ग्यारह से पंद्रह अप्रैल तक राजभाषा विकास कार्यक्रम में व्यस्त रहा अतः ब्लॉग पर नहीं आ सका। लिखने को कई विषय थे परंतु इस विषय पर लिखने की एक खास वजह यह है कि मेरे कार्यक्रम में रेलवे के एक सहभागी ने कहा कि "देशपांडे हॉल (नागपुर सिविल लाइंस जैसे पॉश क्षेत्र में स्थित) में एक कार्यक्रम था परंतु उसमें भाग लेने वाले एक दम ठेठ गाँव से आए लगे।"
ऐसा अक्सर हो रहा है कि नेताओं को जब अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना होता है तो गाँव-गाँव में सक्रिय अपने कार्यकर्ताओं को कुछ धन देकर निदेश देते हैं कि अमुक तारीख, समय और स्थान पर इतनी संख्या में व्यक्तियों की उपस्थिति सुनिश्चित करें। कार्यकर्ता अपने आकाओं के आदेश के अनुपालन में अपने संपर्क में आने वाले लोगों को शहर दिखाने, शहर तक ले जाने और शहर दिखाकर वापस गाँव तक छोड़ने का आश्वासन देते हैं तथा कुछ धन भी अग्रिम दे देते हैं। अतः भीड़ इकट्ठा हो जाती है। मीडिया के लोगों को भी कुछ समाचार मिल जाते हैं। नेताओं के बयान मीडिया में आ जाते हैं जिससे उनकी मंशा पूरी हो जाती है। हालाँकि सभी को मालूम होता है कि भीड़ जुटाई गई है। भीड़ जुटाने की इस प्रक्रिया को क्राउड आउटसोर्सिंग कहा जाता है, अर्थात्, क्राउड + सोर्सिंग = क्राउडसोर्सिंग। चूँकि ये दोनों शब्द सजातीय हैं इसलिए इन्हें एक साथ लिखा जा सकता है – क्राउडसोर्सिंग। इसे हिंदी में जुटाऊभीड़ या भाड़े की भीड़ कहा जा सकता है।
वाह! क्या खूब कहा है - भीड़ जुटाने की प्रक्रिया क्राउड आउटसोर्सिंग!
जवाब देंहटाएंआज कल तो चुनावों का मौसम है इस राज्य में तो ये कारोबार तो अपने चरम पर है।
Manoj ji se poori tarah sahmat.
जवाब देंहटाएंक्राउड आउटसोर्सिंग!
जवाब देंहटाएंनए शब्द की जानकारी के लिए धन्यवाद