शुक्रवार, मार्च 02, 2012

पृथ्वी के पर्यावरण में ऊष्मा की वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) - कार्बन गैसों के उत्सर्जन के लिए सरोगेट देशों का उपयोग यानि कि कार्बन क्रेडिट का जन्म

आपके पास पैसे हों तो आप कुछ भी खरीद सकते हैं और कुछ भी कर सकते हैं। आप दूसरों की कमाई खरीदकर ऐश कर सकते हैं और धौंस भी जमा सकते हैं कि मैंने तो इसकी कीमत चुकाई है। कार्बन क्रेडिट भी ऐसी ही व्यवस्था है जिसे बड़े लोगों ने अपने ऐशो आराम के लिए किराए पर ऐसे लोगों से अधिकार खरीद रहे हैं कि विकासशील देश कम कार्बन गैसों का उत्सर्जन करें और उसके लिए उन्नत किस्म की मशीनें उन विकसित देशों से खरीदें जो ऐसी मशीनें बनाते हैं और ऐसी मशीनों के निर्माण के दौरान भारी मात्रा में कार्बन गैसों का उत्सर्जन करते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण विश्व में मचे हड़कंप को ध्यान में रखकर विकासित राष्ट्रों ने एक रास्ता निकाला कि कार्बन गैसों के उत्सर्जन के लिए सरोगेट देशों का उपयोग किया जाए। आज विकसित देशों के पास सब कुछ है। यहां तक की उनके स्लम्स एरिया (झुग्गी बस्ती) के मकानों में भी सेंटरलाइज़ एसी होते हैं। जो कि दिन दूनी रात चौगुनी ग्रीन हाउस गैस उगलती रहती हैं। लेकिन अब विकसित देशों को इस बात का डर है कि कहीं उनका ऐशो आराम, हराम में न बदल जाए और ये तभी होगा जब भारत और चीन जैसे देश विकसित बनने के लिए उनका रास्ता अपनाएंगे क्योंकि उन्होंने विकास के क्रम में ग्रीन हाउस गैसों और कार्बन डाइऑक्साइड गैसों, जैसे, जैसे आजोन, कार्बन डाईआक्साईड, नाईट्रस आक्साइड आदि के उत्सर्जन को रोकने के लिए कुछ नहीं किया था। आज विकसित देशों के पास सब कुछ है लेकिन गर्दन पर ग्लोबल वॉर्मिंग की तलवार भी लटक रही है।

अतः इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच का इस्तेमाल किया गया। ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे से बचने के लिए 1997 में जापान के क्योटो शहर में हुए वर्ल्ड अर्थ समिट में से क्योटो प्रोटोकॉल निकलकर सामने आया। आज इसके 150 से ज़्यादा देश सदस्य हैं। इन देशों ने मिलकर 2012 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 1990 के स्तर से 5.2 फीसदी नीचे लाने का लक्ष्य रखा है। इसी क्योटो प्रोटकॉल में कार्बन क्रेडिट का जन्म हुआ यानि कि विकसित देश पर्यावरण को खराब करें और उसे बचाने का उद्यम करें विकासशील देश। इसके बदले उन्हें धन का लालच देकर काम में लगाए रखा जाए और विकसित देशों की ऐशो आराम वाली ज़िंदगी बनी रहे।

कार्बन क्रेडिट है क्या?

अगर आप कार्बन डाइऑक्साइड का कम उत्सर्जन करेंगे तो आपको इसके बदले कार्बन क्रेडिट दिए जाएंगे जिसे बेचकर आप पैसे कमा सकते हैं। कार्बन क्रेडिट कार्बन उत्सर्जन कम करने पर मिलने वाले वो रिवार्ड प्वाइंट हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार में भुनाया जा सकता है यानी कि अगर आपकी कपंनी ने निर्धारित सीमा से कम कार्बन उत्सर्जन किया है तो उसे कार्बन क्रेडिट मिलेंगे। यह एक प्रकार की प्रोत्साहन योजना है। बाज़ार में इनकी वाजिब कीमत होगी और कंपनी उन्हें बेच सकती है। संयुक्त राष्ट्र संघ की देखरेख में सदस्य देशों और उनके संस्थानों को कार्बन क्रेडिट इश्यू किया जाता है। ये क्रेडिट क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म (CMD) के जरिए तय किया जाता है। अगर किसी कंपनी ने कार्बन डाइऑक्साइड घटाने के लिए अच्छी तकनीक का सहारा लिया है। तो उसके बदले उसे कितना कार्बन क्रेडिट मिलना चाहिए ये फैसला सीएमडी के जरिए ही होता है। साथ ही सीएमडी के तहत ही ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन करने वाली कंपनियां भी कार्बन क्रेडिट खरीदकर अपना उत्पादन जारी रख सकती हैं। स्टील, चीनी, सीमेंट और फर्टिलाइजर बनाने वाली कंपनियां ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करती हैं। अगर कोई कंपनी एक टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम कर रही है तो उसे एक कार्बन क्रेडिट मिलेगा और एक कार्बन क्रेडिट की कीमत इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में करीब 20 डॉलर चल रहा है।

1 टिप्पणी:

क्या रुपए का नया प्रतीक क्षेत्रीयता का परिचायक है?