शुक्रवार, अप्रैल 29, 2011

भाषा विचार - संप्रेषण की परिणति वाक्य


भाषा विचार - संप्रेषण की परिणति वाक्य

अपनी पिछली चार पोस्टों में भाषा की मूलभूत इकाई वर्तनी, शब्द आदि के बारे बात कर चुका हूं और वे सभी संप्रेषण के आधार भूत तत्व हैं संप्रेषण क्या है? इसके बारे में मैंने पिछली पोस्ट में चर्चा की थी और संप्रेषण में मुख्य रूप से हम क्रमशः ध्वनिम, शब्द, पद, उपवाक्य से होते हुए वाक्य तक पहुंचते हैं और अपनी बात दूसरों तक पहुंचाते हैंहम चर्चा करते समय या लेखन करते समय भाषा के मूल संरचनागत नियमों को ध्यान में रखकर अंततः वाक्य पर पहुँच कर अपना मंतव्य प्रकट करते हैं। इसे ही भाषा की पूर्ण इकाई मानते हैं, अर्थात् लिखित रूप में भी और ध्वन्यात्मक रूप में भी वाक्य मनुष्य की भाषागत अभिव्यक्ति का सबसे महत्वपूर्ण उपादान है। मनुष्य वाक्यों में ही सोचता है और अपनी मानसिक प्रक्रिया को इच्छा और आवश्यकता के अनुसार वाक्य के विभिन्न रूपों में ही अभिव्यक्त करता है। आधुनिक भाषा विज्ञान में अभी तक किए गए अनुसंधानों से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि मानव विचार की प्रक्रिया आंतरिक भाषा के समान है जिसमें व्यक्त भाषा के समान ही वाक्य परस्पर संबद्ध रहते हैं। हमारे सोचने और वार्तालाप का माध्यम वाक्य ही होते हैं भारतीय परंपरा में भाषा रचना का अध्ययन तीन दृष्टकोण से किया जाता है – 1. स्वन संरचना (फ़ोनीम) – बाह्य, 2. व्याकरणिक संरचना (ग्रामर) – बाह्य, 3. अर्थ संरचना (सिमैंटिक) – आंतरिक। परंतु इन सभी विचारों का अंतिम अभिलक्ष्य वाक्य और वाक्य के माध्यम से अर्थाभिव्यक्ति ही है। इस प्रकार वाक्य के बारे में चिंतकों के दो वर्ग बनते हैं

1.    वाक्य की व्याकरणिक संरचना पर विचार करके नियम निर्धारित करने वाला और

2.   वाक्य की अर्थाभिव्यक्ति या संप्रेषणीयता पर विचार करने वाला।

इस संपूर्ण प्रक्रिया की परिणति विश्लेषण या संश्लेषण विधि द्वारा भाषा की संरचना का अध्ययन करना है ताकि भाषा सीखने की इच्छा रखने वाला व्यक्ति शब्दों को संश्लेषित करके वाक्य की रचना कर सके और उस वाक्य के पदों को विश्लेषित करके उसकी अर्थाभिव्यक्ति द्वारा अर्थ ग्रहण कर सके। अब तक किसी न किसी रूप में मुख्यतः वाक्य संरचना तथा संदेश संप्रेषण इन्हीं धुरियों के चारों तरफ़ घूमती रहती है।  

