सोमवार, मार्च 05, 2012

अंग्रेज़ी मातृभाषाओं को पछाड़ रही है

राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय ने शिक्षा के लिए ज़िला सूचना प्रणाली के अंतर्गत जानकारी एकत्रित की है और पाया है कि पालकों द्वारा अपने बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में भर्ती कराने का क्रेज़ बढ़ा है। वर्ष 2010-11 में प्रवेश के लिए किए गए पंजीकरण के अनुसार पहली कक्षा से आठवीं तक के लिए अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ने के लिए विद्यार्थियों की संख्या दो करोड़ से ऊपर पहुँच गई। इस संख्या में 2003-04 के मुक़ाबले 274% की वृद्धि हुई है। अंग्रेज़ी पिछले चार सालों से पढ़ाई के लिए माध्यम के रूप में दूसरे नंबर पर बनी हुई है। यह बंगाली और मराठी जो कि पढ़ाई के लिए माध्यम के रूप में अपनाई जाने वाली भाषाएँ आगे हैं। हिंदी भाषा नंबर एक स्थान पर है। अंग्रेज़ी माध्यम को अपनाए जाने के साथ-साथ हिंदी, मराठी और बंगाली में भी वृद्धि हुई है।
यह सत्य है पर अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ने का क्रेज़ विद्यार्थियों में नहीं है। यह क्रेज़ पालकों में है जो यह मानने लगे हैं कि अंग्रेज़ी के सिवाय कोई भविष्य नहीं है और अनजाने में अपने बच्चों के साथ ज़्यादती करते हैं। बच्चे के सहज व स्वाभाविक विकास को अंग्रेज़ी भाषा के बोझ तले दबाकर कुंठित कर रहे हैं।
राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय के कुलपति आर. गोविंद का कहना है कि "बहुत भारी मात्रा में अनुसंधान यह साबित करते हैं कि बच्चे को विषय की आधारभूत अवधारणा की समझ बढ़ाने हेतु पढ़ाने के लिए सबसे अच्छा माध्यम उसकी मातृभाषा है। चूँकि लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे अंग्रेज़ी पढें इसलिए अपने बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में डालते हैं। अंग्रेज़ी पढ़ाने के लिए अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में भेजना कतई ज़रूरी नहीं है। यदि भारतीय भाषाओं के स्कूल अपने यहाँ अंग्रेज़ी की अच्छी पढ़ाई करा सकते हैं तो पालकों को इसके लिए अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में भेजना कतई ज़रूरी नहीं है।" वे कहते हैं कि मैंने स्वयं कन्नड़ माध्यम के स्कूल से पढ़ाई की है और वहीं पर अंग्रेज़ी का ज्ञान भी प्राप्त किया। परंतु भेड़चाल चल पड़ी है और पालक बच्चों पर अनावश्यक रूप से अंग्रेज़ी भाषा का बोझ प्रारंभ से ही डाल रहे हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग की डीन प्रोफ़ेसर अनीता नागपाल का कहना है कि बहुत व्यापक अनुसंधानों के ज़रिए यह सिद्ध किया जा चुका है कि अधिक वर्षों तक किसी भाषा की पढ़ाई करने मात्र से ही वह उस भाषा को फ़र्राटे से बोलने के योग्य हो जाएगा, यह ज़रूरी नहीं है। ऐसा ज्ञात हुआ है कि यदि आपको अपनी मातृ भाषा पर अच्छा अधिकार है तो कोई भी दूसरी भाषा आसानी से सीखी जा सकती है। मैंने 1985 में स्वयं एक अनुसंधान किया था और उसमें भी यही परिणाम सामने आए थे कि जिन लोगों को हिंदी अच्र्छी तरह आती है उन्हें अंग्रेज़ी का भी अच्छा ज्ञान है। परंतु भेड़चाल अब रुकने वाली नहीं है और हम सब अपने ही हाथों अपने बच्चों का भविष्य बिगाड़ने पर आमादा हैं। गंभीर चिंतन और सुधारात्मक उपाय ज़रूरी है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. Education psychology says that the level of comprehension in our mother tounge is 100% rather than any other language...... so the place of MT cannot be replaced. None can replace 'in loco parentis' so the MT cannot be defeated ... i disagree with you sir.....
    I am sorry to say i am posting this thoughts in english which is not my MT but u know very well the the word 'Deshkal Paristhithi' ... this computer lacks unicode facility and i donot have right to upload the same here..... anyway happy holi to you....

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    1. रजनीश जी! लगता है आपने मेरी पोस्ट को ठीक ते नहीं पढ़ा है। यदि पढ़ा तो समझने के लिए समय नहीं दे पाए हैं। मैंने अंग्रेज़ी की वकालत तो कतई नहीं की है। मैंने तो कुछ ऐसे लोगों को उद्धृत करके यह बताने की कोशिश की है कि अंग्रेज़ी सीखने के लिए मातृभाषा को तिलांजलि नहीं देना चाहिए।
      2. आपके कंप्यूटर में यूनीकोड की व्यवस्था नहीं है। यह बात मेरी समझ में नहीं आई। क्या मैं यह मान लूँ कि स्टेट बैंक ऑफ़ बीकानेर में लगे कंप्यूटर 1997 से पहले के हैं? यदि नहीं तो आप अपने कंप्यूटर में यूनीकोड क्यों सक्रिय नहीं कर पा रहे हैं। यदि विस्तार से बात करें तो आपकी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।

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    2. रजनीश जी आपको होली की ढेर सारी शुभकामनाएं।
      I disagree with you से आपका क्या तात्पर्य है? हमें ऐसा प्रतीत होता है कि डॉ. साहब और आप दोनों ही मातृभाषा के पक्षधर हैं।

      विनय कुमार सिंह

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