बुधवार, जून 01, 2011

इलेक्ट्रॉनिक युग में भुगतान प्रणाली व जुड़े जोखिम

दैनिक कार्य व्यापार के सिलसिले में समाज का हर व्यक्ति किसी न किसी पर निर्भर है और अपनी ज़रूरत के अनुसार वह दूसरों से माल या सेवाएं लेता है। सामाजिक व्यवस्था के विकास के साथ-साथ परस्पर निर्भरता तथा आपसी लेनदेन बढ़ते गए। हर व्यक्ति हर काम में कुशल बनने का प्रयास करने के बजाय आपसी सहयोग तथा सह अस्तित्व के सिद्धांत को अपनाने लगा और ऐसी प्रणाली विकसित करते रहने की ओर सतत प्रयासशील रहा कि उसका जीवन सुकर बने, उसका कारोबार बढ़े तथा उसकी देनदारियों एवं लेनदारियों का समाधान होता रहे। उसके लिए ही 'भुगतान प्रणाली' का विकास हुआ। अतः भुगतान प्रणाली भी समय के साथ तथा आवश्यकतानुसार विकसित होती रही। आज के परिप्रेक्ष्य में भुगतान प्रणाली का मतलब संस्थागत भुगतान प्रणाली से है, चाहे वह नकद भुगतान हो या किसी लिखत या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से हो। दूसरे, जब भुगतान की प्रणाली विकसित होती है तो साथ ही उसकी खामियाँ भी विकसित होती हैं जिसका ज्ञान हमें समय के साथ-साथ ही होता है। हम इस लेख में भुगतान प्रणाली तथा इससे जुड़े जोखिमों पर चर्चा करेंगे।
भुगतान प्रणाली का उद्देश्य
जब बैंकिंग व्यवस्था विकसित हुई तो भुगतान प्रणाली की संस्थागत व्यवस्थाएँ अस्तित्व में आईं। उसके परिणामस्वरूप समाशोधन प्रणाली प्रचलन में आई जिसमें कोई चेक, ड्राफ़्ट अथवा परक्राम्य लिखत बैंकिंग क्रियाविधि के माध्यम से प्रस्तुत किए जाने लगे। आजकल भुगतान की कई प्रणालियाँ प्रचलित हैं। परंतु उन सबका एक ही उद्देश्य है - एक पक्ष के खाते से दूसरे पक्ष के खाते में धन का अंतरण। भुगतान करने वाला पक्ष यदि चाहे तो नकद भुगतान कर सकता है या विनिमय प्रणाली द्वारा भी भुगतान कर सकता है। बैंक भी अपनी निधियों का अंतरण करने के लिए भुगतान प्रणाली का उपयोग करते हैं। उनके निधि अंतरण करने का स्वरूप ग्राहकों के निधि अंतरण से भिन्न होता है। भुगतान प्रणाली का स्वरूप चाहे जो भी हो उसका उद्देश्य है दो संबंधित पार्टियों के बीच आपसी देयताओं या देनदारियों को पूरा करना। उसके लिए लिखतों, नियमों तथा क्रियाविधियों का संग्रहण किया जाता है जिसके द्वारा लेनदेनकर्ता आपस में अपनी देनदारियों तथा लेनदारियों का समाधान करते हैं।

भुगतान प्रणाली के तीन प्रमुख तत्व हैं :

1. भुगतान करने वाले व्यक्ति द्वारा अपने खाते से धन का अंतरण करने के लिए बैंक को प्राधिकृत करना । बैंक को दिया जाने वाला प्राधिकार किसी न किसी लिखत के रूप में जैसे, चेक, पे आर्डर आदि हो सकता है।

2. भुगतान अनुदेश को संबंधित बैंक को भेजना तथा उनका आदान प्रदान - सामान्यतया समाशोधन।

3. संबंधित बैंकों के बीच देनदारियों/लेनदारियों का समाधान, अर्थात्, अदाकर्ता को बैंक द्वारा प्राप्तकर्ता के बैंक को या तो आपस में या किसी अन्य पक्ष के पास रखे गए खातों के माध्यम से (रिज़र्व बैंक या कोई अन्य बैंक) देनदारियों
लेनदारियों का समाधान।

प्रस्तुतकर्ता बैंक आहर्ता बैंक से उस लिखत का मूल्य समाशोधन गृह के माध्यम से प्राप्त करने लगे। यह प्रणाली बहुत दिनों तक देश विदेश में प्रचलित रही। जैसे-जैसे बैंकिंग का विस्तार होता गया भुगतान प्रणाली का भी विविधीकरण होता गया। पहले भुगतान के तरीके सीमित होते थे। परंतु आज नकद के अलावा चेक, ड्रॉफ़्ट, हुंडी, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, यात्री चेक, डाक अंतरण, तार अंतरण, ए.टी.एम, ऑनलाइन अंतरण, चिप कार्डों आदि के माध्यम से भुगतान होने लगे हैं। उसमें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और कंप्यूटर की नेटवर्किंग का महत्व बहुत बढ़ गया है। बैंकिंग के संदर्भ में भुगतान प्रणाली ऐसी व्यवस्था है जिसमें कई संस्थाएँ शामिल होती हैं और एक संस्था उनमें समन्वय का कार्य करती है।