वाक्य रचना की शुरुआत - पद रचना

भाषा के शुद्ध और सुगठित वाक्य की रचना के लिए पद रचना का ज्ञान आवश्यक है। वाक्य में शब्द इसी रूप में हमारे सामने आता है। यह उसकी प्रायोगिक स्थिति होती है। शब्दकोशों में लिखे गए शब्द का रूप व्यावहारिक नहीं होता है। उस रूप में वह किसी कथन या वक्तव्य का अंग नहीं बनता। वाक्य या प्रोक्ति (डिसकोर्स) का अंग बनने के लिए उसमें स्वाभाविक स्थिति की अपेक्षा कुछ परिवर्तन-परिवर्धन अपेक्षित होता है। "अपदम् न प्रयुञ्जीत" अपद का प्रयोग मत करो। अर्थात् प्रयोग के समय लिंग, वचन, कारक व वृत्ति के अनुसार कुछ न कुछ परिवर्तन-परिवर्धन करना पड़ता है। परिवर्तन-परिवर्धन की इस प्रक्रिया को पद रचना कहते हैं तथा यह परिवर्तित-परिवर्धित शब्द "पद"  कहलाता है। कारकचिह्नों से युक्त्त शब्दों तथा क्रिया रूपों को पद कहते हैं।

यह पद वाक्य का अंतरंग अवयव है। पद के अर्थज्ञान के बिना वाक्य का अर्थज्ञान नहीं हो सकता। पद रचना हेतु प्रत्ययों का इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि प्रयोग गत शब्दों में किसी प्रकार का परिवर्तन-परिवर्धन नहीं किया जा सकता है। उस स्थिति में उसका रूप परिवर्तित हो या न हो उसमें कुछ न कुछ अतिरिक्त सम्बंध भावना आ जाती है।

भारतीय भाषा शास्त्र में "पद" का इतिहास बहुत प्राचीन है। वेदों में भी इस का प्रयोग बहुलता से आता है। यास्क के निरुक्त से पूर्व निश्चय ही "पद" की स्थित व तत्संबंधी अन्य धारणाएँ स्थिर रूप कर चुकी थीं। पाणिनि ने "सुप्" और "तिङ्" प्रत्ययों से युक्त शब्द को "पद" माना है। (सुप् तिङंत पदम् – 1.4.14)। वाक्य में पदों के समूह को पदबंध कहते हैं। इस प्रकार पदबंधों से वाक्य की रचना होती है। अतः अंग्रेज़ी भाषा से हिंदी में अनुवाद कार्य करते समय यदि पद निर्माण के सिद्धांतों का अनुसरण किया जाए तो वाक्य रचना कभी दुरूह नहीं होगी और फिर हिंदी पर क्लिष्टता का अरोप लगने का अवसर नहीं मिलेगा।

 पदबंध रचना

कारक युक्त शब्दों का परंतु बिना उद्देश्य, विधेय का समूह "पदबंध" है। इसे और स्पष्ट ढंग से कहें तो "शब्दों का समूह जिनसे अर्थ का बोध होता है, परंतु पूर्ण अर्थ का बोध नहीं  होता है "पदबंध" कहलाता है।" उपवाक्य में उद्देश्य और विधेय होते हैं परंतु पदबंध नहीं।  

पदबंध का स्वरूप

"पद" से बड़ी परंतु उपवाक्य से छोटी इकाई पदबंध है। पदबंधों से ही मिल कर उपवाक्य बनते हैं। पदबंद वाक्य में निर्धारित व्याकरणिक प्रकार्य (फ़ंक्शन) पूरा करने वाली इकाइयां हैं जिनका अस्तित्व केवल वाक्य के अंतर्गत ही संभव है, वाक्य के बाहर नहीं।

प्रत्येक वाक्य में कर्ता, कर्म, पूरक, अव्यय तथा क्रिया के निर्धारित स्थान होते हैं जहाँ पर प्रयुक्त होकर संज्ञा, विशेषण, क्रिया आदि शब्द वाक्य में कुछ निश्चित भूमिकाएँ निभाते हैं और निर्धारित कार्य संपन्न करते हैं। इन स्थानों को प्रकार्य स्थान (स्पाट) कहते हैं। इन प्रकार्य स्थानों पर जो शब्द या शब्द समूह प्रयुक्त होते हैं या होने की क्षमता रखते हैं उन्हें पदबंध कहते हैं।  

