अँधेरा कितना कमज़ोर होता है इसका पता इस बात से चल जाता है कि जैसे ही छोटे से छोटा दिया जल उठता है तो उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। यह दिया हमारे किसी भी प्रयास का प्रतीक है चाहे वह छोटा हो या बड़ा। वैसे प्रयास को छोटे या बड़े के मानदंड में रखना उचित नहीं है क्योंकि हर व्यक्ति आवश्यकतानुसार और अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार प्रयास करता है। जैसा कि टैगोर ने अपनी एक चतुष्पदी में व्यक्त किया है ".... शक्ति मुझमें है जहाँ तक मैं करूँगा नाथ।" यह भी तिमिर को दूर करके प्रकाश करने के संदर्भ में ही कहा गया है।
हिंदी दिवस के अवसर पर प्रत्येक कार्यालय में एक हिंदी सेवी चाहे नियमित हिंदी अधिकारी हो या नामित, हिंदी का दिया जलाकर अंग्रेज़ी के कारण फैले तिमिर को दूर करने का प्रयास करता है। उसका यह प्रयास सराहनीय है और उसका अनुसरण किया जाने योग्य है। यह व्यक्ति नन्हें दिए की भाँति तम के अस्तित्व को चुनौती दे रहा है। उसका हौसला बढ़ाने के लिए हर दिन राजभाषा दिवस माना जाए।
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पढ़ा।
जवाब देंहटाएंउसका हौसला बढ़ाने के लिए हर दिन राजभाषा दिवस माना जाए।
जवाब देंहटाएंएक दिन क्यों, रोज़ क्यों, नहीं सही कहा आपने
सही सोंच एवं सकारात्मकता है आपकी बातों में ।
जवाब देंहटाएंडॉ साहब
जवाब देंहटाएंहिन्दी एवं अंग्रेजी में बैर नहीं है। अंग्रेजी के कारण तिमिर नहीं फैला है। अंग्रेजी एक सार्वभौमिक भाषा है। ठीक उसी तरह जैसे हम हिन्दी को राष्ट्रीय एकता की कड़ी बनाना चाह रहे हैं।
राजभाषा अधिकारी को एक हीरे की तरह काम करना चाहिए। हीरा आने वाली रोशनी को अपने द्वारा परिस्कृत कर एक नई तथा अधिक चमकीली रोशनी प्रदान करता है। उसी प्रकार राजभाषा अधिकारी ( बल्कि सब हिन्दी प्रेमी) को अंग्रेजी में उपलब्ध संसाधनों को हिन्दी में उपलब्ध कराना चाहिए।
विडम्बना यह है कि राजभाषा अधिकारी सिर्फ आंकड़ों में फंस कर रह गए हैं। वो सिर्फ यह देखते रहते हैं कि राजभाषा में पत्राचार का प्रतिशत कितना बढ़ गया है। यदि घट गया है तो दोष किसके सर मढ़ा जाए।
कितने राजभाषा अधिकारी हैं जो सर उठा कर यह कह सकते हैं कि हमने हिन्दी में उत्तम कोटि के संसाधन आम जनता तक पहुंचाने में अपना तुच्छ योगदान दिया है?
हिन्दी का किसी भाषा से बैर नहीं है। हिन्दी एक विशाल हृदय भाषा है जिसने अनेकों विदेशी भाषाओं को बड़ी सहजता से अपने में समा लिया है।