भुगतान से जुड़े संभावित जोखिम

समाशोधन प्रणाली ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत अलग-अलग लिखतों का भुगतान अलग-अलग नहीं किया जाता है बल्कि एक बैंक की संपूर्ण देयता का एक मुश्त रकम द्वारा भुगतान कर दिया जाता है। ऐसे में यदि भुगतान करने के बाद कोई बैंक किसी एक लिखत की देयता का भुगतान करने से मना कर दे या जब भुगतान देय हो उसके बहुत दिन बाद भुगतान करे तो ऐसी स्थिति में जोखिम की गुंजाइश रहती है। इसमें कुछ प्रणालीगत जोखिम भी है। यदि कोई बैंक अपने दायित्वों से मुकर जाए तो उसकी देयता अन्य बैंकों को उठानी पड़ेगी। चूँकि वित्तीय लेनदेनों में बहुत अधिक वृद्धि हो चुकी है और दिनों दिन उसकी मात्रा व संख्या बढ़ती जा रही है इसलिए समय समय पर प्रणाली में परिवर्तन परिवर्द्धन होते रहना चाहिए। नई तकनीकों के आगमन से उनके अनुरूप प्रणाली में यथावश्यक संशोधन किया जाना चाहिए। संचार माध्यमों और इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकी में आई क्रांति के कारण जहाँ बहुत त्वरित गति से परिवर्तन हुए हैं, सुविधाएँ बढ़ी हैं वहीं जोखिम की संभावनाएँ भी बढ़ी हैं क्योंकि जितनी जटिल व उच्च तकनीकी प्रणाली, जोखिम की संभावना भी उतनी ही बढ़ी। अतः प्रणाली में निहित भुगतान जोखिमों को निम्नलिखित दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है :

प्रणालीगत जोखिम

इस प्रकार का जोखिम उस समय उत्पन्न होती है जबकि प्रणाली में शामिल कोई पक्ष अपनी देनदारियों से मुकर जाता है।
ऐसी स्थिति में उसका शृंखलात्मक प्रभाव होता है और प्रणाली ही छिन्न भिन्न हो जाती है।

समाधान जोखिम

इस प्रकार का जोखिम प्रायः समाधान में अनिश्चितता के कारण होता है। किसी भी भुगतान में इस प्रकार की गुंजाइश होती है कि देनदार पक्ष समय पर भुगतान करने में चूक कर दे। इसे साख जोखिम कहा जाता है। इससे तरलता (नकदी) जोखिम उत्पन्न हो सकती है क्योंकि जब समाधान में नकदी नहीं प्राप्त होगी तो उससे नकदी की स्थिति प्रभावित होगी। अतः उस पक्ष को धन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए मजबूरन बाज़ार से धन जुटाना होगा। यदि आस्ति बेचकर धन जुटाना होगा तो उसे तत्कालीन बाज़ार जोखिम का सामना करना होगा।
इधर हाल में अंतरराष्ट्रीय भुगतानों की संख्या और मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। फिलहाल पूरे विश्व में एकरूप भुगतान प्रणाली नहीं प्रचलित है। इसलिए ऐसे भुगतान जिसमें दो या अधिक देश शामिल होते हैं भुगतान समाधान से पूर्व उन्हें कई प्रक्रिया और प्रणालियों से गुज़रना पड़ता है। ऐसी प्रणालियों की सुदृढ़ता कई घटकों पर निर्भर होती है, जैसे, प्रणाली की गति, उसकी दक्षता, सहयोगियों या ग्राहकों की निष्ठा, प्रणाली विषयक तकनीक की उन्नति इत्यादि। अंतरराष्ट्रीय भुगतानों की सबसे बड़ी कठिनाई अधिकारिता क्षेत्र (जूरिसडिक्शन) की होती है क्योंकि उनमें भिन्न-भिन्न देश होते हैं और अंतरराष्ट्रीय कानूनों को लागू करने के बारे में बड़ी पेचीदगी का सामना करना पड़ सकता है।

जोखिम कम करने के उपाय

भारत के बैंक जोखिमों से चिंतित नहीं दिखते हैं क्योंकि इधर बहुत दिनों से सार्वजनिक क्षेत्र का कोई बैंक फेल नहीं हुआ है। भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंकिंग उद्योग का नियामक होने के कारण समाशोधन गृह के कार्यों में महत्वपूर्ण या निर्णायक दखल रखता है। समाशोधन गृह को चलाने में रिज़र्व बैंक की निर्धारक भूमिका होती है। वह समाशोधन गृह के लिए मानक नियम व शर्तें निर्धारित करता है। वह समाशोधन गृह की सदस्यता लेने तथा किसी बैंक द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले चेकों की रकम को सीमित कर सकता है।
भुगतान प्रणाली में निहित जोखिमों को कम करने के लिए आवश्यक है कि `जोखिम नियंत्रण प्रणाली' विकसित की जाए।

4 टिप्‍पणियां:

  1. Nice information on clearing, और वो भी हिंदी में, आपको बधाई,
    शुभकामना सहित विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  2. बहुत अच्छी जानकारी देती और सचेत करती पोस्ट......

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  3. ज्ञानवर्धक आलेख है ।
    आपको शायद मेरा मेल मिला नही जिसमें मैंने अपनी वर्तनी विषयक समस्याएं रखी थी अन्यथा आप उत्तर देते ही । कृपया अपना ई-मेल पता पुनः भेज दें ।

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  4. बेंकिंग विषय पर हिंदी में यह आलेख देख कर अच्छा लगा.

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