निम्नलिखित वाक्य देखिए -

1.    मेरी लड़की शाम को लौटेगी।

2.    मेरी लड़की कल शाम को लौटेगी।

3.    मेरी सबसे बड़ी लड़की कल या परसों शाम को लोटेगी।

पहले वाक्य में तीन पदबंद हैं - "लड़की", "शाम को" और "लौटेगी"। दूसरे और तीसरे वाक्यों में पहले वाक्य के पदबंधों का विस्तार किया गया है लेकिन वे उन्हीं प्रकार्य स्थानों पर प्रयुक्त हुए हैं। इसलिए वे भी पदबंध हैं। "लड़की", "मेरी लड़की" और "मेरी सबसे बड़ी लड़की" इन तीनों में कोई अंतर नहीं है क्योंकि तीनों ही पदबंद हैं और कर्ता स्थान पर प्रयुक्त हैं। इसी प्रकार "शाम को", "कल शाम को", "कल या परसों शाम को" तीनों ही पदबंद हैं और क्रिया विशेषण के प्रकार्य स्थान पर प्रयुक्त्त हुए हैं। इसका मतलब यह हुआ कि न्यूनतम पदबंध के विस्तार के लिए जितने भी विशेषक प्रयुक्त होंगे वे सभी उसके अंग होते जाएंगे।

वाक्य में पदबंध जो प्रकार्य करते हैं उसके आधार पर हम पदबंधों की प्रकार्यात्मक कोटियाँ (फ़ंक्शनल कटेगरीज़) बना सकते हैं, जैसे, कर्ता पदबंध, कर्म पदबंध, पूरक पदबंध, क्रिया विशेषण पदबंध।  इन प्रकार्यों के लिए प्रयुक्त पदबंधों के संरचनात्मक स्वरूप को स्पष्ट करके हम इनकी संरचनात्मक कोटियाँ (स्ट्रक्चरल कटेगरीज़) भी निर्धारित कर सकते हैं, जैसे संज्ञा पदबंध, विशेषण पदबंध, क्रिया विशेषण पदबंध। अतः वाक्य का निर्माण करते समय यदि इन पदबंधों के स्थानों को निश्चित कर लिया जाए तो इन वाक्य घटकों को निकटतम अवयव (क्लोज़ेस्ट कॉम्पोनेंट) के अनुसार रखकर सुगठित व अर्थाभिव्यक्ति की दृष्टि से स्पष्ट वाक्य की रचना की जा सकती है।

यदि वाक्य निर्माण के इन नियमों का पालन किया जाए और हिंदी भाषा के शिक्षण में वाक्य संरचना इसी के आधार पर कराई जाए तो हिंदी भाषा पर लगने वाले आरोपों को झूठा सिद्ध किया जा सकता है।

इस प्रकार, संप्रेषणीयता संबंधी मेरी संकल्पना की प्रस्तुति यहीं समाप्ति होती है। भाषा और व्याकरण संबंधी कोई और विषय पर लेखन की आवश्यकता महसूस करें तो अपनी प्रतिक्रिया दें। सेवा में सहर्ष हाज़िर हो जाऊंगा। 

-       डॉ. दलसिंगार यादव

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6 टिप्‍पणियां:

  1. @Blogger सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

    वाक्य निर्माण के नियमों का विस्तृत विवरण........बहुत ही उपयोगी है |

    भाषा विज्ञान की सार्थक जानकारी देने के लिए बहु-बहुत आभार |

    April 29, 2011 1:44 PM

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  2. वाक्य निर्माण के नियम बहुत ही उपयोगी है |
    भाषा सम्बन्धी ज्ञानवर्धक पोस्ट इतनी जानकारी देने के लिए आपका आभार

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  3. पहली बार इस तरह का पोस्ट पढने को मिला।आप द्वारा प्रदत्त जानकारी बहुत ही अच्छी लगी। धन्यवाद।

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  4. बड़ा ही महत्त्वपूर्ण आलेख। इस तरह के आलेख से हिन्दी के नियमों के प्रति जानकारी बढती है।

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  5. शिक्षण हेतु भी बहुत ही उपयोगी लेख है .
    आभार.

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