल में बारह वर्ष की पढ़ाई पूरी करने के बाद हर विद्यार्थी कम-से-कम दो भाषाओं में प्रवीण हो जाएगा।"
राष्ट्रीय ज्ञान आयोग प्रधान मंत्री द्वारा गठित उच्च स्तरीय आयोग था जिसमें शामिल लोगों में से कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो संविधान के अनुच्छेद 351 के बारे में जानकारी देते हुए बता सके कि हमें हिंदी के विकास के लिए काम करना है और अंग्रेज़ी को शीघ्रातिशीघ्र विदा करना है न कि अंग्रेज़ी की जड़ मज़बूत करना है। जिसको विदेशों में नौकरी करना है या विदेश सेवा में जाना है वह तो अंग्रेज़ी पढ़ेगा ही और अच्छी तरह पढ़ेगा। अतः बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाना क्यों बन रहा है। किसी ने भी हमारी राजभाषा हिंदी के बारे में भी चिंता नहीं जताई और न ही प्रयास किया कि देश में त्रिभाषा सूत्र लागू कराकर कश्मीर से कन्याकुमारी तथा गुजरात से पूर्वोत्तर राज्यों को एक देश मानकर राजभाषा हिंदी को उच्च शिक्षा के लिए सशक्त बनाया जा सके। आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में सभी मुख्यमंत्रियों के साथ हिंदी को लागू कराने पर चर्चा की जाए और हिंदी को पहली कक्षा से क्षेत्रीय भाषा के अलावा एक दूसरी भाषा के रूप में सिखाने के लिए राष्ट्रीय योजना तैयार की जाए।
अंग्रेजी आती नही ,हिंदी सीखना नही चाहते ,सिर्फ वोट में रूचि है , कुर्सी के लिए ....ये हमारा दुर्भाग्य नही तो और क्या है?
जवाब देंहटाएंहम सब को शुभकामनाएँ!
त्रिभाषा सूत्र सही नहीं है। द्विभाषा जायज है ... वह तुष्टिकरण की नीति, पश्चिमी वर्चस्ववाद के प्रति समर्पण है।
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी स्पैम में देखिए, शायद वहाँ चली गई...
जवाब देंहटाएंप्रधान मंत्री द्वारा गठित उच्च स्तरीय आयोग था में शामिल लोगों में से कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो संविधान केअनुच्छेद 351 के बारे में जानकारी देते हुए बता सके कि हमें हिंदी के विकास के लिए काम करना है और अंग्रेज़ी को शीघ्रातिशीघ्र विदा करना है।
जवाब देंहटाएंसरकार का हिन्दी के प्रति क्या रवैया है इसका एक और उदाहरण मैंने आज ही अखबार में पढा उसी की प्रतिक्रिया में मैंने भी आज ही कुछ लिखा है ।वास्तव में यह विडम्बना है कि नीति वे बना रहे हैं जो उसे जानते नही । या उसका दुरुपयोग करते हैं ।
जवाब देंहटाएंमैं आपके मनोभावों की कद्र करते हुए यहीं कहूंगा कि आपके विचार सही हैं । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
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