tag:blogger.com,1999:blog-1711294389298500420.post7461798268840104791..comments2023-10-10T14:44:10.544+05:30Comments on राजभाषा विकास परिषद: भाषा आंदोलन में हिंदी ब्लॉगों की भूमिकाडॉ. दलसिंगार यादवhttp://www.blogger.com/profile/07635372333889875566noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-1711294389298500420.post-53268950499597756402011-07-31T15:08:54.534+05:302011-07-31T15:08:54.534+05:30नेक सलाह, जो माननी ही पडेगी।नेक सलाह, जो माननी ही पडेगी।SANDEEP PANWARhttps://www.blogger.com/profile/06123246062111427832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1711294389298500420.post-60234054080299689352011-05-22T07:44:48.150+05:302011-05-22T07:44:48.150+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.डॉ. दलसिंगार यादवhttps://www.blogger.com/profile/07635372333889875566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1711294389298500420.post-69246108281840249112011-05-22T07:43:07.029+05:302011-05-22T07:43:07.029+05:30विद्या जी!
मुझे आपकी यह बात बहुत ही अच्छी लगती है ...विद्या जी!<br />मुझे आपकी यह बात बहुत ही अच्छी लगती है कि आप तुरंत खरी खोटी जो भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर देती हैं और फिर क्षमा भी मांग लेती हैं जबकि आपका स्वयं का कहना है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी हर इंसान की अपनी मिल्कियत है और उस पर उसका पूरा अधिकार है। मैं तो क्या कोई भी व्यक्ति किसी के लेखन या अभिव्यक्ति पर कोई पाबंदी नहीं लगा सकता है। अतः आपने क्षमा मांगने वाली कोई बात तो नहीं लिखी है। आपका गिल्टी कॉन्शियस होना बेवजह है। <br />मेरा यह लिखना कोई मन को शांति देने के लिए नहीं बल्कि यह अनुरोध करना है कि ज्ञान-विज्ञान की नवीनतन विधाओं/विषयों पर हिंदी में लिखें ताकि हिंदी में अभिव्यक्ति के लिए शब्द और परंपरा का सृजन हो तथा हिंदी भाषा संपन्न और समृद्ध हो जिसका कि आरोप हिंदी भाषा पर लगता ही रहता है।<br />विश्वेश्वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, नागपुर ने 25 मार्च को अपने परिसर में हिंदी के अंतरराष्ट्रीय स्वरूप और यूनीकोड प्रणाली पर संगोष्ठी आयोजित की थी और मुझे उसमें यूनीकोड पर जानकारी देने के लिए आमंत्रित किया था। संगोष्ठी का उद्घाटन दत्ता और मेघे चिकित्सा संस्थान, वर्धा के कुलगुरु डॉ. वेदप्रकाश मिश्र ने किया और अपने धारा प्रवाह, मंत्रमुग्ध कर देने वाले भाषण में कहा कि हिंदी राष्ट्रीय एकता की, सभी भाषाओं में संवाद और सहचारिता की भाषा है। उन्होंने बताया कि हिंदी विश्व के 26 देशों में पढ़ाई जाती है। परंतु हमारे देश में उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी इस लिए है क्यों कि हिंदी में लिटरेचर नहीं है। अतः विषय के विशेषज्ञों से मैंने अनुरोध किया है कि वे ज्ञान-विज्ञान की नवीनतन विधाओं/विषयों पर हिंदी में लिखें। इससे तो लोगों के लेखन क्षेत्र का ही विकास होगा। कृपया इसका अन्यथा अर्थ न लगाएं। हिंदी की सेवा में आपका लेखन तो सर्वथा सराहनीय है यह तो आपकी पोस्टों पर टिप्पणियों से जग जाहिर है।<br />गिरिजा जी ने तो इस बात को सही परिदृश्य में समझा और समर्थक बात कही है।डॉ. दलसिंगार यादवhttps://www.blogger.com/profile/07635372333889875566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1711294389298500420.post-11920928120302047872011-05-21T23:58:42.784+05:302011-05-21T23:58:42.784+05:30दिव्या जी ने यह तो ठीक कहा कि हिन्दी में लिखना ही ...दिव्या जी ने यह तो ठीक कहा कि हिन्दी में लिखना ही हिन्दी की सेवा करना है । इसके साथ सगर्व हिन्दी बोलना भी हो तो , कम से कम हिन्दी भाषी लोगों के बीच ,तो प्रयास और भी सार्थक हो । आमतौर पर हिन्दी बोलने वाला आधुनिक सभ्य समाज( हिन्दी-भाषी भी ) में पिछडा माना जाता है । यह प्रवृत्ति दूर होनी चाहिये । हि्न्दी की व्यापकता व समृद्धि के लिये यह भी अति आवश्यक है कि विज्ञान व तकनीकी शिक्षा के लिये पुस्तकें हिन्दी में उपलब्ध हों ।साथ ही यह भी ध्यान रहे कि अभिव्यक्ति के लिये भाषा का प्रयोग मनमाने तरीके से न हो ।गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1711294389298500420.post-84556937837850546852011-05-21T22:06:02.540+05:302011-05-21T22:06:02.540+05:30हर इंसान खुश रहना चाहता है । वह वही लिखता है जिसम...हर इंसान खुश रहना चाहता है । वह वही लिखता है जिसमें उसे ख़ुशी मिलती है। जैसे आपने यह लेख लिखा । यह किसी व्यवसाय से जुड़ा हुआ लेख नहीं है। यह आपके मन में आया एक विचार है जिसे आपने अपने ब्लौग पर लिख दिया। मुझे एकरसता से बहुत बोरियत होती है , इसलिए हर विषय और हर विधा में लिखती हूँ । दिवेदी जी के दो ब्लौग हैं । एक पर वह कानून सम्बन्धी लिखते हैं और दुसरे पर वे भी मन में आने वाले अनेक विचारों को स्थान देते हैं।<br />मेरे विचार से जो भी समाज हित में हो उसे लिखना चाहिए। लिखते समय विषयों की पाबंदी नहीं होनी चाहिए लेखक पर। हिंदी में लिखना ही हिंदी की सेवा करना है , मेरे विचार से। <br /><br />यदि मेरी टिप्पणी में कुछ अनुचित लिखा हो तो करबद्ध क्षमाप्राथी हूँ। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.com